१. आयुष्य संथ झालं म्हणून तक्रार करत होतो. तेव्हा मैलाचा दगड भेटला अन म्हणाला ; “मी स्थिर आहे म्हणूनच लोकांना त्यांची गती मोजता येत्ये रे!”
२. माझ्या एका सत्कार समारंभात मला आकाश भेटलं कानात कुजबुजत म्हणालं, “एवढ्यात शेफरलास ? जी मोजता येत नाही ती खरी उंची.”
३. कुठलीही गोष्ट हसण्यावारी नेतो म्हणून मी मित्रावर रागावलो. तो मला समुद्रकिनारी घेऊन गेला आणि त्याने मला विचारलं,” या समुद्राची खोली किती असेल सांगू शकशील?” तेव्हापासून मी मत बनवत नाही कुणाबद्दल.
४. मला वाटलं कठीण हृदयाच्या माणसांना सौंदर्य कसं समजणार ? एक हिरा लुकलुकला. म्हणाला, “वेडा रे वेडा !!”
५. कमी मार्क मिळाले म्हणून एका कोकराला कोणीतरी बदडत होतं. त्या कोकराच्या डोळ्यातले भाव वाचले मी ! ते म्हणत होतं, ‘करून बघायचं कि बघून करायचं, ठरवू दे की मला मी कसं जगायचं !’
संग्राहिका : सुश्री मंजिरी गोरे
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “पूरी पीढी देख रही …”।)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 29
एकात्म यात्रा- तीर्थयात्रा :
उत्सव, मनुष्य की रगों में रक्त बनकर दौड़ते हैं। प्रकृति ने भीतर सब कुछ दिया है पर उसे चलायमान करना पड़ता है। कुछ वैसे ही जैसे स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदलना पड़ता है। यह तो हुआ विज्ञान का पक्ष पर अध्यात्म की दृष्टि से देखें तो जैसे प्रभु श्रीराम ने निष्प्राण अहिल्या में प्राण फूँके, इसी भांति अंतर्भूत उत्सवधर्मिता को पर्व जागृत करते हैं।
पर्व का केंद्र घर होता है। नाते-रिश्तेदार, पास-पड़ोस, मोहल्ला मिलकर पर्व का आनंद बढ़ा देते हैं। पर्व का विस्तार है मेला। मेल-मिलाप के लिए अनगिनत घर परिवार, बृहत्तर समूह संग आता है। एक से पाँच-छह दिन चलने वाला पर्व, मेला में बदलने पर एक सप्ताह से एकाध महीने की अवधि तक चलता है। पर्व से मेला के विस्तार का अगला संस्करण है तीर्थयात्रा।
पर्व घर पर मनाते जाते हैं। मेला घर से कुछ दूरी पर किसी खुले स्थान पर / कस्बा /शहर/कुछ घंटे की दूरी पर तहसील आदि में आयोजित होते हैं। अलबत्ता तीर्थ के लिए न्यूनाधिक पर अनिवार्य रूप से यात्रा करनी पड़ती है। इस यात्रा के कारण में भारतीय समाज मानता है कि अपने कष्टों को हरने की हरि से गुहार लगाने के लिए देह को कुछ कष्ट तो वहन करना ही चाहिए।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर विचारणीय व्यंग्य “एक्जिट पोल का खेला”।)
☆ व्यंग्य # 128 ☆ “एक्जिट पोल का खेला” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
बेचारी गंगू बाई बकरियां और भेड़ चराकर जंगल से लौट रही थी और गनपत चुनावी सर्वे (एक्जिट पोल) का बहाना करके नाहक में गंगू बाई को परेशान कर रहा है, जब गंगू बाई ने वोट ही नहीं डाला तो इतने सारे सवाल करके उसे क्यों डराया जा रहा है। गंगू बाई की ऊंगली पकड़ पकड़ कर गनपत बार बार देख रहा है कि स्याही क्यों नहीं लगी। परेशान होकर गंगू बाई कह देती है लिख लो जिसको तुम चाहो। गंगू बाई को नहीं मालुम कि कौन खड़ा हुआ और कौन बैठ गया। गंगू बाई से मिलकर सर्वे वाला गनपत भी खुश हुआ कि पहली बोहनी बढ़िया हुई है।
सर्वे वाला गनपत आगे बढ़ा। कुछ पार्टी वाले मिल गये, गनपत भैया ने उनसे भी पूछ लिया। काए भाई किसको जिता रहे हो? सबने एक स्वर में कहा – वोई आ रहा है क्योंकि कोई आने लायक नहीं है। गनपत को लगा कि एक्जिट पोल का अच्छा मसाला मिल रहा है।
सामने से एक चाट फुल्की वाला आता दिखा, बोला -कौन जीत रहा है हम क्यों बताएं, हमने जिताने का ठेका लिया है क्या ? पिछली बार तुम जीएसटी का मतलब पूछे थे तब भी हमने यही कहा था कि आपको क्या मतलब …..! गोलगप्पे खाना हो तो बताओ… नहीं तो हम ये चले।
अब गनपत को प्यास लगी तो एक घर में पानी मांगने पहुँचे…तो मालकिन बोली – फ्रिज वाला पानी, कि ओपन मटके वाला …….
खैर, उनसे पूछा तो ऊंगली दिखा के बोलीं – वोट डालने गए हते तो एक हट्टे-कट्टे आदमी ने ऊंगली पकड़ लई, हमें शर्म लगी तो ऊंगली छुड़ान लगे तो पूरी ऊंगली में स्याही रगड़ दई। ऐसी स्याही कि छूटबे को नाम नहीं ले रही है। सर्वे वाले गनपत ने झट पूछो – ये तो बताओ कि कौन जीत रहो है। हमने कही जो स्याही मिटा दे, वोईई जीत जैहै।
पानी पीकर आगे बढ़े तो पुलिस वाला खड़ा मिल गया, पूछा – क्यूँ भाई, कौन जीत रहा है ……? वो भाई बोला – किसको जिता दें आप ही बोल दो। गनपत समझदार है कुछ नोट सिपाही की जेब में डाल कर जैसा चाहिए था बुलवा लिया। पुलिस वाले से बात करके गनपत दिक्कत में पड़ गया। पुलिस वाले ने डंडा पटक दिया बोला – हेलमेट भी नहीं लगाए हो, गाड़ी के कागजात दिखाओ और चालान कटवाओ, नहीं तो थोड़ा बहुत और जेब में डालो।
कुछ लोग और मिल गए हाथ में ताजे फूल लिए थे, गनपत ने उनसे पूछा ये ताजे फूल कहां से मिल गए…… उनमें से एक रंगदारी से बोला – चुरा के लाए है बोलो क्या कर लोगे, ……..
सुनिए तो थोड़ा चुनाव के बारे में बता दीजिये ……?
बोले – तू कौन होता बे…. पूछने वाला। नेता जी नाराज नहीं होईये हम लोग आम आदमी से चुनाव की बात कर एक्जिट पोल बना रहे हैं।
सुन बे ‘आम आदमी’ का नाम नहीं लेना, और ये भी नहीं पूछना कि पंजाब में क्या आम आदमी की सरकार बन रही है।
थक गए तो घर पहुंचे, पत्नी पानी लेकर आयी, तो पूछा – काए किसको जिता रही हो …..? पत्नी बड़बड़ाती हुई बोली – तुम तो पगलाई गए हो …! पैसा वैसा कुछ कमाते नहीं और राजनीति की बात करते रहते हो। कोई जीते कोई हारे तुम्हें का मतलब…..
फोन आ गया,
हां हलो, हलो ……कौन बोल रहे हैं ?
अरे भाई बताओ न कौन बोल रहे हैं ?
आवाज आयी – साले तुमको चुनाव का सर्वे करने भेजा था और तुम घर में पत्नी के साथ ऐश कर रहे हो ………..
नहीं साब, प्यास लगी थी पानी पीने आया था, बहुत लोगों से बात हो गई है,
निकलो जल्दी … बहस लड़ा रहे हो, बहाना कर रहे हो ……….
काम वाली बाई रास्ते में मिल गयी, तो उससे पूछने लगे कि किसको जिता रही हो? तो उसने पत्नी से शिकायत कर दी कि साहब छेड़छाड़ कर रहे हैं …….
रास्ते में पान की दुकान में गनपत पत्रकार रुके, पान में बाबा चटनी चमन बहार और चवन्नी के साथ तेज रगड़ा डलवाया और कसम खायी कि अगली बार से एक्जिट पोल का काम नहीं करेंगे, क्योंकि ये झटके मारने का खेला है।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# स्त्री #”)
ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ १४ मार्च -संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी)
सुरेश भट
मी कसे थोपवू शब्द माझे?
हिंडती सूर आसपास किती.
लाभले आम्हास भाग्य बोलतो मराठी
गंजल्या ओठास माझ्या धार वज्राची मिळू दे
पूर्तता माझ्या व्यथेची माझिया मृत्यूत व्हावी
भोगले जे दुःख त्याला सुख म्हणावे लागले
माणसांच्या मध्यरात्री हिंडणारा सूर्य मी
सांभाळतात सारे आपापली दुकाने
मल्मली तारूण्य माझे तू पहाटे पांघरावे
जीवना,तू तसा,मी असा
खेळलो खेळ झाला तसा
लाभू दे लाचार छाया मोठमोठ्याना परंतु
तापल्या मातीत माझ्या
घाम मानाने गळू दे
असेच हे कसेबसे
कसेतरी जगायचे
कुठेतरी—कधीतरी
असायचे–नसायचे
करू नका एवढ्यात चर्चा पराभवाची
रणात आहेत झुंजणारे अजून काही
किती काव्यपंक्तींचा उल्लेख करावा ? काही ओळखीच्या,काही अनोळखी.एखाद्या झंझावाताने झपाटून टाकावे तशा कविता आणि नंतर झालेली त्यांची गीते.शब्दांच्या काफिल्याचा रंगच वेगळा.एकदा एल्गार पुकारल्यावर रसवंतीने मुजरा करावा अशा या सप्तरंगी कवितांचे जनक श्री.सुरेश भट यांचा आज स्मृतीदिन.त्यांचे काव्य हीच त्यांची खरी ओळख.संगीताची आवड बालपणा पासून असलेल्या सुरेश भटांनी आपल्या अपंगत्वावर मात करण्यासाठी स्वतःचे शरीर मजबूत बनवले.कोमल ,रसिक मन आणि प्रतिकूलतेवर मात करण्याची वृत्ती यामुळेच की काय त्यांची कविताही कोमल आणि तितकीच सशक्त झाली.मराठीत गझल लेखनामध्ये स्वतःचे स्थान निर्माण करून मराठी साहित्यात गझल लोकप्रिय करण्यात त्यांनी दिलेल्या योगदानामुळेच त्यांना ‘गझलसम्राट’ही पदवी मिळाली.गडचिरोली येथे झालेल्या एकोणचाळीसाव्या विदर्भ साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते .
हिंडणारा सूर्य या गद्य लेखना व्यतिरिक्त त्यांनी लिहिलेल्या कवितांचे संग्रह असे:
एल्गार, काफला, झंझावात, रंग माझा वेगळा, रसवंतीचा मुजरा, रूपगंधा, सप्तरंग आणि सुरेश भट यांच्या निवडक कविता.
‘मरणाने केली सुटका जगण्याने छळले होते’ असे त्यांनी लिहिले असले तरी त्यांच्याच शब्दात सांगायचे तर’अजुनी सुगंध येई दुलईस मोग-याचा’ प्रमाणे त्यांच्या काव्य दरवळचा आस्वाद घेत त्यांच्या स्मृती जपूया.
गोविंद विनायक तथा विंदा करंदीकर:
काव्य वाचनाचे कार्यक्रम करून मराठी कविता गावोगावी पोचवून लोकप्रिय करणरे तीन कवी म्हणजे कविवर्य वसंत बापट,मंगेश पाडगावकर आणि विंदा करंदीकर.
आज विंदांची पुण्यतिथी. कोकणातील देवगड जवळील खेड्यात जन्मलेल्या या कवी लेखकाने ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करून मराठीला पुन्हा एकदा सन्मान मिळवून दिला. विंदा हे कवी तर होतेच पण अनुवादक, समीक्षक आणि बालसाहित्यिकही होते.वास्तववाद आणि प्रयोगशिलता हे त्यांच्या साहित्याचे वैशिष्ट्य होते.त्यांचे बालसाहित्य वाचताना त्यांच्यातील खट्याळ स्वभावाचे दर्शन होते.’माझ्या मना बन दगड’ असे म्हणणारा हाच का तो कवी असा प्रश्न पडावा इतक्या मनोरंजनात्मक बालकविता त्यांनी लिहील्या आहेत.
‘माणसाला शोभणारे युद्ध एकच या जगी
त्याने स्वतःला जिंकणे,एवढे लक्षात ठेवा’
‘मग्रूर प्राक्तनाचा मी फाडला नकाशा
विझले तिथेच सारे,ते मागचे इशारे’
‘असे जगावे दुनियेमध्ये आव्हानाचे लावून अत्तर
नजर रोखुनी नजरे मध्ये
आयुष्याला द्यावे उत्तर’ किंवा
देणा-याने देत जावे, तेच ते अन् तेच ते, सब घोडे बारा टक्के,
यासारख्या कविता त्यांच्या प्रतिभेचे पैलू दाखवतात. राणीचा बाग, सशाचे कान, एकदा काय झाले, परी ग परी अशा बाल कविता थोरांनाही बालपणात घेऊन जातात.
कविवर्य मंगेश पाडगावकर यांच्या मते करंदीकरांची कविता प्रयोगशील आहे,शैली वक्तृत्वपूर्ण आहे पण भाषणबाजी नाही.तर कविवर्य शंकर वैद्य म्हणतात की विंदांची जीवनविषयक दृष्टी ही कठोर बुद्धीवादी,पूर्णपणे वास्तवशील आणि नितांत ऐहिक स्वरूपाची आहे.
कबीर पुरस्कार, कवी कुसुमाग्रज, केशवसुत, कुमारन् आसन, कोणार्क, जनस्थान, महाराष्ट्र फौंडेशन, म.सा.प,डाॅ. लाभसेटवार,सोविएट लॅन्ड नेहरू लिटररी पुरस्कार आणि अष्टदर्शन ला ज्ञानपीठ पुरस्कार.
ज्ञानपीठ पुरस्काराची रक्कम त्यांनी साने गुरुजी राष्ट्रीय स्मारकाला अर्पण केली व अमराठी साहित्य मराठीत अनुवादीत करण्यासाठी दर्पणकार बाळशास्त्री जांभेकर यांचे नाव पुरस्कार सुरू केला.
अनेक विद्यापीठांनी त्यांना डी.लीट.ही पदवी बहाल केली आहे.
“वाचकांचे अनेक थर आहेत.यातला कोणताही थर वंचित ठेवणे हे पाप आहे.”असे मानणा- या विंदाना आदरपूर्वक प्रणाम.
इंदुमती शेवडे
इंदुमती शेवडे या विदर्भातील पत्रकार व लेखिका.तसेच त्या उत्तम चित्रकारही होत्या.मराठी कथेचा उद्गम आणि विकास या विषयावर त्यांनी पी.एच्.डी. केले होते. जी. डी. आर्टस् ही कलापदवी प्राप्त केली होती.
तरूण भारत, नागपूर या दैनिकात पत्रकारिता करून ‘महिलांचे मनोगत’ हे सदर अनेक वर्षे चालवले होते. आकाशवाणी,नागपूर येथे सहायक कार्यक्रम निर्माता (मराठी भाषण) या पदावरही काम केले. बी.बी.सी.च्या प्रशिक्षण वर्गात त्यांचा सहभाग होता.नंतर त्यांना दिल्ली येथील यु.पी.एस्.सी. च्या मराठी विभागात काम करण्याची संधी मिळाली. तेथे त्यांनी नॅशनल बुक ट्रस्ट तर्फे प्रकाशित इंग्रजी पुस्तकांचा मराठीत अनुवाद केला.तसेच मिर्झा गालीब यांचेविषयी माहिती घेऊन त्यांच्या जीवनावर कादंबरी लिहीली. चौथे विदर्भ लेखिका साहित्य संमेलन त्यांचे हस्ते पार पडले.
साहित्य निर्मिती:
इथे साहिबाचिये नगरी(प्रवासवर्णन)
पु.य.देशपांडे(चरित्र)
संत कवयित्री: पाच संत कवयित्रींचा वेगळ्या पद्धतीने विचार.
कथा एका शायराची (मिर्झा गालीब कादंबरी)
विविध क्षेत्रात कर्तृत्व गाजवणा-या इंदुमती शेवडे यांना वंदन.
☆☆☆☆☆
श्री सुहास रघुनाथ पंडित
ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ
मराठी विभाग
संदर्भ :विकिपीडिया व संबंधित कवींचे काव्यसंग्रह.
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
आवड : – कविता करणे, वेगवेगळ्या विषयांवर लेख लिहिणे . वाचन आणि पर्यटन
नोकरी : – CBSE स्कुल मध्ये ड्रॉईंग टिचर म्हणुन सहा वर्ष कार्यरत आहे .
कार्यशाळा : – कॅनव्हास पेंटीग, ओरिगामी, फ्लुएड आर्ट, क्राफ्ट वर्क पोत निर्मिती, बांधणी वर्क अशा अनेक कार्यशाळा मी घेते .
फ्लुएड आर्ट : – यामध्ये ॲक्रॅलिक कलर्स वापरून कॅनव्हासवर पेंटीग केले जाते . याचे पुर्ण किट मिळते.
कॅनव्हास पेंटींग : – यामध्ये ॲक्रॉलिक, ऑईल कलर्स चा वापर करून पेंटीग केले जाते.
ओरिगामी : यामध्ये पेपर च्या घड्या घालुन कागदापासून कलाकृती साकारली जाते .
बांधणी वर्क : बांधणी वर्क च्या कार्यशाळे मध्ये वेगवेगळ्या प्रकारे बांधणीचे प्रकार शिकवले जातात . यामध्ये कापडावर बांधणी प्रिंट शिकवले जाते.
क्राफ्ट वर्क : – यामध्ये वेगवेगळ्या प्रकारची फुले पेपर पासून, कापडापासून बनविण्यास शिकविली जातात . तसेच नॅपकिन पासुन फुले व त्याचा बुके बनविण्याचे प्रशिक्षण दिले जाते. लहान मुलांसाठी क्लेपासुन छोट्या छोट्या कलाकृती करण्यास शिकविले जाते.
व्हेजिटेबल, फ्रुट कार्व्हिंग : – फुले, पाने, पक्षी हे व्हेजिटेबल फ्रुट पासुन कार्व्ह करायला शिकविले जाते.