हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 35 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 35 ??

द्वारका धाम-

भारत के पश्चिम में गुजरात के द्वारका जनपद में स्थित है द्वारका धाम। यह अरब सागर और गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। द्वारका को भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। जरासंध ने अनेक बार मथुरा पर आक्रमण किया था। हर बार वह श्रीकृष्ण के हाथों परास्त हुआ। योगेश्वर ने भविष्य का विचार किया। इस विचार का साकार रूप था, सागर के बीच अजेय-अभेद्य द्वारका नगरी का निर्माण। माना जाता है कि कालांतर में श्रीकृष्ण की द्वारका ने जलसमाधि ले ली। वर्तमान द्वारका उसी क्षेत्र में बाद में विकसित हुई। श्रीकृष्ण की द्वारका को ढूँढ़ने का अभियान चला। विभिन्न अनुसंधानों में अरब सागर के गर्भ में प्राचीन नगरी के कुछ प्रमाण अबतक मिले हैं।  

द्वारका का रणछोड़ जी का मंदिर सुप्रसिद्ध है। भगवान का रणछोड़ होना भी वैदिक दर्शन का अनुपम उदाहरण है।

योगेश्वर श्रीकृष्ण के वध के लिए जरासंध ने  कालयवन को भेजा। विशिष्ट वरदान के चलते कालयवन को परास्त करना सहज संभव न था। शूरवीर मधुसूदन युद्ध के क्षेत्र से कुछ यों निकले कि कालयवन को लगा, वे पलायन कर रहे हैं। उसने भगवान का पीछा करना शुरू कर दिया।

कालयवन को दौड़ाते-छकाते श्रीकृष्ण उसे उस गुफा तक ले गए जिसमें ऋषि मुचुकुंद तपस्या कर रहे थे। अपनी पीताम्बरी ऋषि पर डाल दी। उन्माद में कालयवन ने ऋषिवर को ही लात मार दी। विवश होकर ऋषि को चक्षु खोलने पड़े और कालयवन भस्म हो गया। साक्षात योगेश्वर की साक्षी में ज्ञान के सम्मुख  अहंकार को भस्म तो होना ही था।

वस्तुत: श्रीकृष्ण भलीभाँति जानते थे कि आज तो वह असुरी शक्ति से लोहा ले लेंगे पर कालांतर में जब वे पार्थिव रूप में धरा पर नहीं होंगे और इसी तरह के आक्रमण होंगे तब प्रजा का क्या होगा? ऋषि मुचुकुंद को जगाकर गिरधर आमजन में अंतर्निहित सद्प्रवृत्तियों को जगा रहे थे, किसी कृष्ण की प्रतीक्षा की अपेक्षा सद्प्रवृत्तियों की असीम शक्ति का दर्शन करवा रहे थे।

श्रीकृष्ण स्वार्थ के लिए नहीं सर्वार्थ के लिए लड़ रहे थे। यह ‘सर्व’ समष्टि से तात्पर्य रखता है। सर्वार्थ का विचार वही कर सकता है जिसने एकात्म दर्शन का वरण किया हो। जिसे सबका दुख,.अपना दुख लगता हो। यही कारण था कि रणकर्कश ने रणछोड़ होना स्वीकार किया।

द्वारका धाम में आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित  शारदापीठ है।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 124 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  होली पर्व पर विशेष  “भावना के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 124 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  ☆

फसल प्यार की लग रही, आई खुशियां पास।

आँचल में उम्मीद के, हरदम जगती आस।।

 

कंचन काया देखकर, मन होता बेचैन।

मिलने को आकुल लगन, कब आएगा चैन।।

 

फसल खेत में पक गई,  सुंदर है खलिहान।

पाकर श्रम का पुण्यफल, खुश हो रहे किसान।।

 

धानी फसलें देखकर, मुस्काते खलिहान।

बढ़ता है भंडार गृह, करता काम किसान।।

 

माटी से सुंदर बने, काया सुभग अनूप ।

गढ़ता रूप कुम्हार जब, अपने ही अनुरूप।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #114 ☆ साधौ हरि से हो गई प्रीत… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  रचना “साधौ हरि से हो गई प्रीत…। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 114 ☆

☆ साधौ हरि से हो गई प्रीत…

जा दिन से लगि प्रीत साँवरे, मिल ग्यो मन को मीत

दिल में मोरे श्याम बसत हैं, बजे मधुर संगीत

लगो रहत चित चाक सदा ही, छोड़ी जग की रीत

बदल गए दिन मन मोहन से, गए बुरे दिन बीत

मन मयूरा झूम के नाचे, गाये हरि के गीत

श्याम शरण “संतोष”चाहता, करके काम पुनीत

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (71-75)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (71 – 75) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

 

अश्रुपोंछ रोदन विरत सिया ने किया प्रणाम।

मुनि ने आशीर्वाद दे मन को दिया विराम।।71।।

 

कहा उन्होंने ध्यान बल से मुझको है ज्ञान।

है मिथ्या अपवाद पर होनी है बलवान।।72अ।।

 

पुत्री तुम निर्दोष हो तजो मनः संताप।

अन्य देश में पिता गृह में हो समझो आप।।72ब।।

 

जग संकटहारी सतत् दृढ़प्रतिज्ञ हैं राम।

पर तुम प्रति व्यवहर से कुद्ध मैं उनके नाम।।73।।

 

श्वसुर तुम्हारे दशरथ सखा मेरे विख्यात।

पिता जनक ज्ञानी बड़े तव सज्जन अवदात।।74अ।।

 

तुम पावन पतिव्रता हो अग्र पूज्य अविभाज्य।

इससे मेरे स्नेह का तुम पर है साम्राज्य।।74ब।।

 

तापस आश्रम में यहाँ रहो निडर निर्बाध।

हो पूरी निर्विघ्न तव पुत्र प्राप्ति की साध।।75अ।।

 

होंगे पूरे पुत्र के सभी जात संस्कार।

स्नेह पूर्ण होंगे यहाँ सबके सब व्यवहार।।75ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २५ मार्च – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆  २५ मार्च -संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर -ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

केशव रंगनाथ शिरवाडकर

केशव रंगनाथ शिरवाडकर(1926 – 25 मार्च 2018) हे साहित्य समीक्षक व वैचारिक लेखक होते.

ते वि. वा. शिरवाडकरांचे धाकटे बंधू.

केशव रं. शिरवाडकर हे तत्त्वज्ञान विषयातले भारतीय शिक्षण क्षेत्रातील प्रख्यात नाव होते.

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विद्यापीठात व नंतर सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठात त्यांनी भाषा विषयात अध्यापन केले. त्यांनी ग्रामीण भागातही शिक्षणप्रसार केला. नांदेड येथे पीपल्स कॉलेज उभारण्यात त्यांचे मोठे योगदान होते. तेथे ते इंग्रजीचे अध्यापन करीत. पुढे ते तिथे प्राचार्य झाले.

पुस्तके :

  1. आपले विचारविश्व (तत्त्वज्ञानविषयक ग्रंथ)
  2. तो प्रवास सुंदर होता :कुसुमाग्रज, वि. वा. शिरवाडकर -जीवन आणि साहित्य (चरित्रग्रंथ)
  3. मर्ढेकरांची कविता :सांस्कृतिक समीक्षा.
  4. सार गीतारहस्याचे
  5. विल्यम शेक्सपिअर – जीवन आणि साहित्य.
  6. संस्कृती, समाज आणि साहित्य
  7. रंगविश्वातील रसयात्रा
  8. साहित्यातील विचारधारा

मराठी साहित्य परिषदेने भरवलेल्या पहिल्या साहित्य समीक्षकांच्या संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते. (29-30 नोव्हेंबर 2012)

महाराष्ट्र सरकारकडून तत्त्वज्ञान व मानसशास्त्रावरील पुस्तकासाठीचा ना. गो. नांदापूरकर पुरस्कार त्यांच्या ‘संस्कृती, समाज आणि साहित्य’ या पुस्तकाला मिळाला.

यशवंत नारायण ऊर्फ अप्पा टिपणीस

यशवंत नारायण ऊर्फ अप्पा टिपणीस (3डिसेंबर 1876 – 25 मार्च 1943) हे मराठी नाट्यनिर्माते, नाट्यलेखक, अभिनेते वेषभूषाकार होते.

त्यांनी रंगमंचावरील पात्रांच्या रंगभूषा, केशभूषा, वेशभूषा जास्तीत जास्त वास्तव बनवण्याचा प्रयत्न केला.

1904मध्ये टिपणीसांनी महाराष्ट्र नाटक कंपनीची स्थापना केली.’कांचनगडची मोहना ‘, (यात ते नायक होते), ‘कमला’, ‘सं. प्रेमसंन्यास ‘ ही नाटके त्यांनी सादर केली.

नंतर त्यांनी ‘भारत नाट्य मंडळी’काढून ‘मत्स्यगंधा’ नाटक केले. त्याचे लेखन, दिग्दर्शन त्यांनीच केले होते व त्यात भीष्माची भूमिकाही केली होती.नंतर त्यांनी ‘आर्यावर्त नाटक कंपनी’सुरू केली. त्यांनी ‘चंद्रग्रहण’ हे शिवाजीच्या जीवनावरचे नाटक लिहून सादर केले.या नाटकाद्वारे प्रथमच ऐतिहासिक स्वरूपातला शिवाजीचा जिरेटोप रंगमंचावर आणण्याचे श्रेय टिपणीसांना जाते.

ललितकला नाटक कंपनीतील ‘शहा शिवाजी ‘या नाटकातील काही पदे टिपणीसांनी रचली होती. या नाटकासाठी त्यांनी पुण्यातील बाबासाहेब घोरपडे यांच्याकडील ऐतिहासिक पुस्तकांचा संग्रह वाचून काढला आणि स्वतःच्या देखरेखीखाली अंगरखे, पगड्या शिवून घेतल्या. पुढे कित्येक वर्षे त्या नाटकांत व चित्रपटांत वापरल्या जात असत.

टिपणीसांनी एकूण 15 नाटके लिहिली.20 नाटकांत त्यांनी अभिनय केला.

पुणे येथे 1921 साली भरलेल्या सतराव्या मराठी नाट्यसंमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

मधुकर बाबूराव केचे

मधुकर बाबूराव केचे (18 जानेवारी 1932 – 25मार्च 1993) हे कवी, ललित निबंधकार होते.

एम. ए. करून ते मराठीचे प्राध्यापक झाले.

त्यांच्या कवितेत आधुनिक मानवाची निराशा, ईश्वराविषयी शंकाकुलता, ऐहिक प्रेरणांशी चाललेला संघर्ष या गोष्टी अधोरेखित होतात.

पुस्तके : ‘पालखीच्या संगे ‘, ‘आखर आंगण ‘, ‘एक भटकंती’, ‘एक घोडचूक’, ‘वंदे वंदनम’ हे ललित निबंध संग्रह.

‘पुनवेचा थेंब’, ‘आसवांचा ठेवा’, ‘दिंडी गेली पुढे’ हे कवितासंग्रह.

‘चेहरेमोहरे’, ‘वेगळे कुटुंब’ हे व्यक्तिचित्रसंग्रह.

‘झोपलेले गाव’, ‘माझी काही गावं’ ही प्रवासवर्णने.

‘मोती ज्याच्या पोटी’ ही कादंबरी.

मधुकर केचेंच्या तीन कवितासंग्रहांना महाराष्ट्र सरकारची लागोपाठ बक्षिसे मिळाली.

केशव रंगनाथ शिरवाडकर, यशवंत नारायण टिपणीस व मधुकर बाबूराव केचे यांना त्यांच्या स्मृतिदिनी सादर प्रणाम. 🙏🏻

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ: साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, विकीपीडिया, मधुकर केचे : वि. ग. जोशी, महाराष्ट्र नायक

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – श्री.अमोल केळकर – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्री अमोल केळकर

💐 अभिनंदन 💐

आपल्या समुहातील लेखक श्री अमोल केळकर यांचा माझी टवाळखोरी हा विडंबन/व्यंग लेखन संग्रह नुकताच प्रकाशित झाला आहे.

श्री.अमोल केळकर यांचे अभिव्यक्ती समुहातर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील लेखनासाठी शुभेच्छा .💐

 

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ऋतूराज… ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर☆

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ ऋतूराज… ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆ 

आला आला वसंत आला

चहूकडे आनंद पसरला

धरती ल्याली हिरवा शालू

बघता बघता गुलमोहर फुलला….

 

चैत्र महिना नव वर्षाचा

गुढी उभारती घरोघरी

वनवास संपवुनी चौदा वर्ष्ये

सीता राम परतले अयोध्यानगरी….

 

तरूवर हसले नव पल्लवीने

पक्षी विहरती स्वच्छंदाने

खळखळ वाहे निर्झर सुंदर

सृष्टी बहरली ऊल्हासाने….

कळ्या उमलल्या वेलीवरती

धुंद करितसे त्यांचा दरवळ

गुंजारव करी मधुप फुलांवर

वसंत वैभव किती हे अवखळ….

 

जाई जुई मोगरा फुलला

सुवर्ण चंपक गंध पसरला

रंग उधळित गुलाब आला

ऋतुराज कसा हा पहा डोलला….

 

ऋतु राजा आणिक धरती राणी

मुसमुसलेले त्यांचे यौवन

आम्रतरूवर कोकिळ गायन

वसंत वसुधा झाले मीलन….

 

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कविता # 117 – तो सागरी किनारा ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 117 – विजय साहित्य ?

☆ तो सागरी किनारा  कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

तो सागरी किनारा…

लग्नाआधी, लग्नानंतर, दोघांनाही

तितकाच जवळचा वाटायचा

जितका सागराला किनारा

अन किनाऱ्याला सागर,

परस्परांना आपलं समजायचा…!

सागरात काय दडलय,

याची प्रचंड उत्सुकता किनाऱ्याला.

सागराला देखील अनावर ओढ

आपल साम्राज्य, किनाऱ्याला बहाल करण्याची.

कधी धीर गंभीर… कधी रौद्र, वादळी,

तर कधी कधी खळाळत, उत्स्फूर्तपणे

सागर धाव घ्यायचा किनाऱ्याकडे.

उसळत्या लाटांचा, मर्दानी जोषात, सागराच येणं

त्याची गाज, बहाल केलेला,

शंखशिंपल्यांचा नजराणा पाहून, किनारा सुखावतो.

असा सालंकृत किनारा, सागराच्या भरतीन

सदा रहायचा आलंकृत, अन् प्रेमांकित देखील.

भरती ओहोटीच्या आपलेपणातून

किनाऱ्याच सुखवस्तूपण बहरायच.

त्याच्या तिच्या नात्याच प्रतिबिंबच लहरायचं

त्या सागर लाटांमधून…!

पतीपत्नीच्या नात्याला  कधी कधी

वैचारिक मतभेदान,  भरती ओहोटीला

सामोरे जाव लागायच, तेव्हाही…

तो सागर किनाराच द्यायचा आसरा

दोन भरकटलेल्या नावांना…

सांगायचा अनुभवी बोल

”भरती ओहोटी मधला काळ

तोच खरा कसोटीचा

या काळात, एकाने व्हायचं पसा

तर  दुसऱ्यानं व्हायचं दाता”. .!

उसळत्या सागराचा, 

अन सौदर्यशील किनाऱ्याचा

तो विहंगम भावसंवाद,

परस्परांना ओढ लावायचा

ना ते ना ते म्हणतानाही

भवसागरात जगायला शिकवायचा

नातं जोडून ठेवायचा

तो सागरी किनारा. . . !

 

© कविराज विजय यशवंत सातपुते 

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ माती… ☆ कवी मधुकर केचे ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ माती… ☆ कवी मधुकर केचे ☆ 

माती

माती माती माती

गंध मातीतून

उरला व्यापून अंतराळ

उंच उडे गंध

उंच उडे जरी

पतंगाची दोरी मातीपाशी

म्हणोनीच जरी

गंध वर वर

मातीचा विसर पडो नेदी

 – कवी मधुकर केचे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ वसंतोत्सव… ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

?विविधा ?

☆ वसंतोत्सव… ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

‘कोकीळ कुहू कुहू बोले’ गाण्याचे बोल रेडिओवरून कानावर पडताच वसंत ऋतुची चाहूल मनाला लागली! फाल्गुनातील रंगपंचमीचा रंग उधळत होळीच्या सणाची सांगता होते आणि वेध लागतात ते वसंताचे! सूर्याच्या दाहक किरणांनी सृष्टी पोळली जात असतानाच वसंताचे होणारे आगमन नकळत सृष्टीतील नव्या बदलाची जाणीव करून देते.  संध्याकाळी येणारी थंड वाऱ्याची झुळूक वसंताचा निरोप आपल्याला देते! सुकलेल्या झाडांना पालवी येण्याचे दिवस जवळ येतात. पिवळी, करड्या रंगाची, वाळलेली पाने जमिनीवर उतरतात.जणू ती आपल्या आसनावरून- जागेवरून- पायउतार होतात आणि नव्याला जागा करून देतात.कॅशिया, गुलमोहरा सारखी रंगांचे सौंदर्य दाखवणारी झाडे आकाशाच्या निळ्या पार्श्वभूमीवर केशरी, जांभळे पिसारे फुलवून उभी असतात. त्याच वेळी आंब्याचा मोहर आपला सुगंध पसरवीत असतो!

आपल्या हिंदू संस्कृतीत प्रत्येक ऋतुचे स्वागत आपण सणाने  करतो. वसंत ऋतु येतो तेव्हा चैत्रगौरीचा उत्सव सुरू होतो.

पूर्वी अंगणात चैत्रांगण घातले जाई.या चैत्रांगणातून चंद्र, सूर्य, गाई, झोका, कैरी … अशा विविध प्रतीकांची रांगोळी काढली जाई. निसर्गाप्रती कृतज्ञता दाखवण्याचा हा उत्सव असतो. चैत्री पाडव्या नंतर येणाऱ्या पहिल्या तीजेला चैत्र गौरीची

स्थापना करतात. देवीचा उत्सव म्हणून तिला पानाफुलांची सजावट करून झोक्यावर बसवतात. रुचकर कैरीची डाळ, कैरीचं पन्हं आणि खरबूज, कलिंगडासारखी थंड फळे देवीसमोर ठेवली जातात. या सर्व गोष्टींचा एकत्रित आनंद घेता यावा म्हणून चैत्रागौरीचे हळदी कुंकू केले जाते. अक्षय तृतीये पर्यंत हा सण साजरा केला जातो. हळदीकुंकू सारख्या समारंभात सुगंधित गुलाब पाणी शिंपडून, अत्तर, गुलाब देऊन सुवासिनी वसंताचे स्वागत करतात.

काही ठिकाणी ‘वसंत व्याख्यानमाला’चे कार्यक्रम चालू असतात. अशा व्याख्यानमालां मुळे लोकांना नवीन ज्ञान आणि मनोरंजन मिळत असते. याच काळात गायनाचे कार्यक्रम होत राहतात. कोणत्याही ऋतूत, सण साजरे

करून माणूस  आनंद शोधत असतो. आणि त्यानिमित्ताने निसर्गाची जवळीक साधली जाते!

पंजाब, उत्तर प्रदेश यासारख्या  भागात या दिवसात कलिंगड, खरबुजे यासारखी फळे ही थंड म्हणून खाल्ली जातात.फ्रीजच्या पाण्यापेक्षा माठातील  पाणी अधिक चांगले असते. त्यात वाळा, मोगरा टाकला की पाण्याला एक प्रकारचा सुगंधही येतो.

आपल्या महाराष्ट्रात कोकम, लिंबू, कैरी,वाळा,खस यांची सरबते थंडाव्यासाठी आपण वापरतो. निसर्गाने दिलेले नैसर्गिक पदार्थ या उन्हाळ्याच्या काळात वापरणे हे शरीराला हितकर असते. पुढे येणाऱ्या वर्षा ऋतूत कोणतेही त्रास होऊ नयेत म्हणून शरीराला सज्ज ठेवण्याचे काम नैसर्गिक विटामिन ‘सी’ घेण्यामुळे  होत असते!

वसंत ऋतुची खासियत यातच आहे की, हा ऋतू नवीन सृजनाची  सुरुवात करून देतो. वसंतोत्सवामुळे नवचैतन्य दिसते. शिशिर आणि हेमंत ऋतूत थंड, निद्रिस्त झालेले वातावरण वसंत ऋतूच्या आगमनाने चैतन्यमय बनते आणि तोच निसर्गाचा खरा ‘वसंतोत्सव’ असतो !

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares