हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख – आत्मानंद साहित्य #109 ☆ ‌दानेन पाणिर्नतुकंकणेन ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 109 ☆

☆ ‌आलेख – दानेन पाणिर्नतुकंकणेन ☆

 

कश्चधर्म:परालोके,‌ कश्चधर्म: सदाफल:।

किं नियम्य न शोचन्ति, कैश्चसंधिर्न जिर्यते।

अर्थात्- लोक में श्रेष्ठ धर्म क्या है? सदा फलदाई धर्म क्या है? किसे बस में कर लेने से चिंता मुक्त रहा जा सकता है? किसकी मित्रता कभी पुरानी नहीं पडती?

आनृसंस्यंपरो धर्म:,  स्त्रयीधर्म:सदाफल:।

मनोयम्य न शोचंति, संधि:सद्भीर्नजिर्यते।।

अर्थात्- लोक में सर्वोत्तम धर्म दया है, वेदोक्त धर्म सदा फलदाई है, मन को वशीभूत रखने वाले सदा सुखी एवम् चिंता मुक्त रहते हैं। सज्जन पुरुष की मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती।

संस्कृत वांग्मय में भी यह सूक्ति है,

विभुक्षितं किं न किं न करोति  पापं।।

(महाभारत वन पर्व ३१३)

अर्थात्- भूखा प्राणी कौन सा अधम पाप नहीं करता, वह अपनी क्षुधा पूर्ति के लिए चोरी के अलावा भी तमाम जघन्यतम कृत्य करने के लिए विवश होता है। वहीं पर विभिन्न लोक कहावतों में भी  भूख की पीड़ा ही प्रतिध्वनित होती है।

यथा – क्षुधापीर सहित सकै न जोगी। अथवा  भूखे भजन न होई गोपाला।

उपरोक्त संस्कृत सूक्ति, लोक कहावतों के निहितार्थो का स्पष्ट संकेत क्षुधाजनित पीड़ा की तरफ करते हैं, वहीं पर पौराणिक अध्ययन के दौरान जीवन में अन्न के महत्व पर प्रकाश डालती अनेक घटनाएं दृष्टिगोचर होती हैं। जो मानव जीवन में खाद्यान्न के महत्व को दर्शाती हैं। इस क्रम में द्रौपदी के जीवन की अक्षयपात्र कथा, सुदामा, रत्नाकर, महर्षि कणाद्  का जीवन दर्शन का पौराणिक घटना क्रम अवश्य ही पठनीय है, जो क्षुधा पूर्ति में अन्न की महत्ता दर्शाती है। इस क्रम में याद करिए भूख से बिलबिलाते, विप्र सुदामा के परिवार की कथा, तथा रत्नाकर, महर्षि कणाद् का जीवन वृत्त सारे प्रसंग भूख भोजन तथा अन्न के इर्द-गिर्द गोल गोल घूमते नजर आयेंगे।

मानव हों, पशु हों, पंछी हों, कीट पतंगे हो, हर जीव क्षुधा पूर्ति हेतु प्रयासरत दीखता है। इस क्रम में प्रकृति ने हमें दूध, दही, फल, फूल, शाकवर्गीय वनस्पतियां, प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले खाद्यान्न फसलों का उपहार दिया, लेकिन उसके बावजूद एक तरफ जहां विश्व की बहुसंख्यक आबादी  भूख तथा कुपोषण की पीड़ा जनक परिस्थितियों से दो-चार होती दीख रही है, वहीं पर अदूरदर्शिता पूर्ण निर्णयों के चलते होटलों, वैवाहिक समारोहों, खुले आसमान के नीचे भंडारित सड़ते अन्न तथा पके निष्प्रयोज्य खाद्य-पदार्थ जिससे लाखों भूखों की भूख मिटाई जा सकती थी, लेकिन ऐसा होता कहां दीखता है, एक तरफ जहां आज भी गरीब वर्ग दीन हीन अवस्था में साधन सुविधा से वंचित अन्न के दाने दाने को मोहताज दीखता भूख एवम् कुपोषण से मरता दीख रहा है। वहीं पर नवधनाढ्य वर्ग अन्नो की बरबादी का जश्न महंगे होटलों तथा आयोजन के साथ मनाता है। जो कहीं न कहीं से उसके झूठी शान तथा अहं की तुष्टि का हिस्सा है।

हमारे प्रत्येक मांगलिक कार्यों तथा धार्मिक आयोजन का संबंध देवी देवताओं के आवाहन पूजन एवम् विसर्जन से जुड़ा है, हम जीवन के उन सुखद पलों ‌को यादगार बनाने के क्रम में हर आयोजन के प्रारंभ अथवा अंत में प्रीति भोजों का आयोजन करते हैं।उन आयोजन के निर्विघ्न समापन हेतु देवियों देवताओं का आवाहन पूजन करके भांति-भांति के प्रसाद फल फूल समर्पित करते हैं। लेकिन आयोजन की पूर्णता के बाद शेष बचे हुए व्यंजन अवशेषों को खुले आसमान तले  सड़कों के किनारे  कूड़े के ढेर पर  फेंक देते हैं, जो सड़ कर वातावरण को प्रदूषित तो करता ही है, वह फिजूलखर्ची तथा अकुशल प्रबंधन का भी प्रतीक है, क्या ही अच्छा होता जब प्रायोजक द्वारा आयोजक की सेवा शर्तों में यह बात भी जोड़ दी जाती कि  सफल आयोजन के बाद बचे अन्न अवशेषों को किसी लोक सेवी संस्था को दान कर दिया जाता जिससे सेंकड़ों नहीं हजारों की संख्या में भूख तो मिटती है, वातावरण भी प्रदूषित होने से बच जाता तथा उन दरिद्रनारायणों के हृदय से मिलने वाले आशिर्वाद से जीवन में मंगल ही मंगल होता। वर्ना लक्ष्मीऔर अन्नपूर्णा के रूठने पर दरिद्रता भूख पीड़ा बीमारी से उपजा आसन्न संकट आप के दरवाजे पर खड़ा खड़ा अपने गृहप्रवेश के अशुभ घड़ी का इंतजार कर रहा होगा।

हम सभी से आज भी अपने आसपास तमाम ऐसे गरीबवर्गीय महिलाओं बच्चों से आमना-सामना होता होगा, जिनके तन पर फटे झूलते चीथडों में बंटे वस्त्र तथा खाली पेट उनकी गरीबी लाचारी तथा बेबसी को बयां करते मिल जायेंगे, तो वहीं दूसरी तरफ नवधनाढ्यों की अलमारियों में अटे पड़े पुरानें कपड़े जो उपयोग में नहीं है, वे चाहे तो उन तमाम कपड़ों को धुलवाकर तमाम गरीबों का तन ढक कर नर से नारायण की श्रेणी में जा सकते हैं। इधर बीच कुछ लोकोपकारी  संस्थाओं के ऐसे लोग सामने आये हैं, जिनका नारा ही है “नर सेवा, नारायण सेवा”।  

जो नेकी की दीवार बनाते हैं, जो घर घर से बचें पके अन्न संग्रह कर तथा आयोजनों के बाद बचे हुए अवशेष तथा दान में प्राप्त पुराने वस्त्रो से गरीब का पेट भरने तथा उनके तन ढकने कार्य करते हैं, तथा उन धनवानों को भी पुण्य ‌लाभ का अतिरिक्त अवसर उपलब्ध कराते हैं। जिसे देख सुन कर बड़ी ही सुखद अनुभूति होती है, वरना हम मिथकीय मान्यताओं को ढोते हुए मंदिरों, मस्जिदों, गुरद्वारों आदि तीर्थ स्थानों में भटकते ही रहेंगे।

किसी विद्वान का मत है कि – “प्रार्थना करने वाले ओठों से किसी की सहायता में उठने वाले हाथ ‌ज्यादा पवित्र होते हैं आइए हम किसी की सहायता का संकल्प ले।” (अज्ञात)

तभी तो धर्म कर्म की व्याख्या करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा कि-

परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

परपीडा सम नहिं अधमाई।।

(रा०च०मानस०)

इसी सिद्धांत का समर्थन संस्कृत भाषा का यह श्लोक भी करता है।

श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन , दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,

विभाति कायः करुणापराणां , परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||

(अज्ञात)

अर्थात्- कानों की शोभा शास्त्रों के श्रवण से है, कुण्डल पहनने से नहीं। हाथों की शोभा दान देने से है, कंगन पहनने से नहीं। दयालु पुरूषों की शोभा परोपकार से है चंदनादि लेपन से नहीं ।इस लिए शरीर को आभूषण से नहीं सुंदर गुणों से सजाना चाहिए।

इस क्रम में उन दयावानों का अभिनंदन, वंदन, सहयोग तथा समर्थन अवश्य किया जाना चाहिए। जो तन मन धन तीनों से ही नेकी के कार्यों से जुड़े हैं। आप और हम सभी नेक व्यवस्था का अंग बनें औरअंत में  “शुभंभवतु“।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (66-70) ॥ ☆

सर्गः-12

 

जान कुशलता प्रिया की झट मिलने की आश।

जाने सागर पार का, सोचा, सफल प्रयास।।66।।

 

वानर सेना थी प्रबल, भूमि और आकाश।

में जा सब संकट हरण का था अति विश्वास।।67।।

 

सागर तट पर राम जब थे सेना के साथ।

सद्प्रेरित तब विभीषण आये शरण रघुनाथ।।68।।

 

दिया बिभीषण को अभय, वैभव का प्रतिदान।

उचित समय शुभ नीतियाँ करती सुफल प्रदान।।69।।

 

शेषनाग सम विष्णु के सोने हित अनुकूल।

रचा वानरों ने अगम सागर पर एक पुल।।70।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १० फेब्रुवारी – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? १० फेब्रुवारी – संपादकीय  ?

धुंडीराज गणेश बापट:

दिक्षीत धुंडीराज बापट यांचा जन्म सातारा जिल्ह्यातील पाचवड येथे झाला.त्यांनी प्रामुख्याने वैदिक वाड्मयाचे भाषांतर केले.अग्निहोत्र आणि वेदविद्येचे अध्ययन आणि अध्यापन त्यांच्या घराण्यात पिढ्यान् पिढ्या चालत आले आहे.ही परंपरा जतन करण्यासाठी त्यांनी पाचवड येथे स्वाध्याय मंदिर स्थापन केले.तसेच स्वाध्याय हे मासिक काही वर्षे चालू ठेवले.श्री.बापट यांनी वैदिक संशोधन मंडळाच्या श्रौतकोशाचे  संपादन केले.

त्यांच्या कडून झालेली ग्रंथ निर्मिती अशी:–

  1. आर्यांचे संस्कार
  2. ऋग्वेदाच्या ऐतरेय ब्राह्मणांचे भाषांतर
  3. कृष्ण यजुर्वेद भाग 1 व भाग 2 तैत्तिरिय  संहिता
  4. गणपतिअथर्वशिर्ष
  5. वैदिक राष्ट्रधर्म
  6. शुक्ल यजुर्वेद संहितेचे मराठी भाषांतर.

13 फेब्रुवारी1956 ला त्यांचे देहावसान झाले. त्यांच्या स्मृतीस विनम्र अभिवादन.

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ: महाराष्ट्रनायक, विकीपीडिया.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मोक्षमंत्र ☆ श्रीशैल चौगुले

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मोक्षमंत्र ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

तरिही विठ्ठल’ पावतोच

रोज नव्या सूर्योदयात

कितीही झाला सूर्यास्त

क्षितीजात .

विठ्ठल म्हणजे काळी शिवपिंड

कर्मयोगाने भरलेले ब्रम्हांड.

काळोखात दाखवेल रस्ता

जगण्याला ऊजेड

तो काळा पांडुरंग.

कर कटेवर ठेऊन

आशिर्वाद देत ऊभा

पंचमहाभूतास संजीवनी देत.

याकरिताच अनुभवावी

एक तरी वारी

संतांची ओवी कळण्यासाठी

या दशेद्रिंयांची टाळून

प्रदक्षिणा,

आणि नाचावे अभंगात

संतश्लोकांच्या आत्मरंग

रंगवून,चंद्राभागेच्या स्नानात

व्हावे मन शुध्द

गजराचा नाद घुमवीत

टाळ-मृदुंगात

“राम-कृष्ण-हरी”च्या.

 

© श्रीशैल चौगुले

९६७३०१२०९०

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भूमी…. ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ भूमी… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆ 

(वृत्त :पादाकुलक)

इथे मुक्याने रडे हुंदका

ढळती अश्रू इथे कोरडे

जुन्यापुराण्या खपल्यांखाली

ओल व्यथांची खोल भळभळे !

धूसर अंधुक छाया त्यांच्या

केली ज्यांनी दिवेलावणी

कृतज्ञतेच्या ओठांवरती

आठवणींची अजून गाणी !

कधी जयाचे डिंडिम येथे

शारण्याचा डंख जिव्हारी

कधी नभांगण निर्मम येथे

बंदिवान हो गगनभरारी !

होय विस्मृती धनुर्धरांची

काळासंगे घावही भरले

बाणांचे पण उरात स्मारक

निगुतीने नित जपुन ठेवले !

प्रज्ञा प्रतिभा मानव्याचे….

विराट अद्भुत घडता दर्शन

दाटे गहिवर भुईस इथल्या

धन्य तिचा मग होई कणकण !

ही तर भूमी कविह्रदयाची

इथे दिशांचे रुजे तराणे

कवितेचे ये अंबर जन्मा

जन्मा येई कवी नव्याने !

 

© श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ फॅमिली डॉक्टर…☆ सौ ज्योती विलास जोशी

सौ  ज्योती विलास जोशी

?  विविधा ?

☆ फॅमिली डॉक्टर… ☆ सौ ज्योती विलास जोशी 

‘काल रातीला सपान पडलं, सपनात आला त्यो…. न् बाई म्या गडबडले.’ व्हय आक्षी असंच झालं. दिसभर फिरून फिरून त्येलाच बघायचं मंग सपनात बी त्योच येनार की…. मनात असतंय त्येच सपनात दिसतंय असं म्हणत्यात..तर काय म्हनंत होतो म्या?

आमचा ‘फॅमिली डाक्टर’ आलता सपनात… दिसभर थोड्या थोड्या यळानं येतोय तो टीव्हीवर… त्यो आला की बाया बापड्या पोरं सोरं समदी सरसावून बसत्यात टीव्ही म्होरं.. जनु ‘राजेश खन्ना’च आला…. काय तरी नवीन सांगनार म्हनून आमीबी कान टवकारून बसतोय. तोबी लय भारी… काय बाय सांगत बसतोय. कल वायदा केलेली गोष्ट आज होनार नाही उद्याची गोष्ट उद्याच्याला बघू….असं सांगतोय. आम्हीबी एका कानानं ऐकतोय दुसऱ्या कानानं देतोय सोडून…. सोत्ता काय करणार आहे, त्येचा पाढा वाचतोय.आमानी ‘हे करा ते करा’ असं सांगून निघून जातोय.

त्येचा एक मोट्टा भाऊ आहे तिकडं दिल्लीत…. त्यो एकटाच खुर्चीत बसून समजून सांगतोय समद्यास्नी.पर आमचा डाक्टर माणसाळलेला…. माणसांच्या गराड्यात असतूया. फॅमिली डाक्टर हाय ना आमचा?… लोकं बी त्याला लई पिडत्यात. त्याला लई प्रश्न ईचारत्यात. पर लई शांत गडी… न चिडता त्याच त्याच प्रश्नांची परतून परतून तीच तीच उत्तरं देतुया. सारखं ‘नियम पाळा’असं म्हनतोय. औषधोपचार काय बी करत न्हाई. निस्ता कीर्तनावर जोर हाय त्येचा… लई बेस सांगतोय कीर्तन….अजिबात भ्यायाचं नाही. धीर सोडायचा नाही.भगवंताला शरण जायाचं.आम्ही तुमची येवस्था चोख लावनार हाय असं म्हणून आश्वासन देतोय.लई चांगला हाय सभावानं…

त्येचा दिल्लीचा भाऊ गळ्यात टेटसकूप घालतोय. ह्यो घालत नाही. पेशंटला हात दिखून लावत नाही. पर पेशंटची नाडी बराबर ओळखली हाय त्यांनं. लई प्रशिद्ध आहे तो! एकलाच हाय पेशल. त्याला बघितलं की दुखनं पार पळून जातंय.भारी इंग्लिश बोलतोय. एकदम त्येला आमी म्हनलं “कसली कसली विग्लिश नांव घेतायसा,आमच्या काय ध्यानात राहत नाही.तर त्यांनं आम्हाला अगदी सादं करुन सांगितलं… ‘रेमदेसिविर’ इंजेक्शनला रामदेव म्हणायचं *क्वारंटाईन’ला कोरांटी म्हणायचं. आपल्याला अर्थ समजला म्हणजे झालं. परीक्षा थोडीच द्यायची आहे.” असं म्हनला.

टीव्हीमंदी फोटू येऊ दे, म्हनून लई जनं तेच्या म्होर म्होरं करत्यात.तोंडाला ‘टोपी’ घालून काय  सांगतोय ते आमच्या समदं काय ध्यानात येत नाही. त्यो कायम कुनाइशयी तरी तक्रार करत असतोय. पन कुनाचा संशोय घेतोय ते आमालाबी कळत नाही.

‘दिसला ग बाई दिसला’ असं म्हनत त्याची वाट बघनारे त्येला बघून हरखतात. टीव्हीसमोर तोंडं आ वासून बसत्यात . आमच्याकडं बघूनशान आमच्या बापयास्नी डोक्यावरली टोपी तोंडावर घ्या म्हनून आणि आमाला नाकाला पदर लावाया सांगतोय….

आम्ही परवा त्याला म्हटलं,”आम्हाला लई भ्या वाटतंय…” तर हसला अन् म्हनला “काय भ्यायचं त्यात? गेला की रोग पळून…”त्यो तसं म्हनल्यावर आमच्या मनातलाबी रोग पळून गेला की वं …त्याला बघूनच निम्मं दुखनं कमी हुतय म्हना की!आमच्यातली एक धटिंगण परवा त्येला म्हनाली, “काय वं डाक्टर, तुम्ही आजारी पडत नाहीसा कवा? त्यो हसला जोरात.. एवढ्या जोरात हसला की वादळ आलं.आमी घाबरलो.

“अहो मी पण माणूसच आहे तुमच्या सारखा.आजारी पडणारच की! पण मी नियम पाळतो. केव्हातरी नियम तोडला आणि आला रोग भेटीला… तेव्हाच त्यानं माझ्या कानात सांगितलेलं गुपित मी तुम्हाला सांगतोय.”

‘मुस्कट बांधा’ हेच ते गुपित हुतं… खरंच ‘देव मानूस’ हाय आमचा डाक्टर… आरारारा…. देवमानसाची उपमा दिऊन चुकलो की रं देवा….. शिरीयल मधला’देवमानूस’ मर्डर केलाय म्हनं आज …जाऊ दे…. आपण आपल्या डाक्टरला निस्त ‘देव’ म्हनूया.पर ह्योच देव ‘ज्योतीष सांगनार, भविष्य सांगणार’ असं म्हनत येतोय रातच्याला आणि पुढली समदी संकटं आमच्या म्होरं सांडून पायात साप सोडतोय. म्हनून तर आमास्नी गडबडाया हुतंय, ह्यो सपनात आला म्हंजी… दुसऱ्या दिवशी त्येला ईचारलं की सपनात येऊन ते काय सांगून गेलासा? समदं खरं हाय काय? तर हसला गालांत जीब घालून… “स्वप्न तुम्ही पाहिलं ना? मग तुम्ही सांगा मी तुम्हाला काय म्हणालो ते?”आमानी काय समजलं याची परीक्षा बघत हुता जनू…. सपान आटवून आटवून आमच्याबी डोस्कीचा भुगा झाला.

“हां, दुसरी लाट का काय म्हनलासा, त्यात आमी वाऊन जाणार… बुरशीवानी काय तरी व्हऊन जीव जानार… तिसर्‍या लाटंत आमच्या पोरास्नी जपाय पाहिजे…. समदं खोटं ना? मी बी काय ईचाराया लागले तुमानी. सपान सपानच असतय नव्ह? पर तुमी जाता जाता एवढंबी म्हटलासा ‘मुस्कट बांधा’ मग यातलं तुम्हाला कायबी हुनार न्हई….. म्हनालासा नव्ह?” पुना एकवार गडगडाटी हसला त्यो……’चक्रीवादळ’आल्यागत वाटलं.

चार रोज कुठं त्यो आलाच न्हाई.बेपत्ताच हुता.आमी मुस्कट बांधत न्हाई म्हनून चिडला वाटतं… म्हनून आमी पटापट मुस्कट बांधलं आणि बसलो घरात.तर आला बघा दार ठोठावत.. तो काय बोलायच्या आतच आमी त्येला ईचारलं, “काय डाक्टर कुठं होतासा चार दीस? तिकडं चक्रीवादळ आलंत तिकडे गेलंतासा वाटतं…..

कवाबी न चिडणारा त्यो अचानक चिडला.”त्या वादळाचा आणि माझा काही संबंध नाही. त्या विषयाचा मी डॉक्टर नाही.त्याची माहिती तुम्हाला दुसरे डॉक्टर सांगतील. वाटल्यास मी त्यांचा पत्ता तुम्हाला देईन. एका वादळानंच अगोदर माझं डोकं गरगरायला लागलं ते दुसरं वादळ कशाला बघायला जाऊ मी?….”

वादळाचा फटका अमानी बी बसलाय… डोस्कं गरगराया लागलय आमचं बी… असं म्हणून आमीबी टीव्ही बंद करून टाकला. ईषय कट म्हणजे ईषय कट….हुश्श… रामा!  शिवा!! गोविंदा!!!

© सौ ज्योती विलास जोशी

इचलकरंजी

मो 9822553857

jvilasjoshi@yahoo.co.in

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ मारुती – भाग पाचवा ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

? जीवनरंग ❤️

☆ मारुती – भाग पाचवा ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर ☆

(कथासूत्र :  ‘तुमच्या पापामुळे होणारा माझ्या अंगाचा दाह असह्य झाला, तर मी निघून जाईन,’ हा मारुतीचा निरोप भावड्याने लोकांना सांगितला ……)

आता प्रत्येकजण एक दुसऱ्याकडे बघायला लागला. पापाची खाण म्हणजे सावकार. त्याने लोकांना खूपच लुबाडलं होतं. पण त्याने विचार केला, ‘तसं लोकांना फसवून मी बक्कळ पैसा   कमावला. पण खरं पाप तर जगन्याने केलंय. शेजाऱ्याच्या बायकोशी चोरटे संबंध ठेवलेयत आणि राजरोस मिरवतोय सभ्य म्हणून.’  जगन्याच्या मते  ‘माझीतर एकाच बाईबरोबर भानगड आहे, पण पाटील तर…. किती बाया आल्या आणि किती गेल्या..’  पाटलाला वाटतंय……

“ऐका ss,”पुन्हा एकदा भावड्याने आरोळी मारली,”देव थकलाय आता.त्याला विश्रांती घ्यायचीय. रात्रही झालीय. तेव्हा आता सगळ्यांनी आपापल्या घरी जा. उद्या सकाळी दहाला पूजा होईल. त्यानंतर दर्शनाला या.”

म्हातारीने दगड्यापुढे दंडवत घातला, “द्येवा, माफ कर मला. माझ्या या गुणी पोराच्या अंगावर मी वसवस करत राह्यले. त्याचं पुण्य दिसलंच नाही बघ माझ्या डोळ्याला.”

दादल्या आणि चिमीनेही नमस्कार  करुन माफी मागितली.

“वैनी, मारुतीरायाचं ताट वाढ. मी भरवतो देवाला.”

कोणाच्याही नकळत भावड्याने जेवणात औषध मिसळलं आणि तो दगड्याला प्रेमाने भरवू लागला.  डाळभाताचं ते मिळमिळीत जेवण दगड्याच्या घशाखाली उतरेना.

“हे बघ, दगड्या, देवाने काय सांगितलं, ते ऐकलंस ना? तू पुण्यवान आहेस, म्हणून मारुती तुझ्या अंगात आला. आता, मारुतीने पुढे काय सांगितलं, ते मी सगळ्यांसमोर बोललो नाही. म्हटलं, लोक गेले की तुला सांगूया.”

“काय म्हणाला मारुती?”सगळ्यांचेच कान टवकारले.

“मारुती म्हणाला, ‘दगडू पित होता, ते त्याच्याकडून अजाणतेपणे घडलं. पण यापुढे त्याने जर ती चूक केली, तो एक घोट जरी दारू प्याला, तरी माझ्या गदेने त्याच्या डोक्याचा चेंदामेंदा करुन टाकीन.’ हे मरेपर्यंत लक्षात ठेव, दगड्या. यापुढे दारूला स्पर्शही करू नकोस. नाहीतर तो तुझ्या आयुष्यातला शेवटचा दिवस ठरेल. कळलं?”

दगड्या घाबरला. खरोखरच घाबरला. खूप खूप घाबरला. त्याने स्वतःच्याच डोक्यावर हात ठेवून शपथ घेतली, “मारुतीराया, तुझी शपथ घेऊन सांगतो, यापुढे दारूला हातही लावणार नाही.”

दुसऱ्या दिवशी दहानंतर गर्दी जमायला लागली. तेव्हा भावड्याने जाहीर केलं – ” काल मध्यरात्री मारुतीरायाने मला पुन्हा दृष्टांत दिला. मी त्याला विनंती केली,’देवा, मारुतीराया, तुझ्या दर्शनासाठी येणाऱ्या बऱ्याच जणांच्या हातून पाप घडलंय. त्याचा तुला त्रास होतोय, हे मला ठाऊक आहे. पण तू अचानक असा आमच्याकडे पाठ फिरवून जाऊ नकोस. आणखी एक-दोन दिवसतरी थांब. कोणी आतापर्यंत येऊ शकले नसतील,उद्या-परवा येतील, त्यांना दर्शन दे.मग हळूहळू अंतर्धान पाव.’ तो राजी झाला. म्हणा – जय हनुमान.”

सगळ्यांनी त्याच्या पाठोपाठ ‘जय हनुमान’चा घोष केला.

तिसऱ्या दिवशी रात्रीपर्यंत चेहऱ्यावरची सूज अर्धीअधिक कमी झाली होती.

चौथ्या दिवशी दगड्या उठला, तेव्हा त्याच्या चेहऱ्यावरची मारुतीसूज पूर्णपणे उतरली होती.

नंतर भावड्या मुंबईला परतला आणि दवाखान्यात कंपाउंडरच्या कामावर रुजू झाला.

दगड्याने दारू सोडली व तो व्यवस्थित कामाला लागला.

पण अजूनही त्या गावांत दगड्याच्या अंगात आलेल्या मारुतीरायाच्या कथा भक्तिभावाने, श्रद्धापूर्वक सांगितल्या-ऐकल्या जातात.

समाप्त

© सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

संपर्क –  1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ आत्मसंवाद…भाग ३ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

? आत्मसंवाद – भाग ३ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ?

(सिडनीमध्ये परदेशी स्त्रीकडून भारतीय पुरुषांची नक्कल)

“आणखी कुठच्या क्षेत्रात मुशाफिरी करायला मिळाली?”

“एका मैत्रिणीच्या सांगण्यावरून ‘आकाशवाणी’ मुंबई, इथे प्रवासावरील दोन लेख लिहून पाठविले. काही दिवसांनी त्यांचे रेकॉर्डिंगसाठी बोलावणे आले तो एक वेगळाच अनुभव होता.”

” फक्त प्रवास वर्णनांचे  प्रसारण झाले की….”

‘ऑल इंडिया रिटायर्ड पर्सन्स असोसिएशन’ यांच्यातर्फे आनंदी वार्धक्य या कार्यक्रमात भाग घेता आला. तसेच आम्ही मैत्रिणींनी एकदा गाणी गोष्टी वेगळेअनुभव यांचा एक सुंदर गजरा आकाशवाणीवरून सादर केला. त्याचे लेखनही मीच केले होते.”

“याला श्रोत्यांचा प्रतिसाद मिळत होता का?”

“माझ्या अपेक्षेपेक्षा जास्त! प्रथम मला वाटायचे की, या टीव्हीच्या जमान्यात रेडिओ कोण ऐकतो? पण तसं नाहीये . रेडिओचे कार्यक्रम नियमित ऐकणारे श्रोते महाराष्ट्रभर पसरलेले आहेत. माझे प्रवास लेख आवडल्याचे अनेकांनी आकाशवाणीवर कळविले. त्यामुळे मला अशा प्रकारचे दहा कार्यक्रम प्रसारित करायची संधी मिळाली.”

“मला आठवतं की तुझ्या “अन्नब्रह्म” या कार्यक्रमाला सर्वात जास्त प्रतिसाद मिळाला होता. काय सांगितलं होतंस तेंव्हा?

“जे जे देश बघितले तिथल्या हवामानानुसार ,पिकानुसार तिथे बनवले जाणारे विविध पदार्थ यात सांगितले होते. व्हिएतनाममध्ये तळ्यात उगवणाऱ्या गुलाबी कमळाच्या देठापासून फुलापर्यंत प्रत्येक भाग विविध पदार्थांमध्ये वापरला जातो तर कंबोडियामध्ये अननस, आंबा, फणस यांच्याबरोबरच खेकडे, कोळी यांचे वेफर्ससुद्धा मिळतात. तसंच आपल्या आदिवासींमध्ये लाल डोंगळ्यांची चटणी करून खाण्याची पद्धत आहे असा माहितीपूर्ण आणि मजेशीर विषय होता.”

” खरं आहे. अन्नब्रम्हाचा मार्ग ब्रह्मांडं व्यापणारा आहे. मला वाटतं एकदा  टीव्हीवर सुद्धा कार्यक्रम झाला”.

“हो ऑल इंडिया रिटायर्ड पर्सन्स’ असोसिएशनतर्फे मी व डॉक्टर आचरेकर यांच्याबरोबर ज्येष्ठ नागरिकांचे प्रश्न व त्यावरील उपाय यांची चर्चा झाली. तोही एक एक वेगळा अनुभव. तसंच  रविराज गंधे यांनी एकदा ‘अमृतवेल’ या त्यांच्या टीव्हीवरील कार्यक्रमात  माझ्या ‘देशोदेशींचे नभांगण’ या पुस्तकाचा परिचय करून दिला .”

“मला आठवतं की तू वेगवेगळ्या मंडळांमध्ये व्याख्यानासाठीसुद्धा जात होतीस”.

“हो. दादरपासून डहाणूपर्यंतच्या अनेक वनिता मंडळात व ज्येष्ठ नागरिक संघात वेगवेगळ्या विषयांवर भाषण करण्याची संधी मिळाली.”

“यात फक्त प्रवासातील अनुभव सांगितलेस की…..”

“प्रवासातील अनुभव  व इतर गमतीजमती तर सांगितल्याच.  एकदा दहावीच्या विद्यार्थ्यांसमोर पालकांच्या भूमिकेतून बोलायला मिळाले. मातृदिनानिमित्त झाशीची राणी, जिजाबाईंपासून आधुनिक  स्त्रीपर्यंत विचार मांडले. रोटरी इंटरनॅशनल क्लबमध्ये ‘जर्नी ऑफ लाइफ’ यावर भाषण केले. स्त्री दिनानिमित्त ‘स्त्री ही सबलाच आहे’ या विषयावर बोलले. “

“अशा भाषणांसाठी वेगळा अभ्यास करावा लागला असेल ना?

“अशी माहिती जमवताना आपल्या ज्ञानात भर पडते. मुख्य प्रश्न असतो तो अभिव्यक्तीचा! समोरच्या श्रोत्यांना आपल्याला पहिल्या तीन-चार मिनिटातच आपल्या विषयाकडे आकर्षित करून घ्यावं लागतं आणि मग त्या विषयाचा विस्तार सहजपणे होतो.”

” म्हणून तर वक्तृत्व कला चौसष्ट कलांमध्ये समाविष्ट आहे”.

“कार्यक्रमांचे निवेदन करतानाही असाच अभ्यास करावा लागतो. गीतरामायण, पावसाळी गीते अशा काही कार्यक्रमांचे निवेदन केले. “

“निवेदनालाही भाषणासारखी तयारी करावी लागते का?”

“निवेदकाला प्रामुख्याने हे लक्षात ठेवावे लागते की निवेदकाचे काम हे फुलांच्या गजऱ्यामधल्या  दोऱ्यासारखे आहे. योग्य शब्दात  आधीच्या व पुढच्या गाण्याची जोड कुशलतेने करून द्यावी लागते.  कधी एखादी त्या गाण्यासंबंधी आठवण किंवा प्रसंग थोडक्यात सांगावा लागतो. “

“म्हणजे हा गाण्यांचा कार्यक्रम आहे.निवेदनाचा नाही हे लक्षात ठेवायचं.”

“बरोबर. अनेक वेळा महिला मंडळं, गणेश उत्सव यांच्यातर्फे घेतलेल्या स्पर्धा, शालेय विद्यार्थ्यांच्या स्पर्धा यासाठी परीक्षकाचे काम केले.” 

“म्हणजे तेंव्हा अगदी व्यस्त दिनक्रम होता म्हणायचा”.

“व्यस्त पण आवडीचा”. याच सुमारास “मराठी प्रवास वर्णन लेखक वाचक मंच” यांच्यातर्फे महिला दिनाला सन्मानपत्र मिळाले.”

“म्हणजे तुझ्या अनेक प्रांतातल्या मुशाफिरीची दखल घेतली गेली म्हणायची.”

 आत्मसंवाद भाग – ३ समाप्त

 © सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ उ ध ळ ण ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक

श्री प्रमोद वामन वर्तक

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

☆ ? उ ध ळ ण !  ? ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक  

 

अनवट अनोख्या रंगांचा

आकाशी भरला मेळा,

काय पाहू, किती पाहू

प्राण जमा जाहले डोळा !

*

पाहून नजारा अनोखा

झाले मंत्रमुग्ध मम मन,

त्याच्या पोतडीतील रंगांची

मनास झाली खरी जाण !

चित्र  – श्री प्रमोद वामन वर्तक

स्थळ – बेडॉक रिझरवायर, सिंगापूर

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

०६-०२-२०२२

(सिंगापूर) +6594708959

मो – 9892561086

ई-मेल – pradnyavartak3@gmail.com

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘खामोशियों की गूंज ’ – अदिति भादौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय

 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘खामोशियों की गूंज ’ – अदिति भादौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय

कागज़ पर कलम से खुद को सींचना …..यानी अदिति भादौरिया की कविताएं – कमलेश भारतीय

अदिति भादौरिया फेसबुक पर मिलीं और पाठक मंच से भी जुड़ीं । एक पत्रिका की सहसंपादिका भी बनीं और लघुकथा में भी सक्रिय हैं । पहला पहला कविता संग्रह आया है- खामोशियों की गूंज । इच्छा भी आई फोन पर कि कुछ लिखूं , कुछ कहूं । आखिर इन खामोशियों की गूंज सुनी और यही लगा कि कवयित्री कह रही है कि कागज़ पर कलम से खुद को सींचती हैं अदिति यानी हर लेखक ।

कागज़ पर कलम से खुद को सींचती हूं मैं

अश्कों के प्रवाह को सीने में भरकर देखा है

क्योंकि खामोशी के शब्दों को मैंने

पलकों की स्याही से सोखा है ।

अदिति की कविताओं में आम लड़की की चाहें , प्यार , विरह , गृहस्थी और समाज सब आते हैं । वे कहती हैं :

मैं पाना चाहूं वह उड़ान

जो आशाओं को थामेगी।

अदिति ने पति , परिवार और बच्चों पर अपने प्रेम की कवितायें भी इसमें शामिल की हैं । कुछ भी छिपाया नहीं । तभी तो कहती हैं :

हां छिपाना चाहूं तुझसे मैं जख्म अपने

पर टूटा आइना कहे मुझे तेरा अक्स छिपाऊं कैसे ?

कोई भी लेखक समाज का ही अक्स दिखाता है । अपने आसपास का अक्स दिखाता है ।

अपनी कलम से अदिति कहती है

न डरना , न घबराना तुम

शब्दों को बुनते जाना तुम ।

खामोशियों की गूंज में गज़लें भी हैं तो दो दो चार चार पंक्तियों की छोटी छोटी कविताएं भी और गीत भी । सपने पर लिखी कविता पहचान लिखी है और पहचान यह है कि :

#आशा की किरणों को थामे

मैं राह अपनी चुनता हूं ,,,

छोटी छोटी कविताओं में से एक :

#बनना चाहती हूं एक ऐसा आसमान

जहां मैं उड़ सकूं और सुन सकूं

वो धड़कनें जो मेरे दिल में भी धड़कती हैं ।

,,,,,

काश ! कोई समझ पाये

कि मौत सिर्फ चिता पर ही नही होती

बल्कि झूठी मुस्कुराहटें ओढ़ने से भी होती है ।

,,,,,

हंसने के लिए मुस्कुराहटें नहीं

बल्कि नकाब की जरूरत पड़ती है

आजकल ,,,

लोग हैं चारों तरफ

फिर भी तन्हाई क्यों लगती है

क्यों भीड़ में खो जाती हूं मैं

हर पल बस अपनी ही तलाश में रहती क्यों हूं मैं ?

 

यह तलाश जारी रहनी चाहिए अदिति और इसकी भूमिका लिखी है लालित्य ललित ने । शुभकामनाएं । बधाई । अगले काव्य संग्रह या लघुकथा की प्रतीक्षा रहेगी ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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