हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा कहानी # 37 – जन्मदिवस – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है अनुभवों एवं परिकल्पना  में उपजे पात्र संतोषी जी पर आधारित श्रृंखला “जन्मदिवस“।)   

☆ कथा कहानी # 37 – जन्मदिवस – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

शाखा के मुख्य प्रबंधक जब सुबह 9:30 पर शाखा पहुंचे तो थकान महसूस कर रहे थे. लगातार बढ़ता काम का बोझ,लक्ष्य की चुनौतियां, लोगों की शिकायतें जिसमें नियंत्रक महोदय, स्टाफ और महत्वपूर्ण ग्राहक और उनका परिवार सभी पक्ष शामिल थे,उनके तनाव को दिन प्रतिदिन बढ़ा रहे थे.उन्हें इक्के दुक्के व्यक्ति ही समझ पाते थे और अपनी तरफ से उनका तनाव हल्का करने की कोशिश करते रहते थे. परम संतोषी जी जब भी उनके चैंबर में आते, उनका तनाव कम हो जाता है ये वे समझने लगे थे. संतोषी जी का फिकर नॉट एटीट्यूड और मजाकिया स्वभाव उनके तपते मनोभावों पर राहत की ठंडी बारिश करता था और वे ये भूल जाते थे कि वे उनके भी बॉस हैं. इसके दो कारण थे, पहला तो यह कि वे बैंकिंग विषय पर उनसे कोई अपेक्षा नहीं पालते थे और न ही संतोषी जी की कोई डिमांड होती थी. और दूसरा उनका यह विश्वास कि संतोषी जी हमेशा ऑउट ऑफ आर्डर मदद करने में स्पेशलिस्ट हैं.

आज वे इस उम्मीद के साथ शाखा में पहुंचे थे कि शाखा शुरु होने के पहले और नियंत्रक कार्यालय के टेलीफोनिक व्यवधान शुरु हो इसके पहले भी, संतोषी जी के साथ कुछ हल्के फुल्के क्षणों का आनंद लेकर फिर अपनी बैंकिंग दिनचर्या आरंभ करें. पर शाखा पहुंचने पर हमेशा की भांति संतोषी जी की मौजूदगी और गुडमार्निंग नदारद थी. हॉल में आम दिनों से अलग एक नये किस्म की महसूस की जा रही आतुरता और किसी के इंतजार में स्टाफ, जो इस कदर मगन था कि उन्हें भी नजर अंदाज कर गया.

यद्यपि मुख्य प्रबंधक महोदय का अंतरमुखी व्यक्तित्व इसे पसंद करता था और उनका भरसक प्रयास यही होता था कि कम से कम लोगों का सामना हो और वे अपने कक्ष में व्यवधान रहित और सुरक्षित प्रवेश कर जायें. ऐसा आज भी हुआ पर स्टाफ की व्यग्रता वे अपने चैंबर की कांच की दीवारों के पार भी महसूस कर रहे थे. कुछ कुछ या सब कुछ जानने की उत्कंठा उनके अंदर भी पैदा हो रही थी. अचानक ही शाखा के मुख्य द्वार पर चहल पहल बढ़ी जो ग्राहकों की भीड़ जैसी नहीं थी बल्कि सारा स्टाफ के, लकदक क्रीम कलर के सफारी सूट में सजे आगंतुक की ओर स्वागत और हर्षोल्लास के साथ बढ़ने के कारण थी. “हैप्पी बर्थडे सर जी और जन्मदिन मुबारक की करतल ध्वनि के साथ शाखा में प्रवेश करने वाले सज्जन हरदिल अजीज परम संतोषी साहब ही थे जिनके हाथ में भारी भरकम मिष्ठान के पैकेट्स थे. प्रोटोकॉल को भूलकर और सुखद आश्चर्य से अभिभूत मुख्य प्रबंधक भी अपने स्वभाव को “refer to drawer” करते हूये अनायास ही बाहर खिंचे चले आये. पर वरिष्ठता को सम्मान और संस्कार को भूलना संतोषी जी ने नहीं सीखा था तो पैकेट्स पास में टेबल पर रखकर तुरंत उनकी ओर आगे बढ़कर शुभप्रभात कहा.जवाब में “जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई” मिली और साथ ही बैंकिंग हॉल जन्मदिन की शुभकामनाओं से गूंजने लगा. वे स्टाफ से गले मिल रहे थे और स्टाफ उन पर शुभकामनाओं की बारिश कर रहा था.इस अभूतपूर्व उत्साह ने उम्र और पदों की दूरियों को आत्मसात कर लिया था और कस्टमर्स भी अपना काम भूलकर इस नयनाभिराम दृश्य का आनंद ले रहे थे. ये वो चमत्कार था जो कभी कभार ही नज़र आता था. इस मुलाकात के बाद, शाखा में परम संतोषी जी ने सबसे पहले हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया और फिर शाखा में उपस्थित समस्त स्टाफ और ग्राहकों का खुद मिलकर मुंह मीठा करना शुरु किया. शाखा की युवावाहिनी ने इस जश्ने जन्मदिन को अपने तरीक़े से सेलीब्रेट करने की डिमांड रख दी जो उन्होंने बड़ी ही कुशलतापूर्वक अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया.

इन पार्टियों का इंतजार, इन्हें और मादक बना देता है और सारे सुराप्रेमी, कल्पनाओं में ही झूमने लगे जिस पर ब्रेक लगाया मुख्य प्रबंधक जी ने यह कहकर कि अभी तो बैंक का काम शुरू करिये, शाम की चाय के साथ मीटिंग हॉल में संतोषी जी का जन्मदिन मनायेंगे.

शाम का इंतजार कीजिये.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचना/Information ☆ डॉ ऋचा शर्मा को विक्रम सोनी लघुकथा कृति सम्मान– अभिनंदन ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? डॉ ऋचा शर्मा को विक्रम सोनी लघुकथा कृति सम्मान – अभिनंदन ☆?  

? लघुकथा शोध केंद भोपाल का  अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन व वार्षिक अलंकरण समारोह सम्पन्न ?

जो साहित्य पकता है वही साहित्य पचता है – डॉ. देवेंद्र दीपक

भोपाल 19 जून। देश के जाने माने साहित्यकार स्व. श्री माधवराव सप्रे के जन्मदिवस पर प्रतिवर्षानुसार “लघुकथा शोध केंद्र” भोपाल द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेंद्र दीपक ने की।

केंद्र की निदेशक श्रीमती कांता राय ने स्वागत उद्बोधन करते हुए कहा कि आज देश के नामचीन लघुकथाकारों ने यहाँ पधारकर मुझे गौरवान्वित किया है। शोध केंद्र के सभी सदस्यों का समन्वित प्रयास है यह कार्यक्रम जो आप सभी के आशीर्वाद से पुष्पित एवम पल्लवित होता है।

स्व. माधवराव सप्रे के द्वारा लिखित प्रथम लघुकथा “एक टोकरी भर मिट्टी” का वाचन श्री राजुरकर राज एवम श्रीमती जया आर्य द्वारा किया गया।

कार्यक्रम में विभिन्न पुस्तकों के विमोचन पश्चात दिल्ली से पधारे श्री बलराम अग्रवाल ने “वर्तमान लघुकथा परिदृश्य एवं संभावनाएँ” पर अपनी बात रखते हुए कहा कि लघुकथा लेखन में ध्यान इस पर देना चाहिए कि विषयों की विविधता हों।

डॉ. अशोक भाटिया ने अपने उद्बोधन में विदेशों में लिखी जा रही श्रेष्ठ लघुकथाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विश्व में लघुकथा परिदृश्य बहुत विकसित है तथा चायनीज लघुकथायें बहुत सारगर्भित लिखी गई हैं।

श्री सूर्यकांत नागर ने “लघुकथाओं में आध्यात्मिक तत्व” पर बोलते हुए कबीर से सम्बद्ध लघुकथाओं को उद्धृत किया एवं स्वयम की लघुकथा ‘अच्छे पड़ोसी’ प्रस्तुत की।

अध्यक्षता करते हुए डॉ. देवेंद्र दीपक ने कहा कि अच्छी लघुकथा लिखने के लिए आवश्यक है कि आप अपनी लघुकथा लिखकर लम्बे समय तक के लिए छोड़ देना चाहिए बाद में जब  हम पुनः उसको पढ़ते हैं तो कुछ नए विचार जुड़ते हैं और लेखन में परिमार्जन होता है। जो साहित्य पकता हो वही साहित्य पचता है |

कार्यक्रम का दूसरा महत्वपूर्ण सत्र ‘अलंकरण समारोह’ का था जिसका सफल और सरस संचालन गोकुल सोनी जी द्वारा किया गया। इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार एवम संस्थापक निदेशक पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर, अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ कथाकार एवं अध्यक्ष वनमाली सृजन पीठ मुकेश वर्मा एवम सारस्वत अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. बिनय राजाराम एवं वरिष्ठ लघुकथाकार सतीश राठी उपस्थित थे |  मंचस्थ अतिथियों ने डॉ. अशोक भाटिया, करनाल (हरियाणा) को प. माधवराव सप्रे स्मृति अखिल भारतीय लघुकथा अलंकरण, संतोष सुपेकर, उज्जैन को पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय स्मृति प्रादेशिक लघुकथा सम्मान, डॉ. कुमकुम गुप्ता,भोपाल को मातुश्री धनवंती देवी स्मृति लघुकथा कृति सम्मान, पवन जैन, जबलपुर को पारस दासोत स्मृति लघुकथा कृति सम्मान एवं डॉ. ऋचा शर्मा, अहमदनगर (महाराष्ट्र) को विक्रम सोनी लघुकथा कृति सम्मान से सम्मानित किया। इस अवसर पर अन्य सोलह लघुकथाकारों अंजू खरबंदा, नेतराम भारतीय, सुरेश बरनवाल, नूतन गर्ग, वंदना गोपाल शर्मा, अपर्णा गुप्ता, राममूरत राही, विजय सिंह चौहान, अर्चना मंडलोई, सरिता बघेला, मनोरमा पंत, सदानंद कवीश्वर, अशोक धमेंनियां, रामचंद्र धर्मदासानी, यशोधरा भटनागर को उनकी सद्य प्रकाशित कॄतियों पर ‘लघुकथा श्री’ सम्मान भी प्रदान किये गए एवं रेणुका सिंह द्वारा स्व. कृष्णा देवी स्मृति सम्मान यू.के में रहने वाली सुश्री वंदना मुकेश शर्मा को प्रदान किया गया।

कार्यक्रमका तीसरा सत्र ‘सृजन और समीक्षा’ का रहा जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में अनिल मीत वरिष्ठ साहित्यकार,नई दिल्ली अध्यक्षता डॉ. विकास दवे निदेशक साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश सँस्कृति परिषद भोपाल एवम सारस्वत अतिथि के रूप में प्रताप सिंह जी सोढ़ी, इंदौर ,सुभाष नीरव जी दिल्ली, निहालचंद जी शिवहरे एवम अंतरा करवड़े उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीकी ने किया। इस सत्र में विभिन्न वक्ताओं ने लघुकथा सृजन के वर्तमान परिदृश्य पर महत्वपूर्ण विचार रखे एवम ततपश्चात आयोजन में पधारे देशभर के लघुकथाकारों का लघुकथा पाठ हुआ। कार्यक्रम के अंत में शशि बंसल ने आभार प्रकट किया।

? ई-अभिव्यक्ति की ओर से इस अभूतपूर्व उपलब्धि के लिए डॉ ऋचा शर्मा जी  एवं सभी सम्मानित साहित्यकारों का अभिनंदन एवं हार्दिक बधाई ?

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मानस के मोती॥ -॥ मानस में तुलसी का अभिव्यक्ति कौशल – भाग – 1 ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मानस के मोती

☆ ॥ मानस में तुलसी का अभिव्यक्ति कौशल – भाग – 1 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

हीरे की कीमत उसकी तराश की उत्कृष्टता और उससे निकलने वाली प्रकाश किरणों की प्रखरता पर होती है। उसी प्रकार साहित्य की महत्ता उसके माधुर्य, हृदय ग्राहिता, अभिव्यक्ति के सौंदर्य और उसकी उपयोगिता पर निर्भर करती है। गद्य हो या पद्य रचनाकार का एक दृष्टिकोण होता है और उसकी कथन या प्रस्तुतिकरण की शैली। एक ही कथानक को प्रस्तुत करने का हर कवि या लेखक का अपना आसान तरीका होता है जो दूसरों से भिन्न होता है। पाठक उस कथनशैली से समझ सकता है कि वह किसकी रचना है। इसीलिये अंग्रेजी में कहावत है ‘स्टाइल इज मैन’ (Style is man) महाकवि महात्मा तुलसीदास ने मानस की रचना अनेकों छंदों का उपयोग करते हुये किया है परन्तु प्रमुख्यत: कथन चौपाई, दोहे और सोरठों में है। यह तो हुई रचना के कलेवर की बात, परन्तु उनकी रचना के प्रस्तुतिकरण में या कथनशैली में एक अनुपम कौशल दिखाई देता है। किसी पात्र के मनोभाव को पाठक पर प्रकट करने के लिये या प्रसंग को नया मोड़ देकर आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपनी कथन प्रणाली को सुन्दर तथा आकर्षक रूप दिया है जो अन्य कवियों की रचनाओं में नहीं दिखता। इनसे उनकी अभिव्यक्ति सरस, सफल और आकर्षक ही नहीं हुई है वरन पाठक के मन को भी एक अलौकिक आनन्दानुभूति देती है। उन्होंने पात्रों के मुँह से सीधे अप्रिय या असमंजस्यपूर्ण कथन नहीं कराया है। बात को कहने या आगे बढ़ाने को या दुविधा की स्थिति टालने का अथवा सामाजिक मर्यादा के निर्वाह के लिये जो झीने झिलमिले परदे का उपयोग किया है वह बड़ा सार्थक, सटीक और मोहक प्रतीत होता है। इससे रचना को समझने में पाठक को जो स्वकल्पना करने का अवकाश मिलता है वह बड़ा रस घोलने वाला मिसरी सा मीठा प्रतीत होता है। वास्तव में समाज में अवगुण्ठन का बड़ा मनोवैज्ञानिक आकर्षण और मधुरता है। इसलिये घरों के दरवाजों, खिड़कियों पर हम चमकीले परदे लगाते हैं। किसी सौंदर्य के उभारने में और उत्सुकता बढ़ाने में अवगुण्ठन का क्या महत्व है यह कहे जाने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने इसलिये विभिन्न स्थानों पर आकाशवाणी, सपने, शगुन-अपशगुन, प्राकृतिक घटनाओं, पशु-पक्षिओं की बोली-वाणी, किसी अन्य पात्र के मन की उत्सुकताओं के द्वारा कथाप्रसंग के मार्मिक भावों को स्पष्ट करते या उन्हें सघनता प्रदान करते हुये अपना अभिप्राय प्रकट किया है। इस कौशल में उन्हें महारत हासिल है जो कम ही सुयोग्य साहित्यकारों को देवी सरस्वती के प्रसाद स्वरूप प्राप्त होती है। ऐसे अनेक प्रसंग प्राय: मानस के हर काण्ड में मिलते हैं। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण स्पष्ट प्रसंगों की झलक निम्न अवसरों पर देखिये-

पति-पत्नी हिमवंत और मैना के घर में पार्वती के जन्म लेने पर जब नारद जी पधारे तो उन्होंने पुत्री के भाग्य के विषय में कुछ बताने के लिये मुनिवर से प्रार्थना की। नारद जी ने कन्या के भाग्य के संबंध में कहा-

सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी, सुनहु जे अब अवगुन दुइचारी।

अगुन अनाम मातु-पितु हीना, उदासीन सब संसय छीना।

जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल वेष।

अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख।

ऐसे तो एक शंकर जी ही हैं अत: यदि कन्या तपस्या करे और यदि वे प्रसन्न हो तो लडक़ी को वे पति रूप में मिल सकते हैं। यह सुन माता-पिता को भारी असमंजस हुई। प्रिय बेटी को जंगल में जाकर तपस्या करने को कौन कहे? तव माँ ने दुखी मन से अपनी बेटी को हृदय से लगा लिया। बेटी ने माता को अपने मन का भाव स्पष्ट समझाने के लिये बताया-

सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावहुं तोहि

सुन्दर गौर सुविप्रवर अस उपदेसेउ मोहि।

करहि जाइ तपु सैल कुमारी, नारद कहा सो सत्य विचारी।

मातु-पितहि पुनि यह मत भावा, तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा।

इस प्रकार पार्वती से न माता, न पिता या किसी अन्य ने उन्हें वन में जाकर तपस्या सरीखे कठिन कार्य को संपन्न करने के लिये कहा, वरन स्वप्न के संकेत के द्वारा जटिल समस्या को पार्वती ने स्वत: ही माता से बयान कर सब समस्या सुलझा दी।

क्रमशः…

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ तुझी याद यावी… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆

श्री रवींद्र सोनावणी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ तुझी याद यावी… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆ 

अशा शून्य रात्री, तुझी याद यावी

सुखाची फुले, गात्र, गात्री फुलावी ||°||

 

गुलाबी तरी, बोचरे थंड वारे

कळ्यांना कळे, लाजरे ते इशारे

जरा पापणी, मंदशी थरथरावी ||१||

 

मनाची जरी बंद, उघडून दारे

पुसावे मला, “ईश्य ! जागाच का रे ?”

शहाऱ्यांत ओली, स्मृती चाळवावी ||२||

 

बदलता कुशी, स्पर्श केसांस व्हावा

कुणी फुंकरीने, दिवा मालवावा

तुझी सोनकाया, मिठीबंद व्हावी ||३||

 

तुझे श्वास, निःश्वास, गंधीत व्हावे

आणि लाजणे, चुंबनी विरघळावे

शहाळी सुधेची, अशी रिक्त व्हावी ||४||

 

© श्री रवींद्र सोनावणी

निवास :  G03, भूमिक दर्शन, गणेश मंदिर रोड, उमिया काॅम्पलेक्स, टिटवाळा पूर्व – ४२१६०५

मो. क्र.८८५०४६२९९३

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 137 ☆ जुन्या डायरीतून – जखम… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 137 ?

☆ जुन्या डायरीतून – जखम… ☆

ठेच लागलेल्या बोटाची जखम

चिघळून ठसठसावी

 तशाच ठसठसतात ना आठवणी?

खरं तर कारणच नव्हतं–

ठेच लागण्याचं,

पण एखादा निसरडा क्षण

ठेऊनच जातो कायमचा व्रण!

 

वेळीच

भळभळणा-या जखमेवर

भरली असतीस

चिमूटभर हळद,

तर जखम झालीही नसती

इतकी गडद!

 

धूळभरल्या वाटेवर

दुख-या बोटानं

अनवाणी चालत राहिलीस

बेफिकीर!

 

धूळच माखून घेतलीस

मलम म्हणून !

आता ती ठेचच बनली आहे ना,

एक चिरंजीव वेदना,

आश्वत्थाम्याच्या जखमेसारखी!

 

अशा जखमा भरतही नाहीत औषध पाण्याने अथवा

ब-याही होत नाहीत

रामबाण उपायाने—

आणि करता ही येत नाही,

त्या ठसठसत्या आठवणींवर शस्त्रक्रिया!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “तिनं काय करायचं?” ☆ सौ. अमृता देशपांडे

सौ. अमृता देशपांडे

? विविधा ?

☆ “तिनं काय करायचं?” ☆ सौ. अमृता देशपांडे 

तिचा स्वभाव मुळातच थोडा अस्थिर. बहिणी ,भाऊ आणि  आई यांच्या नजरेत आणि प्रेमात मोठं झालं हे शेवटचं अपत्य.

लग्न करुन दिलेला परिवार ही  मोठाच. कोल्हापूर जवळचं खेडेगाव. ही घरची सर्वात मोठी सून. मिस्टरांचे नोकरी निमित्ताने मुंबईत वास्तव्य. त्यांचा स्वभाव ” संत माणूस “. आपलं काम, अणि योगी, ऋषी,  संत, अध्यात्म यात सदैव मग्न.

लग्नानंतर ती पण मुंबईत गेली. आर्थिक परिस्थिती त्यावेळी 40 -43 वर्षापूर्वी सर्वांचीच जेमतेम. तिने मशीन वर शिलाई करुन, साड्या फॉल पिको करुन आर्थिक बाजू आपल्या परीने उचलून धरली. मुंबई सारख्या

मायापूरीत छोटेसे घर घेणे शक्य करुन दाखवले.पुढे तर एकावर एक 1 +2 इमले उभे केले.दोन मुले मोठी झाली.उच्च शिक्षित झाली.यथावकाश लग्ने झाली. दोघानाही 2-2 मुले झाली. तिचे मिस्टर 60 व्या वर्षी निवृत्त झाले. मुले, सुना, नोकरी करणा-या . नातवंडे आज्जीजवळ. आज्जी निगुतिनं सगळं करत होती. दोन्ही मुलांनी आपले संसार थाटले. हिचं स्वयंपाकघर मोठ्या सुनेनं ताब्यात घेतलं. धाकट्यानं  जवळच घर घेतलं. आज्जिची विभागणी झाली. तिनं ही साठी ओलांडलीच की. शरीर आणि मन यांची सांगड घालताना तिची

घालमेल होऊ लागली आणि इथेच तिचं मानसिक स्वास्थ्य बिघडलं. आता तिचा कामा पुरताच उपयोग राहिला. काम होत नाही तर सहवास ही नकोसा झाला होता.

त्यातच गावाकडे तिचे सासरे निवर्तले. खेडेगाव च्या पद्धतीप्रमाणे सासुबाईचे लेणे काढण्यात आले.हिला त्यांचे  भुंडे हात बघवले नाहीत. पठ्ठीन आपल्या हातातल्या पाटल्या ( ज्या तिच्या  आईन तिला लग्नात घातल्या होत्या) सासूच्या हातात चढवल्या.

🤦🏻‍♀️ हे कळताच नवरा, मुले, सुना तिच्यावर इतक्या नाराज झाल्या की तिच्याशी बोलणेच बंद केले. मोबाइल चालू ठेवायला ही पैसे देत नाहीत.

आता ना तिच्या हातात पैसा, ना कुणाचा शब्द!

आयुष्यभर तिने पार पाडलेल्या जबाबदा-या, खस्ता, कष्ट, पतीला दिलेली साथ, प्रेमाने एकत्र बांधून ठेवलेला परिवार, सुनाना वेळोवेळी  केलेली मदत, नातवंडांचं प्रेम हे सगळं इतक्या सहजतेनं संपतं?

काय चुकलं तिचं?

काय करायचं तिनं?

ती साधी?

ती भोळी?

ती बावळट?

की ती खुळी?

 

मला तरी या प्रश्नांनी  भंडावून सोडलय…..

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ काना मात्रा वेलांटी….भाग – 1 ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

? जीवनरंग ❤️

काना मात्रा वेलांटी….भाग – 1 ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

तीन दिवस झाले. सुरुची रोज सांगते,

“मम्मी मला निबंध लिहून दे! विषय आहे “मी कोण  होणार?”

मी तिला रोज, आज नक्की सांगेन हं असं आश्वासन देते आणि कामाच्या पसाऱ्या पुढे मला तिचा निबंध लिहून देणं काही जमत नाहीय.

” मम्मी आजचा लास्ट डे आहे.  उद्या मिस बुक्स चेक करणार आहेत .मला इन कम्प्लीट रिमार्क नकोय. देशील ना लिहून? मराठीतून लिहाचं आहे म्हणून तुला मस्का नाहीतर मीच लिहिलं असतं .मला पटापट मराठी शब्द आठवत नाही.”

तुझं मराठी इतकं काही वाईट नाही. तू लिहून तर बघ. मी दुरुस्त करून देईन.

“ते काही नाही. तू टाळतेस हं मम्मी.तुला निबंध सांगायलाच हवा. मागच्या वेळेस मिसने माझा निबंध वर्गात वाचून दाखवला होता.”

“छान! म्हणजे मी लिहायचा आणि शाबासकी तुला!”

”  बरं. संध्याकाळी घरी आल्यावरआधी तुझा निबंध. मी कोण होणार. बस?”

” प्रॉमिस ?”

“प्रॉमिस.”

तेवढ्यात सुरूची ची रिक्षा आली. मी तिला टाटा करून घरात वळले. सुरुची शाळेत गेली.

मी कोण होणार? थोडा विचार करायला हवा. घड्याळात ठोके पडले. आणि विचार बदलले. सात ते दहा. तीन तास. त्यात कामाची तुडुंब गर्दी.  विस्मया ची पण आज टेस्ट आहे.  तिचा अभ्यास घ्यायलाच हवा. अगदी जवळ बसून, तोंडावर पांघरूण घेऊन झोपली आहे. तिला उचलून उठवावे लागणार. थोडं रडणं कुरकुर. पुन्हा गादीवर जाणं. डोळे धू. चुळ भर. घे हा ब्रश. घास दात. दूध पी. आंघोळ कर. लवकर अटप गं! मला उशीर होतोय. तुझं होमवर्क राहिलंय. घे ते दप्तर. काढ वही. रबर सापडत नाही. पेन्सिलीला टोक नाही. चल ग लवकर अटप. किती वेळ घालतेस. अजून तारा पण आली नाही.

शी बाई! मम्मी तुझी किती घाई! करते ना सर्व काही! आणि आज ते झाडावरचं ऑरेंज फुल  मी मिसला देणार आहे.”

” हो. ते नंतर बोलु.”

” नंतर कधी? मम्मी, तुला वेळच नसतो आमच्याशी बोलायला.”

” हे बघ आधी तू टेबल्स म्हण. वर्णमाला काढ. त वर अनुस्वार दे म्हणजे पतंग हा शब्द होईल.”

” मम्मी अनुस्वार म्हणजे काय?”

” अनुस्वार म्हणजे टिंब”

” म्हणजे शब्दाला कुंकू लावायचं ना?”

विस्मया चे विनोद आणि हसणे. पण आपल्या जवळ इतका वेळ नाही.

” तुझ्या कल्पना पुरे! आज टेस्ट आहे ना तुझी?”

ताराला आज उशीर झाला तिला किती वेळा सांगितलंय्, सकाळी उशीर करू नकोस. एखादे वेळेस ती येणारही नाही. सांगून कधी रजा घेतली आहे?वाट बघायची आणि कामाला लागायचे. अजून संजय चा ब्रेकफास्ट करायचाय्.तारा आली नाही तर विस्मयाला शीला कडे पाठवावे लागेल. विस्मया तयार होणारच नाही. तिची मनधरणी करताकरताच वेळ जायचा.

ती म्हणेलच,” मम्मी तू सुट्टी घे ना.मी शिलाआँटी कडे जाणार नाही. मला प्रेमच्या  रिक्षातून जायला आवडत नाही. तो चिडवतो मला.

आली तारा. उशीर केल्याबद्दल ओरडायला हवं होतं पण जाऊ दे उगीच सारा दिवस खराब जायचा.  आणि शिवाय कुणी मुद्दाम वागत नाहीअसं. तिच्या काही अडचणी असतील.

एकदा ती म्हणाली होती,”ताई एक विचारू का? रोजच ठरवते आज विचारीन, पण तुम्हाला टाईम भेटत नाय, म्हणून म्हणावं जाऊ दे. पण आता अगदी गळ्याशी आलया”

“काय झालं? बोल.” तिच्या बोलण्याच्या पद्धतीवरून अंदाज आला होता. पैसे वगैरे हवे असणार.

” बाई लेकीच्या  लग्नाला, महिला बँकेतून तीन हजार रुपये घेतले होते.ते काही फेडणं झालं नाही मजकडून. कुठे कुठे पुरी पडू? उधार उसनवारी करून दिवस निघत आहेत. बँकेने केस केली आहे. हा बघा कोर्टाचा कागद.”

तिनं साडीच्या पदरात बांधलेल्या पेपराची घडी माझ्या हातात ठेवली.

” माझी झोपडी तारण ठेवली होती. पैसे नाही भरले तर जप्ती येईल. माझ्यासाठी एवढं करा. तेवढे पैसे भरून द्या. माझ्या महिन्यातून कापुन घ्या. काय बी करा. आणि गरज भगवा. मी तुमचे उपकार जन्मात विसरणार नाही. लई कठीण झालंया बगा. झोपडी गेली तर राहू कुठे? दोन लहान लेकरं हायेत.  शिवाय एकटी बाई कपाळकरंटी. तुमच्याशिवाय हवाला तरी कुणाचा मला? “

बोलता-बोलता तारा रडू लागली. तसे हालच आहेत. शिवाय या बायकांचे नवरे असले काय नी नसले काय? त्यांच्या पीडा आहेतच. शिवाय ताराला माहेरचं कोणी नाही. तिचा भाऊ आहे. पण तोच हलाखीत. सासरी विचारत नाही कुणी.

तरीही मी म्हटलं,” का ग तुझे एवढे तीन-तीन दीर आहेत तुला काही मदत करत नाहीत?”

“कर्म त्यांचं !ही कापड गिरणी बंद पडली. आणि बेकार झालेत सर्व. कुठे मिळेल तिथे मजुरी करतात. असलं तर काम नाही तर असेच. त्यांच्यापासून काय मी अपेक्षा ठेवणार बाई? तुमची कंपनी देते ना कर्ज! तिथून काहीतरी करा ना??”

या बायकांच्या परिस्थितीची दया येते. पण मागे एकदा पारुच्या वडिलांना चहाची गाडी टाकण्यासाठी, एका बँकेतून, माझ्या ओळखीने कर्ज मिळवून दिलं. तर दुसऱ्याच महिन्यात त्यांनी पैसे मस्त वापरले. चैन केली. पुन्हा हातावर हात चोळत बसला. हफ्ते भरलेच नाहीत. मी मात्र विना कारण अडकले. गॅरंटी दिली होती मी. नकोच त्या भानगडीत पडायला.

“हे बघ! एक कर्ज फेडता आलं नाही. दुसरं कसं फेडशील ?इतके दिवस महिन्याच्या महिन्याला थोडेसे पैसे भरले असते तर फिटले नसते का कर्ज? शिवाय तू कामावर ही वेळेवर येत नाहीस. सारख्या रजा घेतेस. महिना तरी पुरा होतो का तुझा.  मला काही जमणार नाही बाई! तू तुझं बघ.

मग काही न बोलता तारा गेली. त्यानंतर ताराने कधी विषय काढला नाही. मीही कधी विचारले नाही.

क्रमश:…

© सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ शोध आनंदाचा…भाग – 3 ☆ सुश्री शुभदा जोशी ☆

सुश्री शुभदा जोशी

? मनमंजुषेतून ?

 ☆ शोध आनंदाचा…भाग – 3 ☆ सुश्री शुभदा जोशी ☆ 

आनंद म्हणजे झुळूक! सहज अलगद स्पर्शून जातो पण पकडून ठेवता येत नाही मुठीत! काही क्षणच किंचित बरं वाटतं… आणि भुर्रकन उडून जातो तो. पुन्हा आपलं जैसे थे! 

कशामुळे सुखावते मी? सगळ्यात जास्त वेळा… कुणी माझ्याबद्दल चांगलं  बोललं की… तोंड देखली स्तुती किंवा भारावून जाऊन केलेली स्तुती समजते, त्याबद्दल नाही बोलत मी पण माझ्या प्रयत्नांचे आवर्जून कुणीतरी कौतुक केले, खरंतर दखल घेतली गेली माझ्या असण्याची, कामाची की बरं वाटतं. 

त्यातही हे कौतुक किती मनापासून आहे, कितपत  खरं आहे, नेमकं आहे का अशा अनेक बाबींवर त्या आनंदाची तीव्रता अवलंबून असते.

याचा अर्थ इतरांवर अवलंबून आहे का माझा आनंद? माझ्या हातात नाही का? नाही नाही अगदी असं नाही म्हणता येणार! त्या वेळची माझी मनस्थितीदेखील पूरक असायला हवी ना? तर घेता येईल मला ते कौतुक! पण काहीही म्हणा, appreciation हा बऱ्यापैकी खात्रीचा मार्ग आनंदापर्यंत पोचण्याचा हे मात्र मानावे लागेल. 

अनेकदा सोशल मेडियामध्ये मी तुम्हाला चांगले म्हणते, तुम्ही मला म्हणा असा खेळ चाललेला जाणवतो. हे म्हणजे ‘fishing for the compliments’ झाले.

असला ओढून ताणून आनंद नको बाबा आपल्याला!

माझ्या मनात जर सभोवतालच्या लोकांबद्दल प्रेमाची आणि आस्थेची ज्योत तेवत असेल तर आपसूकच माझ्या असण्यातून, वागण्यातून आनंदाची सुखद झुळूक लोकांना अनुभवायला मिळते नि साहजिकच ती परतून माझ्यापर्यंतही पोचते. खरंतर ती आपली आपल्याला देखील जाणवत रहाते…   

हृदयातली प्रेमाची ज्योत जेव्हा अलगद सुलगते…त्यात कोणतीही अपेक्षा नसते, संपूर्ण स्वीकार असतो, आपलं मानलेलं असते. कुणासाठी तरी खूप आस्था, प्रेम वाटतं, काही तरी करावसं वाटतं… अगदी स्वतः त्रास सोसून देखील… ही भावना किती सुरेल असते! 

मनातल्या अस्वस्थतेला, असाहायतेला, निराशेला पार करण्याचं बळ लाभतं त्यातून… मात्र तिथवर  पोचण्यात किती अडचणी? निखळ प्रेम आणि स्वीकार येतच नाही अनुभवाला. किती तरी ‘पण…’ असतात मध्ये. तक्रारी, जुने अपेक्षाभंग, आरोप अशा अनेक गोष्टी त्या प्रेमाच्या ज्योतीला जीवच धरू देत नाहीत. त्यासाठी भूतकाळात त्या त्या क्षणात शिरून गोष्टी resolve कराव्या लागतात, पाहिल्यांदा स्वतःच्या मनात आणि नंतर त्या व्यक्तीपर्यंत पोचून देखील! आपला दृष्टिकोन बदलला असेल तर सकारात्मक प्रतिसाद निश्चित मिळणार… 

अगदी जवळच्या आणि प्राथमिक – जैविक नात्यातल्या माणसांबरोबर जगताना आजवर झालेल्या जखमा, ओरखडे आपण जर वागवत राहिलो बरोबर तर ते नाते आणखी आणखी कडवट बनत जाते. ते नाते heal व्हायला हवे तर त्यासाठी जखमा बऱ्या व्हायला हव्यात. ही वाट चालून जाण्यासाठी आपल्याला उर्मी आणि बळ लाभो.

©  सुश्री शुभदा जोशी  

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ समिधा..!! ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर

श्री अमोल अनंत केळकर

? वाचताना वेचलेले ?

☆ समिधा..!! 🔥 ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆ 

एका वळणावर दोन गुरुजी स्कूटरवरून माझ्या शेजारून गेले. तर… त्यातले एक गुरुजी दुसऱ्या गुरुजींना म्हणत होते, “अरे समिधांची काय एव्हढी काळजी करतोस? त्यांचं काम फक्त अग्नीला अर्पण केलेल्या वस्तू अग्नीपर्यंत पोचवायचं…!”

बस्स एवढंच? 

ह्या पलीकडे त्या ‘समिधां’च्या जळून जाण्याला काहीच महत्व नाही ? 

खरं तर ह्या अशा अनेक ‘समिधा’ आहेत ज्यांनी मूकपणे जळून जाऊन अनेक यज्ञ यशस्वी केलेत —-!

विचारांच्या वावटळीवर स्वार होऊन मन प्रवासाला निघालं—-

पहिलीच आठवली ती उर्मिला. 

लक्ष्मण तर गेला निघून भावामागून चौदा वर्षं वनवासाला… रामसीतेच्या बरोबरीनं लक्ष्मणाचं कौतुक झालं, भरताचंही झालं—- पण अयोध्येत राहूनसुद्धा चौदा वर्षं वनवास, तोही एकटीनं भोगणाऱ्या, उर्मिलेच्या आयुष्याच्या आहुतीची दखल वाल्मीकींनीही घेतली नाही—-मला नेहमी वाटतं की त्या उर्मिलेला कुणीतरी बोलतं करायला हवं. रामराज्याच्या आदर्शवादी यज्ञात ह्या एका ‘समिधेची आहुती अशीच पडून गेली.

मग आठवतात त्या… काशीबाई, सकवारबाई आणि इतर तिघी—शिवाजी महाराजांच्या आठ राण्यांपैकी तीन—

सईबाई, सोयराबाई व पुतळाबाई या आपल्याला माहीत असतात. त्यांच्याबद्दलच्या खऱ्याखोट्या गोष्टीही 

आपण ऐकलेल्या असतात—पण बाकीच्या पाच…? केवळ राजकीय कारणासाठी जिजाबाईंनी ह्या पाचजणींबरोबर महाराजांचा विवाह लावला. पण नंतर? —-‘अफझलखान येतोय,’ म्हटल्यावर ह्या पाचजणींना चिंता वाटली नसेल? आपला नवरा औरंगजेबाच्या कैदेत अडकलाय म्हटल्यावर यांचाही जीव सैरभैर झाला नसेल ? निश्चितच झाला असणार ! पण स्वराज्याच्या यज्ञात ह्या पाच ‘समिधा’ तशाच जळून गेल्या!

बहुतेक सर्व ‘समिधा’ या  स्त्रियाच ! —-

 कारण हे निमूटपणे जळून जाणं त्यांच्या अंगवळणीच पडलेलं असतं जणू! 

गोपाळराव जोशांसारखा एखादा अपवाद की आपल्या पत्नीला- आनंदीबाईला

डॉक्टर करण्यासाठी स्वतः ‘समिधा’ झाला !

काही थोड्याफार ‘समिधा, कस्तुरबा म्हणा, सावित्रीबाई फुले म्हणा—

स्वकर्तृत्वाने उजळूनही गेल्या ! पण बाकीच्या…?

टिळकांनी, सावरकरांनी मांडलेल्या स्वराज्याच्या यज्ञात पहिली आहुती सौ. टिळकांची व सौ. सावरकरांची पडली. 

या आणि अशा अनेक…!!!

विचारांच्या चक्रात घरी आलो. आमच्या घरच्या ‘समिधे’नं दार उघडलं. 

मुलाचा अभ्यास आणि नवऱ्याचं करीअर यासाठी स्वतःचं आयुष्य पूर्णपणे झोकून देणाऱ्या त्या ‘समिधे’ला पाहून 

मला एकदम भरून आलं!

घरोघरी अशा ‘समिधा’ रोज आहुती देत असतात. घर उभं करत असतात, सावरत असतात. माझं घरही याला काही अपवाद नाही.

मात्र यापुढे या ‘समिधां’ची आहुती दुर्लक्षित जाऊ न देणं गरजेचं आहे !

या नव्या कठीण काळात, सर्व आव्हानांना भिडण्याची तयारी करतांना, जी आनंदाने स्वतःची आहुती देऊन 

आपल्याला ऊर्जा देणार आहे, त्या आपल्या प्रत्येकाच्या घरच्या ‘समिधे’ला… मनापासून नमस्कार..

संग्राहक – अमोल केळकर

बेलापूर, नवी मुंबई, मो ९८१९८३०७७९

poetrymazi.blogspot.in, kelkaramol.blogspot.com

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मीप्रवासीनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २३ – भाग ३ -एक जिद्दी देश— इस्त्रायल  ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २३ – भाग ३ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ एक जिद्दी देश— इस्त्रायल  ✈️

जेरुसलेम ही आता इस्त्रायलची राजधानी आहे. या प्राचीन नगरीला चार हजाराहून अधिक वर्षांचा इतिहास आहे.ज्यू, ख्रिश्चन आणि मुस्लिम या तीनही धर्मांसाठी हे पवित्र अध्यात्मिक ठिकाण आहे. बेथलहेम इथे येशू ख्रिस्त जन्माला आला असे मानले जाते . येशू ख्रिस्त जिथे जन्माला आला त्या जागेवर ‘चॅपेल ऑफ नेटिव्हिटी’ बांधले आहे. तसेच तिथे एक चांदीची चांदणी आहे.

आजचा इस्त्रायलचा शेवटचा दिवस हा ‘मृत समुद्राच्या’ मजेशीर अनुभवाचा होता. आमच्या जेरुसलेमच्या हॉटेलपासून मृत समुद्र एक- दीड तासाच्या अंतरावर होता. मृत समुद्राच्या सभोवतालचा भाग हा ज्युदिअन वाळवंटाचा भाग आहे. या वाळवंटात मध्ये मध्ये आम्हाला एकसारखी वाढलेली, लष्करी शिस्तीत उभी असलेली असंख्य खजुराची झाडे दिसली. या झाडांना खजुरांचे मोठ-मोठे घोस लटकलेले होते. ही इस्त्रायलच्या संशोधनाची किमया आहे. ‘सी ऑफ गॅलिली’चे पाणी पाईप लाइनने ज्युदिअन वाळवंटापर्यंत आणलेले आहे.ड्रीप इरिगेशन पद्धतीने व उत्तम जोपासना करून हे पीक घेतले जाते. थोड्याच वर्षात इस्त्रायल या वाळवंटाचे नंदनवन करणार हे नक्की! आम्ही इस्त्रायलमध्ये खाल्लेला खजूर हा काळसर लाल रंगाचा, लुसलुशीत, एका छोट्या लाडवाएवढ्या आकाराचा होता. त्यातील बी अतिशय लहान होती.इस्त्रायलमधून मोठ्या प्रमाणात खजूर निर्यात होतो.

‘मृत समुद्रा’मध्ये तरंगण्याची मजा घेणारे इतर अनेक प्रवासी होते. गुडघाभर पाण्यात गेल्यावर तिथली तळाची मऊ, काळी, चिखलासारखी माती अंगाला फासून क्लिओपात्रा राणीची आठवण जागवली. अजिबात पोहायला येत नसताना मृत समुद्राच्या पाण्यावर तरंगण्याचा  अनुभव सुखदायक होता. पाण्यातून बाहेर आल्यावर मोठमोठ्या शॉवर्सखाली आंघोळ करण्याची सोय आहे.

सौर ऊर्जेचा सर्वात जास्त उपयोग करणारा देश म्हणून इस्रायल जगात पहिल्या नंबरावर आहे.’पेन ड्राइव्ह’,’जी.पी.एस्'(global positioning system) आणि यासारखे कितीतरी अद्ययावत तंत्रज्ञान इस्रायलने जगाला दिले आहे. अत्याधुनिक संरक्षण सामग्री बनविण्यात, रोबोटिक्स, औषध निर्मिती करण्यात इस्त्रायलची आघाडी आहे. त्यांच्या शिक्षण पद्धतीत संशोधन व उद्योजकता या गोष्टींचा समावेश आहे. उद्योगधंद्यातील  उच्चपदस्थ व्यक्ती शालेय पातळीवरील विद्यार्थ्यांना त्यांचे अनुभव सांगतात,  मार्गदर्शन करतात. समाजासाठी प्रत्येकाने योगदान दिले पाहिजे असा विचार व कृती त्यांच्या देशप्रेमामुळे घडते.

राजकीय परिस्थितीमुळे ज्यू लोक जगभर विखुरले गेले. इस्त्रायलच्या स्थापनेनंतर इस्रायलमध्ये परतलेल्या प्रत्येक ज्यू व्यक्तीला त्या देशाचे नागरिकत्व मिळाले. मात्र त्यासाठी हिब्रू भाषा शिकणे अनिवार्य आहे. देशाचे सर्व महत्त्वाचे व्यवहार हिब्रू भाषेतूनच होतात. आम्हाला मिळालेला व्हिसा हिब्रू भाषेत होता आणि त्यातले एक अक्षरही आम्हाला वाचता येत नव्हते.   अरेबिक आणि इंग्लिश भाषेचा वापरही होतो. वयाची १८ वर्षे पूर्ण झाली की प्रत्येक तरुणाला तीन वर्षे व तरुणीला दोन वर्षे  लष्करातील प्रशिक्षण सक्तीचे आहे. इस्त्रायलमध्ये झोपडपट्टी, भिकारी दिसले नाहीत.

त्यांच्याकडे ‘शबाथ’ पाळला जातो .म्हणजे शनिवार हा त्यांचा पवित्र दिवस! या दिवशी सार्वजनिक वाहन व्यवस्थासुद्धा बंद असते. फक्त अत्यावश्यक सेवा चालू असते. स्त्रियांसाठी आनंदाची गोष्ट म्हणजे त्या दिवशी ‘चूलबाईं’ना सुट्टी असते. कुठलाही स्वयंपाक केला जात नाही. आदल्या दिवशी केलेले किंवा आणलेले शनिवारी खातात. धार्मिक पोथ्यांचे  वाचन, सर्व कुटुंबाने एकत्र येऊन गप्पा मारीत सारा दिवस मजेत घालविणे असा त्यांचा ‘शबाथ’ साजरा होतो.

जवळजवळ दोन हजार वर्षांपूर्वीपासून मायभूमीपासून तुटलेला इस्रायली समाज आपल्याकडे कोकण किनाऱ्याला, विशेषतः अलिबाग परिसरात समुद्रकिनाऱ्यावर स्थिरावला. कालांतराने ते इथल्या समाजाशी एकरूप झाले. आपला धर्म त्यांनी निष्ठेने सांभाळला. इस्त्रायल स्वतंत्र झाल्यावर त्यातील अनेकांनी इस्त्रायलला स्थलांतर केले तरी त्यांची भारतीयांशी असलेली नाळ तुटली नाही. आजही  इस्रायलमधून ‘मायबोली’ नावाचे मराठी नियतकालिक निघते. त्याचे संपादक श्री. नोहा मस्सील (म्हशेळकर ) आम्हाला मुद्दाम आमच्या जेरूसलेमच्या हॉटेलवर भेटायला आले होते. भारताबद्दलचे प्रेम त्यांच्या गप्पांमधून व्यक्त होत होते. ते सर्व मिळून १५ ऑगस्ट हा भारताचा स्वातंत्र्य दिवस व १ मे हा महाराष्ट्र दिन साजरा करतात.

आमच्या ‘ट्रिपल एक्स लिमिटेड’ या इस्त्रायलच्या टुरिस्ट कंपनीचे, मूळ भारतीय असलेले, श्री व सौ बेनी यांनी आम्हाला एका भारतीय पद्धतीच्या उपहारगृहामध्ये दुपारचे जेवण दिले. त्यावेळी मिसेस रीना पुष्कर व तिचे पती, मूळ भारतीय, ही त्या हॉटेलची मालकीण मुद्दामून आम्हाला भेटायला आली. गाजर हलव्याची मोठी,ड्रायफ्रुटस् लावून सजवलेली डिश आम्हाला आग्रहाने दिली.टेबलावर  त्या डिशभोवती फुलबाजा लावून दिवाळी साजरी केली. आम्ही दहा बायकाच इस्त्रायलला आलो याचे तिने फार कौतुक केले.

किबुत्सु फार्मवर गाईंची देखभाल करणाऱ्या सोशीने  (सुशी ) सात रस्ता, भायखळा इथल्या आठवणी तसेच इथल्या मिठाईच्या आठवणी जागविल्या.तिने उत्कृष्ट दुधामधल्या ड्रिंकिंग चॉकलेट व बिस्कीट यांनी आमचे स्वागत केले.

श्री मोजेस चांदवडकर यांनी व त्यांच्या मित्रांनी उभारलेले सिनेगॉग आवर्जून नेऊन दाखविले व गरम सामोसे खाऊ घातले. हे सारेजण आम्ही दिलेल्या शंकरपाळे, चकल्या, लाडू वगैरे घरगुती खाऊवर बेहद्द खुश होते. अशा असंख्य सुखद आठवणींचे गाठोडे आम्ही भारतात परततांना घेऊन आलो.

भाग-३ व इस्त्रायल समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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