हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 79 – दोहे – शिमला संदर्भ   ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे – शिमला संदर्भ  ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 79 –  दोहे – शिमला संदर्भ   ✍

 

सुबह धूप घुटनों चली, दोपहर हुई जवान।

शिमला सोयी शाम को, करके कन्यादान।।

 

ऊंचे नीचे रास्ते, उखड़ी उखड़ी सांस।

शिमला तेरी गली में, गड़ी गजब की फांस।।

 

सुंदर सुंदर दृश्य है, सुंदर-सुंदर लोग।

शिमला क्या तुझसे कहें, नदी नाव संयोग।।

 

सुजन सुमन संयोगवश, मिलता है परिवेश।

शिमला तू तो लग रहा, गंध प्रिया का देश।।

 

बैठ पराए देश में, अपने आते याद।

लख शिमला के चांदनी, मन करता संवाद।।

 

सर -सर चलती पवनिया, फर- फर उड़ते केश।

शिमला की सरगोशियां, प्रियतम का संदेश।।

 

घाटी घाटी गूंजती, देवदारू दरबान।

सुनो शिमला राधिके, कान्हा का आव्हान।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 79 – “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 79 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका”|| ☆

मूर्ति हो

साकार ज्यों

पाषाण-

अनगढ़ की ।।

 

गगन में बिखरी

हुई सुषमा ।

कौन क्या दे-दे

तुम्हें उपमा।

 

तुम विरह-

रत  लगी हो

राधा किशन-

गढ़ की ।।*

 

द्वार के बाहर

उँकेरी  स्वस्तिका।

स्वर्ण अक्षर में

लिखित सी पुस्तिका।

 

दृष्टि में

आयी हुई-

अनजान,

अनपढ़ की ।।

 

नेत्र से टपके

सहज जल से ।

लौट कर आये

हिमाचल से ।

 

पखेरू जो

कला हैं

निश्चित किसी

गढ़ की ।।

(*किशन गढ़ चित्र कला की एक शैली / राजस्थान कलम)

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-02-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 23 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 23 ??

नौचंदी मेला-  मेरठ में प्रतिवर्ष लगने वाला नौचंदी मेला हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। नवचंडी का अपभ्रंश कालांतर में नौचंदी हो गया।  नौचंदी देवी  एवं हजरत बाले मियाँ की दरगाह एक दूसरे के पास हैं। मंदिर में भजन और दरगाह पर कव्वाली का अद्भुत दृश्य इस मेले में देखने को मिलता है। घंटी और शंख के बीच अजान की आवाज़ और मंत्रों के उच्चारण का इंद्रधनुष इस मेले में खिलता है। नौचंदी मेला सामासिकता और एकात्मता का जीता जागता उदाहरण है। यह मेला चैत्र मास की नवरात्रि से एक सप्ताह पहले आरंभ होता है तथा एक माह तक चलता है।

शहीद मेला-  1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय की घटना है। 14 अगस्त 1942 को मैनपुरी के बेवर नामक स्थान पर कुछ छात्रों ने ध्वज यात्रा निकाली। छात्रों और देशप्रेमी जनसमुदाय ने थाने पर कब्जा कर लिया। अतिरिक्त पुलिस बल बुलाकर इन्हें वहाँ से हटाया गया। अगले दिन 15 अगस्त 1942 को थाने पर भीड़ ने भारत का झंडा फहरा दिया। पुलिस ने गोलियां चलाईं। इस कांड में 14 वर्षीय कृष्ण कुमार, 42 वर्षीय जमुना प्रसाद त्रिपाठी, 40 वर्षीय सीताराम गुप्त  शहीद हो गए।

शहीद अशफाकउल्ला का एक प्रसिद्ध शेर है,

शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।

संभवत: ऐसी ही कोई भावना रही होगी कि इस बलिदान की स्मृति में 1972 में स्वर्गीय जगदीश नारायण त्रिपाठी ने ‘शहीद मेला’ आरंभ किया। स्वाधीनता के युद्ध में शहीद हुए लोगों के स्मृति में यह मेला 19 दिनों तक चलता है। यहाँ शहीद मंदिर भी है। शहीदों की फोटो प्रदर्शनी, शहीदों के परिजनों का सम्मान ,स्वतंत्रता सेनानी सम्मान, रक्तदान , राष्ट्रीय एकता सम्मेलन इसे विशिष्ट बनाते हैं।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण # 126 ☆ “यादों में रानीताल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है बैंकर्स के जीवन पर आधारित एक अतिसुन्दर संस्मरण यादों में रानीताल”।)  

☆ संस्मरण # 126 ☆ “यादों में रानीताल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

कल जबलपुर के रानीताल की बात निकल आयी भत्तू की पान की दुकान पर ,,  

ठंडी सुबह में दूर दूर तक फैला कोहरा… रानीताल के सौंदर्य को और निखार देता था । चारों तरफ पानी और बाजू से नेशनल हाईवे से कोहरे की  धुन्ध में गुजरता हुआ कोई ट्रक ……… 

पर अब रानीताल में उग आए हैं  सीमेंट के पहाड़नुमा भवन ……….।

परदेश में बैठे लोगों की यादों में अभी भी उमड़ जाता है रानीताल का सौंदर्य ……

पर इधर रानीताल चौक में आजकल लाल और हरे सिग्नल मचा रहे हैं धमाचौकड़ी ………।

यादों में अभी भी समायी है वो रानीताल चौक की सिंधी की चाय की दुकान जहाँ सुबह सुबह 15 पैसे में गरम गरम चाय मिलती थी । 

रात को आठ बजे सुनसान हो जाता था रानीताल चौक ……… रिक्शा के लिए घन्टे भर इन्तजार करना पड़ता था,अब ओला तुरन्त दौड़ लगाकर आ जाती है ।

संस्कारधानी ताल – तलैया की नगरी……

किस्सू कहता “ताल है अधारताल, बाकी हैं तलैयां ” फिर सवाल उठता है इतना बड़ा रानीताल ? 

रानीताल चौक, रानीताल श्मशान, रानीताल बस्ती, रानीताल मस्जिद और रानीताल के चारों ओर के चौराहे……. पर अब सब चौराहे बहुत व्यस्त हो गए हैं चौराहे के पीपल के नीचे की चौपड़ की गोटी फेंकने वाले अब नहीं रहे पीपल के आसपास गोटी फिट करने वाले दिख जाते हैं……… कभी कभी।

अहा जिंदगी…

अहा यादों में रानीताल……..

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 70 ☆ # युद्ध की मानसिकता # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# युद्ध की मानसिकता  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 70 ☆

☆ # युद्ध की मानसिकता # ☆ 

जब आसमानों में

फायटर प्लेन उड़ते हैं

विनाशकारी बम

उससे गिरते हैं

विध्वंसक मिसाइलें

दागी जाती है

निरपराध लोगों को

मौत आती है

चारो तरफ कोहराम

मच जाता है

जमीन पर प्रलय छा जाता है

प्रश्रय  के लिए

लोग कहाँ कहाँ  भटकते हैं

डर और तबाही देख

अपना सर पटकते है

विभत्स फैली हुई लाशें

तो कहीं रूकती हुई सांसें 

कितना वीभत्स  मंजर

होता है

मानवता के सीने में

चुभता हुआ खंजर होता है

चारों तरफ

रूदन और क्रंदन

बरसते हुए बम दनादन

 

सदियों से यही तो

होता आया है

शक्तिशाली ने

कमजोर को

हमेशा दबाया है

अपनी झूठी जीत पर

अट्टहास लगाते हैं

अपनी गुंडागर्दी पर

खुशियां मनाते हैं

 

विश्व हो या,

देश,

समाज

यही तो हो रहा है आज

युद्ध में दोनों पक्ष

एक दूसरे को

तबाह करते हैं

अपने उन्माद में

यह गुनाह करते हैं

 

क्या शोषण, उत्पीडन,

गुंडागर्दी और हिंसा

समाप्त हो पायेगी ?

क्या विश्वपटल पर

भाईचारा, सद्भभाव

समता और शांति आयेगी /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (36-40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (36 – 40) ॥ ☆

सर्गः-13

 

और है मुनी अगस्त का यह आश्रम-स्थान।

जिनने इंद्रपद से किया ‘नहुष’ को क्षण में म्लान।।36।।

 

उनके छवि के धूम को छू और पाके गन्ध।

लगता मुझको बढ़ रहा सतोगुण से सम्बंध।।37।।

 

सातकर्णि मुनिका वहाँ पम्पासर तालाब।

मेघ घिरे से चंद्र सम वह दिखते जहाँ आप।।38।।

 

कुश पर ही करते थे ऋषि, वन-मृग सँग निर्वाह।

तब बल से डर इन्द्र ने भेजी पाँच अपस्रायें।।39।।

 

मुनि के जल प्रासाद का वाद्य घोष औं गान।

से हो गया प्रभावित क्षण भर पुष्प विमान।।40।।

            

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २८ फेब्रुवारी – संपादकीय – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? २८ फेब्रुवारी –  संपादकीय  ? 

आज विज्ञान दिन. मानवी जीवन सुखी व्हावे म्हणून विविध सुविधा निर्माण करणारे शास्त्रज्ञ , वैज्ञानिक, संशोधक यांना शतश: प्रणाम.

गजमल माळी

आज गजमल माळी यांचा जन्म दिन. (३१ मार्च १९३४) मराठी भाषेतील लेखक, कवी , नाटककार आणि चिंतांनापर मानवतावाद या विषयावरील महत्वाचे लेखक म्हणजे गजमल माळी ते मराठवाडा साहित्य परिषदेचे त्याचप्रमाकणे अखिल भारतीय साहित्य परिषदेचे अध्यक्ष होते. शिक्षणतज्ज्ञ होते. तसेच मुद्रण व्यवसायातील आघाडीचे प्रणेते होते. सत्यशोधक समाजाचे ते खंदे कार्यकर्ते होते.

गजमल माळी. औरंगाबाद कॉलेजच्या स्थापनेपासून(१९७१)  कॉलेजचे प्राचार्य होते. तरुण लेखकांना सतत प्रोत्साहन देणारे आणि लिहिते करणारे प्राध्यापक साहित्यिक म्हणून त्यांची ओळख होती. त्यांची ३ काव्यसंग्रह, ५ संपादित पुस्तके, लोकसाहित्य शब्दकोशाचे संकलन व सत्यशोधक समाजावरील पुस्तके आहेत. ‘राजकीय सत्तांतर’ या सामाजिक, राजकीय विषयाला वाहिलेल्या साप्ताहिकाचे ते संस्थापक संपादक होते. सत्यशोधक चळवळीतील उपेक्षित व समर्पित कार्यकर्त्यांची त्यांनी आदरपूर्वक दाखल घेतली. 

गजमल माळी यांची पुस्तके –

१.    कल्पद्रूमाची डहाळी – नाटक – मूळ कथालेखक फ्रांन्सिस दिब्रिटो

२.    कामायनी- कादंबरी

३.    गांधवेणा – कविता संग्रह

४.    ज्ञानोबा कृष्णाजी सासणे – चरित्र ग्रंथ

५.    नागफणा आणि सूर्य- खांडकाव्य

संपादित ग्रंथ –

१.    तुकारामाचे निवडक १०० अभंग

२.    म.फुले व चिपळूणकर ( वैचारिक)

३.    म.फुले निवडक विचार ( वैचारिक)

४.    राष्ट्रीय कोंग्रेस आणि सत्यशोधक समाज ( वैचारिक)

५.    वैदिक धर्म परंपरा आणि महात्मा फुले.  ( वैचारिक)

   गजमल माळी यांना मिळालेले पुरस्कार

१.    कल्पद्रूमाची डहाळी या नाटकास उत्कृष्ट नाट्यलेखनाचा महाराष्ट्र शासनाचा पुरस्कार

२.    ज्ञानोबा कृष्णाजी सासणे या ग्रंथाला मराठी साहित्य परिषदेचा पुरस्कार

३.    नागफणा आणि सूर्य या पुस्तकाला नागपूऱथील डॉ. दुर्गेश पुरस्कार

४.    म.फुले आणि चिपळूणकर या ग्रंथाला महाराष्ट्र शासनाचा उत्कृष्ट समीक्षा लेखनाचा पुरस्कार

५.    वैदिक धर्म परंपरा आणि महात्मा फुले या ग्रंथाला मथुराबाई पिंगळे पुरस्कार . 

अशा या बहुआयामी लेखकाचा आज स्मृतिदिन. त्यानिमित्त त्यांच्या लेखनकार्यास मानवंदना.

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी, गूगल विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ एक मात्र मी तरंग…. ☆ सौ.मंजुषा आफळे

सौ.मंजुषा आफळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ एक मात्र मी तरंग… ☆ सौ. मंजुषा आफळे ☆

गजबजलेला गाव इथे

मुखवट्यावर नाना रंग

खरा चेहरा शोधणारा

हा एक मात्र मी तरंग

 

माया मोहात गुंतलासे

अवतीभवतीचा संग

कोण माझा? भेटेल कधी?

रे, एक मात्र मी तरंग

 

आज इथे दिसतात की

वागण्याचे वेगळे ढंग

गर्दीत असा भांबावला

तो एक मात्र मी तरंग

 

कुणीतरी पाठीशी आहे

जाणून घेण्यात मी गुंग

हरलो नाही, ना थांबलो

जो एक मात्र मी तरंग

 

हलकेच परीघ  मोठा

करण्यात सतत दंग

तल्लीन कार्यातच मग्न

बा, एक मात्र मी तरंग

 

क्षणिक अस्तित्व इथले

अर्थपूर्ण जगतो भृंग

निसर्ग गुरुस्थानी असे

नी, एक मात्र मी तरंग

 

ज्ञानकण ते वेचताना

भले ते करण्याचा चंग

यत्न तो देव जाणाणारा

की एक मात्र मी तरंग

 

© सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 71 ☆किंमत अन्नाची…☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 71 ? 

☆ किंमत अन्नाची…☆

कण कण अन्नाचा

किती आहे महत्वाचा

केव्हा कळेल याची किंमत

दिवस तो कधी उगावायचा…

 

श्रीमंती आहे म्हणून

पार्ट्या कुठे रंगतात

तिथे जेवणारे गर्विष्ठ

अन्न वाया घालवतात…

 

कधी कळेल मर्म अन्नाचे

समजेल कधी महत्व त्यांना

माज द्रव्याचा भिनला अंगी

घालतात ऐसा, हा धिंगाणा…

 

करावी किंमत अन्नाची

ती गरज, आहे नेहमीची

श्रीमंती नसतेच कायमची

सावली पहा, मध्यानाची…

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार–पुष्प – भाग ६ – अनुकरण ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर

डाॅ.नयना कासखेडीकर

[भारतीय संस्कृतीतमध्ये आपल्या जीवनात असणार्‍या गुरूंना अर्थात मार्गदर्शन करणार्‍या व्यक्तिंना अत्यंत महत्वाचे स्थान आहे, हे महत्व आपण शतकानुशतके वेगवेगळ्या पौराणिक, वेदकालीन, ऐतिहासिक काळातील अनेक उदाहरणावरून पाहिले आहे. आध्यात्मिक गुरूंची परंपरा आपल्याकडे आजही टिकून आहे. म्हणून आपली संस्कृतीही टिकून आहे.

एकोणीसाव्या शतकात भारताला नवा मार्ग दाखविणारे आणि भारताला आंतरराष्ट्रीय विचारप्रवाहात आणणारे, भारताबरोबरच सार्‍या विश्वाचे सुद्धा गुरू झालेले स्वामी विवेकानंद.

आपल्या वयाच्या जेमतेम चाळीस वर्षांच्या आयुष्यात, विवेकानंद यांनी  गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस यांचे शिष्यत्व पत्करून जगाला वैश्विक आणि व्यावहारिक अध्यात्माची शिकवण दिली आणि धर्म जागरणाचे काम केले, त्यांच्या जीवनातील महत्वाच्या घटना आणि प्रसंगातून स्वामी विवेकानंदांची ओळख या चरित्र मालिकेतून करून देण्याचा हा प्रयत्न आहे.] 

?  विविधा ?

☆ विचार–पुष्प – भाग ६ – अनुकरण ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

मुलं अनुकरणप्रिय असतात. घरात आपले आई वडील कसे वागतात, कसे बोलतात, कपडे काय घालतात, नातेवाईकांशी कसे संबंध ठेवतात हे सर्व ते रोज बघत असतात. त्यांच्या सवयी काय आहेत ,कोणत्या आहेत? हे मनात साठवत असतात. मुली असतील तर त्या आईची नक्कल करतात,उदा. भातुकली च्या खेळात मुली आईची भूमिका नेहमी करत असतात. आजही. मुले वडिलांची नक्कल करतात. म्हणजे आई वडील या नात्याने आपल्या मुलांच्या भविष्यात चांगले काही घडण्यासाठी ची आईवडिलांची जबाबदारी किती मोठी असते हे लक्षात येईल. घरात जसे वातावरण असेल तशी तशी मुलं घडत जातात. 

नरेंद्रही अशा वेगळ्या वातावरणात घडत होता. १८७७ मध्ये नरेंद्र विश्वनाथबाबूंच्या बरोबर रायपूर येथे राहत होता. तेथे शाळा नव्हती. त्यामुळे ते स्वत:च नरेंद्रला शालेय पाठ्यपुस्तकाशिवाय इतिहास तत्वज्ञान, साहित्य विषय शिकवीत असत. शिवाय घरी अनेक विद्वान व्यक्तीं येत असत. त्यांच्या चर्चाही नरेंद्रला ऐकायल मिळत असत. त्याचं वाचन इतकं होतं कि, तो वादविवादात पण सहभागी होत असे. नरेंद्रची बुद्धी आणि प्रतिभा बघून ते वेगवेगळ्या विषयांवर मोकळेपणी मत मांडण्याची संधी नरेंद्रला देत असत.

नरेंद्रचही असच होत होतं. वडिलांचे गुण, दिलदारपणा, दुसर्‍याच्या दु:खाने द्रवून जाणं, संकटकाळी धीर न सोडता, उद्विग्न न होता, शांतपणे आपलं कर्तव्य बजावत राहणं अशी वैशिष्ठ्ये त्यानं आत्मसात केली होती. दुसर्‍यांची दुखे पाहू न शकल्याने दिलदार विश्वनाथांनी मुक्त हस्ताने आपली संपत्ती वाटून टाकली होती. तर ज्ञानसंपदा दोन्ही हातांनी मुलाला देऊन टाकली होती. एकदा कुणाच्या तरी सांगण्यावरून नरेंद्रनी आपल्या भविष्यकाळाबद्दल वडिलांना विचारले , “ बाबा तुम्ही आमच्या साठी  काय ठेवले आहे?”  हा प्रश्न ऐकताच विश्वनाथबाबूंनी भिंतीवरच्या टांगलेल्या मोठ्या आरशाकडे बोट दाखवून म्हटलं, “ जा, त्या आरशात एकदा आपला चेहरा बघून घे, म्हणजे कळेल तुला, मी तुला काय दिले आहे”.  बुद्धीमान नरेंद्र काय समजायचं ते समजून गेला. मुलांना शिकविताना त्यांच्यात आत्मविश्वास निर्माण व्हावा म्हणून विश्वनाथबाबू त्यांना कधीही झिडकारत नसत, की त्यांना कधी शिव्याशाप ही देत नसत.

आपल्या घरी येणार्‍या आणि तळ ठोकणार्‍या ऐदी आणि व्यसनी लोकांना वडील विनाकारण, फाजील आश्रय देतात म्हणून नरेंद्रला आवडत नसे. तो तक्रार करे. त्यावर नरेंद्रला जवळ घेऊन वडील म्हणत, “ आयुष्य किती दुखाचे आहे हे तुला नाही समजणार आत्ता, मोठा झाला की कळेल. हृदय पिळवटून टाकणार्‍या दु:खाच्या कचाट्यातून सुटण्यासाठी, जीवनातला भकासपणा थोडा वेळ का होईना विसरण्यासाठी हे लोक नशा करत असतात. हे सारे तुला जेंव्हा कळेल, तेंव्हा तू पण माझ्यासारखाच त्यांच्यावर दया केल्याखेरीज राहणार नाहीस”. 

समोरच्याचा दु:खाचा विचार करणार्‍या वडिलांबद्दल गाढ श्रद्धा नरेंद्रच्या मनात निर्माण झाली होती. मित्रांमध्ये तो मोठ्या अभिमानाने वडिलांचे भूषण सांगत असे. त्यामुळे, उद्धटपणा नाही, अहंकार नाही, उच्च-नीच , गरीब-श्रीमंत असा भाव कधीच त्याच्या मनात नसायचा. वडीलधार्‍या माणसांचा अवमान करणे नरेंद्रला आवडत नसे. अशा प्रकारे नरेंद्रला घरात वळण लागलं होतं.

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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