हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साहित्यिक समारोह और साहित्य का प्रचार प्रसार ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ आलेख ☆ साहित्यिक समारोह और साहित्य का प्रचार प्रसार ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

आज एक साहित्यिक समारोह में जालंधर हूं और सोच रहा हूं कि कोरोना के बाद संभवतः यह पहला साहित्यिक समारोह है जिसमें भाग लेने पहुंचा हूं। डेढ़ दो साल तो सारी गतिविधियां बुरी तरह कोरोना ने लील ली थीं और इसीलिए सन् 2020 में कोई बड़ा साहित्यिक आयोजन नहीं हुआ। यहां तक कि हरियाणा साहित्य अकादमी ने भी अवाॅर्ड की राशि घर चैक के रूप में भेजनी शुरू कर दी। अन्य राज्यों की अकादमियों ने भी शायद ऐसे ही कदम उठाये हों। अब जालंधर में पंजाब कला साहित्य अकादमी (पंकस) ने यह हौंसला किया। सिमर सदोष इसे पच्चीस साल से आयोजित करते आ रहे हैं और अब तो पंकस के अवाॅर्ड बड़ी प्रतिष्ठा के अवाॅर्ड हो चुके हैं। इनके हौंसले को सलाम। सिमर सदोष से पहले जालंधर दूरदर्शन के समाचार संपादक व प्रसिद्ध उपन्यास ‘धरती धन न अपना’ के लेखक जगदीश चंद्र वैद भी जालंधर में साहित्यिक आयोजन करते रहे और उनके बाद यह मोर्चा सिमर सदोष ने संभाला। यह साहित्यिक यात्रा चलती रहे।

इधर हिमाचल में पूर्व आईएएस  अधिकारी व रचनाकार विनोद प्रकाश शलभ और कथाकार एस आर हरनोट ने भी मिलकर शिमला में हिमाचल के वरिष्ठ लेखकों को ‘नवल प्रयास’ की ओर से सम्मानित किया था जिसमें मुझे भी अतिथि के रूप में आमंत्रित किया तो सभी रचनाकारों के चेहरों पर जो खुशी देखी वह भूल नहीं पाया। सम्मान पाकर कौन गर्व महसूस न करेगा? इस तरह नये रचनाकारों में भी उत्साह व आशा का संचार होता है। हिमाचल में हरनोट व गुप्ता की जोड़ी अनेक कार्यक्रम कर चुकी है और यह सिलसिला बना रहे, यही दुआ है। इसी प्रकार आर डी शर्मा भी शिमला में सक्रिय है और आयोजन करते रहते हैं।

व्यंग्य यात्रा ने भी प्रतिवर्ष दिए जाने वाले रवींद्रनाथ त्यागी सम्मान, शीर्ष और सोपान सम्मान 2020 तथा 2021 का अयोजन दिल्ली के हिंदी भवन में 4 सितम्बर किया। इसी दिन व्यंग्य यात्रा आलोचना एवं रचना पुरस्कार दिए गए।

हरियाणा में एक समय जब हरियाणा साहित्य अकादमी ने पुरस्कार बंद कर दिये थे तब राज्यकवि उदय भानु हंस ने साहित्य कला संगम बना कर ‘हंस पुरस्कार’ देने शुरू किये और जब तक  वे जीवित रहे और स्वास्थ्य ने उनका साथ दिया वे प्रतिवर्ष ‘हंस पुरस्कार’ प्रदान करते रहे और बाकायदा नकद राशि भी देते। देखते देखते ‘हंस पुरस्कार’ हरियाणा के लेखकों में प्रतिष्ठा का सम्मान बन गया। अब उनके जाने के बाद एक बार हम इसका आयोजन उनके बाद कर पाये क्योंकि मुझे ही उनकी संस्था का जिम्मा सौंपा गया पर ऐसे साहित्यिक आयोजन बड़ा समय और श्रम मांगते हैं। इसलिए इसे निरंतर न कर पाये। पर एक बात तय है कि ऐसे आयोजन होते रहने चाहिएं और इनके बहाने दूर दराज से साहित्यकार मिल पाते हैं व विचार विमर्श कर पाते हैं। इसी प्रकार हरियाणा में कैथल साहित्य सभा भी वर्षों से सक्रिय है और हर वर्ष न केवल पुरस्कार प्रदान करती है बल्कि इस बहाने अनेक लेखकों की नयी पुस्तकों का लोकार्पण भी हो जाता है। डाॅ चंद्र त्रिखा ने भी अपने बेटे धीरज त्रिखा के नाम पर पत्रकारिता पुरस्कार शुरू कल रखा है जो सौभाग्य से सबसे पहले मेरी झोली में आया। सिरसा में भी साहित्यिक आयोजन होते रहते हैं और सबसे चर्चित आयोजन छत्रपति पुरस्कार का होता है जिसमें एक चर्चित पत्रकार को प्रदान किया जाता है और इसकी बड़ी प्रतिष्ठा बन चुकी है।

व्यंग्य यात्रा ने भी प्रतिवर्ष दिए जाने वाले रवींद्रनाथ त्यागी सम्मान शीर्ष और सोपान सम्मान 2020 तथा 2021 का अयोजन दिल्ली के हिंदी भवन में सितम्बर में किया। इसी दिन व्यंग्य यात्रा आलोचना एवं रचना पुरस्कार दिए गए।

 इन सब आयोजनों में एक सुझाव है कि पुस्तक प्रदर्शनियों अवश्य एक जरूरी हिस्सा बनाई जानी चाहिएं तभी साहित्य भी प्रचलित होगा।

28 नवम्बर 2021

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 9 – आओ लौटें बालपन में… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “आओ लौटें बालपन में… । अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 9 – आओ लौटें बालपन में…  ☆ 

सजल

समांत – आरे

पदांत –

मात्राभार- 14

 

राह हरियाली निहारे।

गाँव की यादें पुकारे।।

 

आओ लौटें बालपन में,

जो सदा हमको सँवारे।

 

गाँव की पगडंडियों में,

प्रियजनों के थे दुलारे।

 

गर्मियों की छुट्टियों में,

मौज मस्ती दिन गुजारे।

 

बैठकर अमराइयों में, 

चूसते थे आम सारे।

 

ताकते ही रह गए थे,

बाग के रक्षक बिचारे।

 

आँख से आँखें मिलें जब,

प्रेम के होते इशारे।

 

पहुँच जाते थे नदी तट,

प्रकृति के अनुपम नजारे।

 

भूल न पाए हैं बचपन,

संग-साथी थे हमारे।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विधाता- ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – विधाता- ??

उस कलमकार ने

कलम उठाई,

खींच दी रेखा

मेरे होने और

न होने के बीच,

अब उसने

मुझे कलम थमाई,

मैंने टाँक दिए शब्द

उस रेखा पर,

लक्ष्मणरेखा,

शिरोरेखा बन कर

समा गई शब्दों में..,

वह कलमकार अब

आश्चर्य से देख रहा था

शब्दों में छिपा

विराट रूप

और अनुभव कर रहा था-

उसकी सृष्टि से परे

सृष्टि और भी हैं,

विधाता और भी हैं..!

 

©  संजय भारद्वाज

(‘मैं नहीं लिखता कविता’ संग्रह से।)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603
संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 129 ☆ व्यंग्य – ड्रेन आउट द मनी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  द्वारा लिखित एक विचारणीय व्यंग्य  ‘ड्रेन आउट द मनी’ । इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 129 ☆

?  व्यंग्य – ड्रेन आउट द मनी ?

दक्षिण भारत के एक जूनियर इंजीनियर साहब के घर के ड्रेन पाईप से एंटी करप्शन ब्यूरो ने पांच सौ रुपये के ढ़ेर से बंडल ढ़ूंढ़ निकाले और चोक नाली से जल की अविरल धारा पुनः बह निकली. अब इन जाँच एजेंसियो को कौन बताये कि रुपये कमाना कितना कठिन है. घोटाले, भ्रष्टाचार, कमीशन, हफ्ता, पुलिसिया वसूली, माफिया, शराब, ड्रग्स, सेक्स रैकेट,  वगैरह कुछ लोकप्रिय फार्मूले हैं जिनमें रातो की नींद दिन का चैन सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता है, तब कहीं बाथरूम की दीवारों, छत की सीलिंग, फर्श या गद्दे में छिपाने लायक थोड़े से रुपये जुट पाते हैं. अपने और परिवार के सदस्यो यहां तक कि कुत्ते बिल्ली के नाम पर सोना चांदी, चल-अचल संपत्ति अर्जित करना हंसी खेल नही होता. उनसे पूछिये जिन्होंने ऐसी अकूत कमाई की है. अरे मन मारना पड़ता है तरह तरह के समझौते करने पड़ते हैं, गलत को सही बताना पड़ता है. किसी की बीमारी की मजबूरी में उससे रुपये ऐंठने के लिये कितना बेगैरत बनना पड़ता है, यह किसी भी ऐसे डाक्टर से पूछ लीजीये जिसने महामारी की आपदा में अवसर तलाश कर रुपये बनायें हों.  जांच के दौरान संपत्ति का कोई हिसाब-किताब नहीं दे पाने का रुतबा हासिल करना बिल्कुल सरल नही होता. ऐसे बड़े लोगों के ड्राइवर, नौकर, कर्मचारी भी उनकी बेनामी संपत्तियो के आफिशियल मालिक होते हैं. नेता जी, सरकारी अफसर, ठेकेदार, डाक्टर जिसे जहाँ मौका मिल पाता है अपने सारे जुगाड़ और योग्यता से संम्पत्ति बढ़ाने में जुटे दिखते हैं. दूसरी ओर आम आदमी अपना पसीना निचोड़ निचोड़ कर महीने दर महीने बीमा की किश्तें भरता रहता है और बैंक स्टेटमेंट्स में बढ़ते रुपयो को देखकर मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में खोया रहता है. वैसे रुपये कमाना जितना कठिन है, उन्हें संभालना उससे भी ज्यादा मुश्किल. माया बड़ी ठगनी होती है. सही निवेश न हो तो मेहनत से कमाई सारी संपत्ति डेप्रिशियेशन की भेंट चढ़ जाती है. शेयर बाजार बड़ों बड़ो को रातों रात सड़क पर ले आने की क्षमता रखता है.

आई ए एस के साक्षात्कार में पूछा गया यदि  2 करोड़ रुपये १० मिनट में छिपाने का समय मिलता हैं तो आप क्या करेंगे ?  उम्मीदवार का उत्तर था मैं ऑनलाइन आयकर विभाग को स्वयं सूचित करूँगा और उनको जानकारी दूंगा कि मेरे पास 2 करोड़ रुपये अघोषित धन हैं. मै इस 2 करोड़ पर जितना कर और जुर्माना बनता हैं सब जमा करना चाहता हूँ. जितना कर और जुर्माना निर्धारित होगा उसे जमा कर दूंगा. इसके बाद जो भी धनराशि बचेगी वह सफ़ेद धन बन जाएगी और उसे म्यूचुअल फंड में निवेश कर दूंगा. कुछ ही वर्षों में वह बढ़कर 2 करोड़ से ज्यादा हो जायेगी. उम्मीदवार का चयन कर लिया गया. नियम पूर्वक चलना श्रेष्ठ मार्ग होता है. रुपयों को रोलिंग में बने रहना चाहिये. लक्ष्मी मैया सदा ऐसी कृपा बनायें रखें कि अच्छा पैसा खूब आये और हमेशा अच्छे कामों में लगता रहे. सद्कार्यो में किया गया निवेश पुण्य अर्जित करता है  और पुण्य ही वह करेंसी है जो परलोक में भी साथ जा सकती है. शायद इसीलिये धर्माचार्य भले ही स्वयं अपने आश्रमो में लकदक संग्रह करते हों पर अपने शिष्यों को यही शिक्षा देते नजर आते हैं कि रुपया हाथ का मैल है. दान दया ही माया को स्थायित्व देते हैं. तो यदि घर के ड्रेन पाईप से रुपयों की बरामदगी से बचना हो तो  मेक इट योर हेबिट टु ड्रेन आउट द मनी इन गुड काजेज एण्ड हेलपिंग अदर्स.  

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ श्री कमलेश भारतीय ‘पंजाब कला एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित – अभिनंदन ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? श्री कमलेश भारतीय ‘पंजाब कला एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित – अभिनंदन ?

इस अवसर पर डाॅ प्रेम जनमेजय, लालित्य ललित, रणबीर पुष्प, डाॅ बुला कार, सीमा जैन ,रमा सिंह , शील कौशिक, प्रकाश बादल, नलिनी विभा सहित अनेक साहित्यकार सम्मानित हुए। समारोह में सतनाम माणक, डाॅ अजय शर्मा, डाॅ सरला भारद्वाज, सत्य प्रकाश ठाकुर, डाॅ तरसेम गुजराल, सुरेश सेठ,मोहन सपरा, रणविजय राव, बलविंद्र अत्री, आशा शैली, नीलम जुल्का, नीलम भारती, रश्मि आदि  की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। 

पंजाब कला साहित्य अकादमी के रजत जयंती समारोह पर इस सम्मान के लिए सभी सम्मानित साहित्यकारों की और से  सुश्री सिमर सदोष जी एवं डाॅ जगजीत सिंह जी   का हार्दिक आभार।

? ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री कमलेश भारतीय जी एवं सम्माननीय साहित्यकारों का अभिनंदन एवं हार्दिक बधाई ?

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ शांति-गया स्मृति सम्मान 2020-2021 घोषित ☆ डॉ हंसा दीप ☆ श्री शांतिलाल जैन – अभिनंदन ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

डॉ हंसा दीप, कनाडा

? शांति-गया स्मृति सम्मान 2020-2021 घोषित ?

?  अश्विनी कुमार दुबे एवं मधुकांत को शिखर, हंसा दीप को प्रवासी तथा दामोदर आर्य को खेल सम्मान – अभिनंदन ?  

गया प्रसाद खरे स्मृति साहित्य, कला एवं खेल संवर्द्धन मंच के तत्वावधान में संस्थित शांति-गया स्मृति सम्मान 2020 एवं 2021 की घोषणा मंच के संयोजक श्री अरुण अर्णव खरे, संरक्षक श्रीमती कांति शुक्ला एवं कार्यकारी अध्यक्ष कान्ता रॉय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए की । श्री खरे ने बताया कि इस वर्ष लगभग डेढ़ सौ पुस्तकें सम्मान हेतु प्राप्त हुई। इतनी बड़ी संख्या में से सम्मान हेतु पुस्तकों को चुनना मुश्किल एवं दुरूह कार्य था। दो चरणों में पुस्तकों का मूल्यांकन किया गया। इस मुश्किल कार्य को अंजाम देनेवाले निर्णायक गणों के प्रति श्री खरे एवं कान्ता रॉय ने आभार व्यक्त किया।

शिखर सम्मान वर्ष 2020 रोहतक, हरियाणा केपरवासी साहित्यकार वरिष्ठ रचनाकार डॉ मधुकांत एवं शिखर सम्मान वर्ष 2020 प्रसिद्ध साहित्यकार इंदौर के श्री अश्विनी कुमार दुबे को प्रदान किया जाएगा। उन्हें शाल, श्रीफल, सम्मान पत्र के साथ रु० 7100/- की सम्मान निधि से सम्मानित किया जाएगा। इसके साथ ही प्रवासी साहित्यकारों के लिए संस्थित सम्मान कहानीकार डॉ हंसा दीप, कनाडा को कहानी संग्रह “शत प्रतिशत” के लिए दिया जाएगा।

श्री शांतिलाल जैन

वर्ष 2000 के लिए दिए जाने वाले साहित्यक सम्मानों में कहानी विधा के लिए देहरादून की कहानीकार कुसुम भट्ट तथा व्यंग्य विधा के लिए संयुक्त रूप से श्री शांतिलाल जैन (उज्जैन)विनोद साव (दुर्ग) को दिया जाएगा। वर्ष 2021 हेतु देय उपन्यास विधा का सम्मान सुल्तानपुर के शोभनाथ शुक्ल को तथा गजल विधा के लिए संयुक्त रूप से प्रमोद रामावत (नीमच)किशन तिवारी (भोपाल) को प्रदान किया जाएगा । मंच के पदाधिकारियों द्वारा द्वितीय स्थान पर आई कृतियों के लेखकों को रु 1100/- सम्मान निधि से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है। इस शृंखला में कहानी हेतु सर्व श्री रामनगीना मौर्य (लखनऊ)रोचिका अरुण शर्मा (चेन्नई), व्यंग्य हेतु सौरभ जैन (इंदौर)आभा सिंह (नागपुर), उपन्यास हेतु चंद्रभान राही (भोपाल)कमल कपूर (फरीदाबाद) तथा गजल हेतु गोविंद अनुज (शिवपुरी)अंजलि सिफर (अम्बाला) की रचनाओं का चयन किया गया है। कथेत्तर विधा के लिए दिया जाने वाला सम्मान आगरा के डॉ दिग्विजय कुमार शर्मा को प्रदान किया जाएगा। 

इस वर्ष खेलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कमेंट्रेटर प्रभात गोस्वामी (जयपुर) तथा दामोदर आर्य (भोपाल) को एवं कला के लिए रंगकर्मी व फिल्म कलाकार हरिओम तिवारी (भोपाल) एवं कबाड़ को अप्रतिम कलाकृतियों का रूप देनेवाले कलाकार देवेंद्र प्रकाश तिवारी को सम्मानित किया जाएगा।

सम्मान 26 दिसम्बर 2021 को  भोपाल में आयोजित सम्मान समारोह में दिए जाएंगे।

? ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से डॉ हंसा दीप, श्री शांतिलाल जैन एवं सम्माननीय साहित्यकारों का अभिनंदन एवं हार्दिक बधाई ?

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (46-50) ॥ ☆

यदि यह माला प्राण हर है सच काल समान

तो छाती पर पड़ी यह, क्यों हूं मैं सप्राण ? ॥ 46॥

 

अथवा प्रभु इच्छा ही है होती सहज प्रमाण

अमृत होता विष कभी, विष कभी अमृत समान ॥ 46॥ब

 

है मेरा दुर्भाग्य यह जो यह अशनि प्रपात

छोड़ वृक्ष को लता पर किया जो ऐसा घात ॥ 47॥

 

करने पर अपराध भी किया न मम अपमान

आज बिना अपराध भी क्यों नाहिं मुझ पर ध्यान ॥ 48॥

 

निश्चित तुमने प्राणप्रिय मुझे प्रवंचक जान

बिन पूँछ मुझसे जो तुम यों कर गई पयान ॥ 49॥

 

प्रिया के पीछे गये ही थे ये जो मेरे प्राण

तो बिन उसके आयें क्यों लौट व्यर्थ अनजान ॥ 50॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ३० नोव्हेंबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ३० नोव्हेंबर –  संपादकीय  ?

श्री.बाळकृष्ण भगवंत बोरकर(बाकीबाब) :

हिरवळ आणिक पाणी पाहिल्यावर ज्यांना गाणे सुचते,ज्यांच्या काव्यातून निसर्ग बरसत असतो,फुलपाखरू उडू लागता ज्यांचं मनही उडू लागतं,लाटांच्या तालात जे खर्जातिल गायन ऐकतात,उदयास्तांची रंगलिपी जे सहजपणे वाचू शकतात,ज्यांनी कधी पुण्याची मोजणी केली नाही,ज्यांना कधी पापाची टोचणी लागली नाही आणि ‘असेच आहे धुंदपणाने,वयास चकवित फुलावयाचे’ हा ज्यांच्या जगण्याचा मूलमंत्र आहे ; अशा बा.भ.बोरकर म्हणजेच बाकीबाब यांचा आज जन्मदिवस!

गोमंतकाच्या निसर्गरम्य भूमीतील बोरी या स्वर्गीय सौंदर्य लाभलेल्या छोट्याश्या खेडेगावात 30/11/1910 ला त्यांचा जन्म झाला.आज त्यांच्या जन्म दिनी त्यांच्या साहित्य उद्यानात हा एक फेरफटका!

बोरकरांच्या साहित्याविषयी बोलायचे,लिहायचे म्हणजे साक्षात निसर्गाविषयी लिहायचे.आवाक्यात न येणारा हा निसर्ग आणि तसंच त्यांचं साहित्य.आनंद असो,दुःख असो,प्रेम असो किंवा अन्य काही,निसर्गापासून दूर जाणे ज्यांना कधी जमलेच नाही असा हा गोमंतकाला भूषण असणारा साहित्यिक! त्यांनी कथा,कादंब-या लिहील्या असल्या तरी बा.भ.बोरकर म्हटल्याबरोबर डोळ्यासमोर येते ती स्वतःच्या कविता गाऊन दाखवणारी ,डोक्यावरील केस उडत आहेत,हाताचे आणि चेह-यावरील भाव मुक्तपणे उधळत आहेत अशी त्यांची मूर्ती! वयाच्या 23 व्या वर्षी ‘प्रतिभा ‘हा त्यांचा पहिला काव्यसंग्रह मडगाव येथील साहित्य संमेलनात प्रकाशित झाला.1934 साली बडोदा येथील वाङ्मय परिषदेत त्यांनी,’दिव्यत्वाची जेथ प्रचिती, तेथे कर माझे जुळती’ ही त्यांची रचना गाऊन सादर केली आणि कवी म्हणून त्यांची  ख्याती झाली.सुरूवातीच्या काळात त्यांनी चौदा वर्षे  शिक्षक म्हणून नोकरी केली.पण नंतर 1955 ते 1970 या काळात त्यांनी आकाशवाणी पुणे आणि गोवा येथे वाङ्मय विभागाचे संचालक या पदावर काम केले व निवृत्त झाले.

ललित,कथा कादंबरी,चरित्रात्मक प्रबंध असे अनेक प्रकारचे लेखन त्यांनी केले.काही पुस्तकांचे अनुवादही केलेत.पण एक आनंदयात्री कवी म्हणून त्यांनी रसिकांच्या ह्रदयात स्थान मिळवले ते त्यांच्या आशयघन,तालबद्ध,वृत्तबद्ध,निसर्गसौंदर्याने ओथंबलेल्या कवितांमुळेच!समृद्ध शब्द भांडार,जीवनातील तृप्ततेचे दर्शन,आध्यात्मिक विचारांची बैठक आणि ओळीओळीतून ठिबकणारा निसर्ग हे त्यांच्या कवितेचे वैशिष्ट्य म्हणावे लागेल.

प्रतिभा,जीवन संगीत , दूधसागर,आनंदभैरवी,चित्रवीणा,गितार,चैत्रपूनव, चांदणवेल, कांचनसंध्या,अनुरागिणी,चिन्मयी हे त्यांचे काही काव्यसंग्रह.याशिवाय त्यांनी चार कादंब-या,दोन कथासंग्रह,दोन चरित्रात्मक प्रबंध,चार ललित लेख संग्रह,कुसुमाग्रज कवितांचा संपादित काव्य संग्रह आणि सहा पुस्तकांचा अनुवाद असे विपुल लेखन केले आहे.याशिवाय कोकणी भाषेतील त्यांची दहा पुस्तके प्रकाशित झाली आहेत.

सासाय या त्यांच्या कोकणी भाषेतील पुस्तकास एकोणीसशे एक्सायाऐशीचा साहित्य अकादमीचा पुरस्कार मिळाला आहे.भारत सरकारने त्यांना पद्मश्री देऊन गौरविले आहे.

निसर्गाच्या सोबतीला आपली कविता ठेवून  बाकीबाब आठ जुलै एकोणीसशे चौ-याऐशीला  त्याच निसर्गात विलीन झाले. 

☆☆☆☆☆

श्री.विजय देवधर :

विजय देवधर हे पुणे येथील इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ ट्राॅपिकल मीटिऑराॅलाॅजी येथे वरिष्ठ  तांत्रिक अधिकारी या पदावर कार्यरत होते.त्यांनी लेखनाचे तंत्रही उत्तम आत्मसात केले होते.नवल,विचित्र विश्व अशा मासिकातून त्यांच्या लेखनाला प्रारंभ झाला.रहस्यकथा,साहसकथा,शौर्यकथा,गुप्तहेरकथा हे त्यांच्या लेखनाचे विषय होते.अनेक इंग्रजी पुस्तकांचे अनुवाद त्यानी केले आहेत.सुमारे पन्नास पुस्तके त्यांच्याकडून लिहीली गेली आहेत.

त्यातील काही पुस्तके अशी :

कथा साहसवीरांच्या,कावा,गियानाहून पलायन,गोष्टी साहसांच्या,प्राणीमात्रांच्या जगात,रोमहर्षक शिकारकथा,साहसांच्या जगात, हेरांच्या अजब जगात, प्राण्यांचा डाॅक्टर,(बालसाहित्य),मोटारसायकलिस्ट चिपांझी(बालसाहित्य)…इत्यादी

अनुवादित साहित्य : 

अस्वलांचा शेजार,डाॅ.नो, डेझर्टर,डेडली गेम,नो कम बॅक्स,बर्म्युडा ट्रॅगल,मृत्यूलेख,द सेव्हन्थ सिक्रेट इत्यादी.

पुणे येथे 30/11/2012 ला त्यांचे निधन झाले.त्यांच्या स्मृतीस अभिवादन. ?

☆☆☆☆☆

श्री.आनंद यादव :

ज्येष्ठ साहित्यिक आनंद यादव यांचा आज जन्मदिन.आपण त्यांच्या साहित्याविषयी दि.27/11 च्या अंकात म्हणजे त्यांच्या स्मृतीदिनी जाणून घेतले आहे.म्हणून येथे पुनरावृत्ती टाळत आहोत. 

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ: विकीपीडिया,मराठी विश्वकोश.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सोस तू माझ्या जिवा रे ☆ बा.भ.बोरकर

बा.भ.बोरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सोस तू माझ्या जिवा रे ☆ बा.भ.बोरकर ☆

(बालकृष्ण भगवन्त बोरकर (30 नोव्हेम्बर 1910- 8 जुलाई 1984))

सोस तू माझ्या जिवा रे,सोसल्याचा सूर होतो,

सूर साधी ताल तेव्हा भार त्याचा दूर होतो.

 

दुःख देतो तोच दुःखी जाणता हे सत्य मोठे,

कीव ये दाटून पोटी दुःख तेणे होय थोटे.

 

या क्षमेने सोसले त्या अंत नाही पार नाही,

त्यामुळे दाटे फळी ती पोळणा-या ग्रीष्मदाही.

 

त्या क्षमेचा पुत्र तू हे ठेव चित्ती सर्वकाळी

शीग गाठी दाह तेव्हा वृष्टी होते पावसाळी.

 

त्या कृपेचे स्त्रोत पोटी घेऊनी आलास जन्मा,

साद त्यांना घालिता तू सूर तो येईल कामा.

 

फळी=फळात
शीग= कमाल मर्यादा

– बा.भ.बोरकर

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सांभाळ तू…. ☆ श्री राजकुमार कवठेकर

श्री राजकुमार दत्तात्रय कवठेकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सांभाळ तू…. ☆ श्री राजकुमार कवठेकर ☆

रोजचे सारे तरी…. सांभाळ तू

ना कशाची खातरी..सांभाळ तू

 

संकटांची वादळे घोंगावता

धीर-ज्योती अंतरी…सांभाळ तू

 

बंगला लाभेल ना लाभेलही

ही सुखाची ओसरी…सांभाळ तू

 

वाट हिरवाळीतुनी आहे जरी

खोल बाजूंना दरी… सांभाळ तू

 

सांत्वने येतील खोटी भेटण्या

आसवांच्या त्या सरी…सांभाळ तू

 

वाद..द्वेषा..मत्सरा.. दुर्लक्षुनी

बोलण्याची बासरी…सांभाळ तू

 

काम..घामावीण खोटा दाम रे

जी मिळे ती चाकरी…सांभाळ तू

 

भोग.. संपत्ती..न किर्ती..स्थावरे

आस ही नाही खरी…सांभाळ तू

 

खीर.. पोळी उत्सवांची भोजने

रोजची ही भाकरी…सांभाळ तू

 

लोक थट्टेखोर.. घेणारे मजा

वादळे मौनांतरी…सांभाळ तू

 

राहू दे स्वप्नात स्वप्नींची नभे

आपुली माती बरी…सांभाळ तू

 

सोबतीला वृध्द हे, सत्संग हा

या उबेच्या चादरी…सांभाळ तू

 

दुर्लभाचा लाभ..जाई हातचे

‘ठेव सारी’ तोवरी…सांभाळ तू

 

वेळ.. जागा …’घात’ ना पाहे कधी

आपुल्याही त्या घरी…सांभाळ तू

 

वाहता आजन्म तू धारांसवे

काठ हा आतातरी…सांभाळ तू

© श्री राजकुमार दत्तात्रय कवठेकर

संपर्क : ओंकार अपार्टमेंट, डी बिल्डिंग, शनिवार पेठ, आशा  टाकिज जवळ, मिरज

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares