हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कहीं तेरी कहानी, अनकही न रह जाये ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता ।।कहीं तेरी कहानी, अनकही न रह जाये।।)      

☆ ।। कहीं तेरी कहानी, अनकही न रह जाये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

।।विधा।।मुक्तक।।

[1]

देख लेना कहीं अनकही तेरी अपनी कहानी न रहे।

रुकी सी बीती जिन्दगी में कोई रवानी न रहे।।

जमीन और भाग्य जो बोया वही निकलता है।

अपने स्वार्थ के आगे किसी पर मेहरबानी न रहे।।

[2]

दुखा कर दिल किसी का कभी सुख पा नहीं सकता।

कपट विद्या से किसी का दुःख भी जा नहीं सकता।।

पाप का घड़ा भरकर एक दिन फूटता जरूर है।

बो कर बीज बबूल का कोई आम ला नहीं सकता।।

[3]

कल की चिंता मत कर तू जरा बस आज संवार ले।

मत डूबा रहे स्वार्थ में कि परोपकार में भी गुजार ले।।

अपने कर्मों का निरंतर आकलन तुम हमेशा करते रहो।

प्रभु ने भेजा धरती पे तो जरा जीवन का कर्ज उतार ले।।

 

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Manthan – the Churning… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem  अमृत .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

 ☆  Manthan – the Churning…??

Asura, the demons,

are this side,

And, the demons

on that side, too!

Neither, the Mandarachal,

-the gigantic mountain

Nor the Vasuki,

-the king of serpents

are there, even then-

I keep churning everyday

the ocean of mind

Knoweth not

how many

poisons emerged,

In the desire of

a drop of nectar..!

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संतृप्त☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – संतृप्त ?

दुनिया को जितना देखोगे

दुनिया को जितना समझोगे,

दुनिया को जितना जानोगे

दुनिया को उतना पाओगे,

अशेष लिप्सा है दुनिया,

जितना कंठ तर करेगी,

तृष्णा उतनी ही बढ़ेगी,

मैं अपवाद रहा

या शायद असफल,

दुनिया को जितना देखा,

दुनिया को जितना समझा,

दुनिया में जितना उतरा,

तृष्णा का कद घटता गया,

भीतर ही भीतर एक

संतृप्त जगत बनता गया।

©  संजय भारद्वाज

(रात्रि 12:25 बजे, 16.6.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 116 ☆ व्यंग्य  – पक्ष विपक्ष और हिंडोले ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  द्वारा रचित एक विचारणीय व्यंग्य पक्ष विपक्ष और हिंडोले । इस विचारणीय विमर्श के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 116 ☆

? व्यंग्य  – पक्ष विपक्ष और हिंडोले ?

विसंगति … क्या विपक्ष का अर्थ केवल विरोध ?

पत्नी मधुर स्वर में भजन गा रहीं थीं . “कौन झूल रहे , कौन झुलाये हैं ? कौनो देत हिलोर ? … गीत की अगली ही पंक्तियों में वे उत्तर भी दे देतीं हैं . गणपति झूल रहे , गौरा झुलायें हैं , शिव जी देत हिलोर.” … सच ही है  हर बच्चा झूला झूलकर ही बडा होता है . सावन में झूला झूलने की हमारी सांस्कृतिक विरासत बहुत पुरानी है . राजनीति के मर्मज्ञ परम ज्ञानी भगवान कृष्ण तो अपनी सखियों के साथ झूला झूलते , रास रचाते दुनियां को राजनीति , जीवन दर्शन , लोक व्यवहार , साम दाम दण्ड भेद बहुत कुछ सिखा गये हैं .  महाराष्ट्र , राजस्थान , गुजरात में तो लगभग हर घर में ही पूरे पलंग के आकार के झूले हर घर में होते हैं . मोदी जी के अहमदाबाद में  साबरमती तट पर विदेशी राजनीतिज्ञों के संग झूला झूलते हुये वैश्विक राजनीती की पटकथा रचते चित्र चर्चित रहे हैं . आशय यह है कि राजनीति और झूले का साथ पुराना है .

मैं सोच रहा था कि पक्ष और विपक्ष राजनीति के झूले के दो सिरे हैं . तभी पत्नी जी की कोकिल कंठी आवाज आई “काहे को है बनो रे पालना , काहे की है डोर , काहे कि लड़ लागी हैं ? राजनीती का हिंडोला सोने का होता है , जिसमें हीरे जवाहरात के लड़ लगे होते हैं , तभी तो हर राजनेता इस झूले का आनंद लेना चाहता है . राजनीति के इस झूले की डोर वोटर के हाथों में निहित वोटों में हैं . लाभ हानि , सुख दुख , मान अपमान , हार जीत के झूले पर झूलती जनता की जिंदगी कटती रहती है . कूद फांद में निपुण ,मौका परस्त कुछ नेता उस हिंडोले में ही बने रहना जानते हैं जो उनके लिये सुविधाजनक हो . इसके लिये वे सदैव आत्मा की आवाज सुनते रहते हैं , और मौका पड़ने पर पार्टी व्हिप की परवाह न कर  जनता का हित चिंतन करते इसी आत्मा की आवाज का हवाला देकर दल बदल कर डालते हैं .  अब ऐसे नेता जी को जो पत्रकार या विश्लेषक बेपेंदी का लोटा कहें तो कहते रहें , पर ऐसे नेता जी जनता से ज्यादा स्वयं के प्रति वफादार रहते हैं . वे अच्छी तरह समझते हैं कि ” सी .. सा ” के राजनैतिक खेल में उस छोर पर ही रहने में लाभ है जो ऊपर हो . दल दल में गुट बंदी होती है . जिसके मूल में अपने हिंडोले को सबसे सुविधाजनक स्थिति में बनाये रखना ही होता है . गयाराम  जिस दल से जाते हैं वह उन्हें गद्दार कहता है , किन्तु आयाराम जी के रूप में दूसरा दल उनका दिल खोल कर स्वागत करता है और उसे हृदय परिवर्तन कहा जाता है. देश की सुरक्षा के लिये खतरे कहे जाने वाले नेता भी पार्टी झेल जाती है.

किसी भी निर्णय में साझीदारी की तीन ही सम्भावनाएं होती हैं , पहला निर्णय का साथ देना, दूसरा विरोध करना और तीसरा तटस्थ रहना. विरोध करने वाले पक्ष को विपक्ष कहा जाता है.  राजनेता वे चतुर जीव होते हैं जो तटस्थता को भी हथियार बना कर दिखा रहे हैं . मत विभाजन के समय यथा आवश्यकता सदन से गायब हो जाना ऐसा ही कौशल है . संविधान निर्माताओ ने सोचा भी नहीं होगा कि राजनैतिक दल और हाई कमान के प्रति वफादारी को हमारे नेता देश और जनता के प्रति वफादारी से ज्यादा महत्व देंगे . आज पक्ष विपक्ष अपने अपने हिंडोलो पर सवार अपने ही आनंद में रहने के लिये जनता को कचूमर बनाने से बाज नही आते .

मुझ मूढ़ को समझ नहीं आता कि क्या संविधान के अनुसार विपक्ष का अर्थ केवल सत्तापक्ष का विरोध करना है ? क्या पक्ष के द्वारा प्रस्तुत बिल या बजट का कोई भी बिन्दु ऐसा नही होता जिससे विपक्ष भी जन हित में सहमत हो ? इधर जमाने ने प्रगति की है , नेता भी नवाचार कर रहे हैं . अब केवल विरोध करने में विपक्ष को जनता के प्रति स्वयं की जिम्मेदारियां अधूरी सी लगती हैं . सदन में अध्यक्ष की आसंदी तक पहुंचकर , नारेबाजी करने , बिल फाड़ने , और वाकआउट करने को विपक्ष अपना दायित्व समझने लगा है .लोकतंत्र में संख्याबल सबसे बड़ा होता है , इसलिये सत्ता पक्ष ध्वनिमत से सत्र के आखिरी घंटे में ही कथित जन हित में मनमाने सारे बिल पारित करने की कानूनी प्रक्रिया पूरी कर लेता है . विपक्ष का काम किसी भी तरह सदन को न चलने देना लगता है . इतना ही नही अब और भी नवाचार हो रहे हैं , सड़क पर समानांतर संसद लगाई जा रही है . विपक्ष विदेशी एक्सपर्टाइज से टूल किट बनवाता है , आंदोलन कोई भी हो उद्देश्य केवल सत्ता पक्ष का विरोध , और उसे सत्ता च्युत करना होता है . विपक्ष यह समझता है कि सत्ता के झूले पर पेंग भरते ही झूला हवा में ऊपर ही बना रहेगा , पर विज्ञान के अध्येता जानते हैं कि झूला हार्मोनिक मोशन का नमूना है , पेंडलुम की तरह वह गतिमान बना ही रहेगा . अतः जरूरी है कि पक्ष विपक्ष सबके लिये जन हितकारी सोच ही सच बने , जो वास्तविक लोकतंत्र है .

पारम्परिक रूप से पत्नियों को  पति का कथित धुर्र विरोधी समझा जाता है . पर घर परिवार में तभी समन्वय बनता है जब पति पत्नी झूले दो सिरे होते हुये भी एक साथ ताल मिला कर रिदम में पेंगें भरते हैं .यह कुछ वैसा ही है जैसा पक्ष विपक्ष के सारे नेता एक साथ मेजें थपथपा कर स्वयं ही आपने वेतन भत्ते बढ़वा लेते हैं . मेरा चिंतन टूटा तो पत्नी का मधुर स्वर गूंज रहा था ” साथ सखि मिल झूला झुलाओ . काश नेता जी भी देश के की प्रगति के लिये ये स्वर सुन सकें .  

 © विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 70 ☆ चिंतन परक ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “चिंतन परक”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 70 – चिंतन परक

हमारे हर निर्णय, अवलोकन ,लेखन, सरोकार व सब कुछ जो हम करते हैं, पूर्वाग्रह से आधारित होते हैं। ग्रह और नक्षत्रों के बारे में तो हम सभी जानते हैं और उनसे प्रभावित हुए बिना भी नहीं रह पाते हैं किंतु इस पहले से निर्धारित किए हुए विचारों क्या करें…? 

अधिकांश लोग ये मानते हैं  कि फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाला, सूट बूट टाई पहने हुए व्यक्ति ही नौकरशाह हो सकता है। इसी तरह कारपोरेट सेक्टर में अंग्रेजी पहनावा ही सभ्य होने की निशानी है। महिलाओं की तो बात ही निराली है उनके लिए भी ड्रेस कोड निर्धारित कर दिए गए हैं। आमजीवन में मिली जुली  बोली, नई वेश भूषा तेजी के साथ बढ़ रही है। मौसम के अनरूप न होने पर भी हम लोग विदेशी परिधानों का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। सुशिक्षित होने की इस निशानी को ढोते हुए हम  इक्कीसवीं सदी के  तकनीकी ज्ञान से प्रशिक्षित लोग बिना सोचे समझे  भेड़ चाल के अनुगामी बनें जा रहे हैं। अब हमारा मन धरती पर नहीं चाँद और मंगल पर लगने लगा है। तरक्की होना अच्छी बात है किंतु देश काल की सीमाओं से परे जा, हवाई उड़ानें, विदेशी धरती, उनका पहनावा और अंतरराष्ट्रीय बोलियाँ ही मन भावन लगने लगें तब थोड़ा ठहर कर ध्यान तो देना ही चाहिए।

मजे की बात है कि घर में माता- पिता का कहना हम लोग भले ही न मानते हों किन्तु काउंसलिंग करवाकर हर निर्णय लेना  लाभकारी होता है इसकी जड़ें हमारे मनोमस्तिष्क में गहरी पैठ बनाए हुए हैं। पहले लोग ये मानते थे कि कोई प्रेम पूर्वक आग्रह करे तो उसका न्योता नहीं ठुकराना चाहिए परंतु अब तो सारी परिभाषाएँ एक एजेंडे के तहत पहले से ही निर्धारित कर दी जाती हैं। किसे आगे बढ़ाना है, किसे घटाना है सब कुछ सोची समझी चाल के तहत होता है। वैसे भी किसी को मिटाना हो तो उसके संस्कारों व नैतिक मूल्यों पर प्रहार करना चाहिए ऐसा  पूर्वकाल से आतताइयों द्वारा किया जाता रहा है क्योंकि वे जानते हैं कि किसी को लंबे समय तक गुलाम बनाने हेतु ऐसा करना होगा।

खैर हम सब चिन्तन प्रधान देश के सुधी नागरिक हैं जो अपना भला- बुरा अच्छी तरह समझते हैं। सो पूर्वाग्रह न पालते हुए सही गलत का निर्णय स्वविवेक व तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप करते हैं।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆बूझोवल – रचनाकार – महादेव प्रेमी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। आज प्रस्तुत है  आपके द्वारा पुस्तक की समीक्षा  “बूझोवल

☆ पुस्तक समीक्षा ☆ बूझोवल – रचनाकार – महादेव प्रेमी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆ 

 

पुस्तक-  बूझोवल

रचनाकार-  महादेव प्रेमी

प्रकाशक- किताबगंज प्रकाशन, रेमंड शोरूम, राधा कृष्ण मार्केट, एसबीआई के पास, गंगापुर सिटी- 322201 जिला -सवाई माधोपुर (राजस्थान)

पृष्ठ संख्या- 116

मूल्य- ₹195

पहेलियों का इतिहास काफी पुराना है. जब से मानव ने इशारों में बातें करना सीखा है तब से यह अभिव्यक्त होते आ रहे हैं. आज भी ये इशारें विभिन्न रूपों में प्रचलित है. जब घर पर कोई मेहमान आता है तब मां अपने बच्चों को इशारा कर के चुप करा देती है. बच्चे मां का इशारा तुरंत समझ जाते हैं. 

अधिकांश बाल पत्रिकांए इन्हीं इशारों पर आधारित बाल पहेलियां प्रकाशित करती है. इन में वर्ग पहेली, प्रश्न पहेली, चित्र पहेली और गणित पहेलियां मुख्य होती है. कई किस्सेकहानियों में भी पहेलियां प्रयुक्त होती आई है. अकबर-बीरबल, विक्रम-बेताल के किस्से पहेलियों पर ही आधारित है. ऋग्वेद, बाइबिल, महाभारत, संस्कृत साहित्य आदि में पहेलियां भरी हुई है.

पहेलियां पूछना और बूझाना हमारी सांस्कृतिक परंपरा रही है. दादीनानी से हम ने कई पहेलियां सुनी है. वे आज भी हमें याद है. इसी तरह संस्कृत साहित्य में भी कई रोचक पहेलियां प्रयुक्त हुई है. इन्हें प्रहेलिका कहते हैं. इन प्रहेलिका में पहेलियों के गूढ़ रूप का ज्यादा प्रचलन रहा है. संस्कृत की एक पहेली देखिए-

श्यामामुखी न मार्जारी, द्विजिह्वा न सर्पिणी

पंचभर्ता न पांचाली, यो जानाति स पंडित.

यानी काले मुखवाली होते हुए बिल्ली नहीं है.  दो जिह्वा  होते हुए भी सर्पिणी नहीं है.  पांच पति वाली होते हुए भी द्रोपदी नहीं है. जो इस का नाम बता देगा वह पंडित यानी ज्ञानवान कहलाएगा. जिस का उत्तर कलम है. यानी पुराने जमाने की नीब वाल पेन. जिस की नीब में बीच में चीरा लगा होता है. 

ऐसी कई पहेलियों ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है. अमीर खुसरों का नाम पहेलियों के लिए ही प्रसिद्ध है. इन के अलावा अनेक साहित्यकारों ने पहेलियां लिखी है. मगर, खुसरों को छोड़ दें तो अधिकांश साहित्यकारों ने कथासाहित्य के साथसाथ पहेलियोें की रचनाएं की है.

पारंपरिक रूप से पहेलियां मानव की बुद्धिलब्धि जानने और उस की क्षमता विकसित करने का एक साधन रही है. ये हमेशा ही सरलसहज, कठिन और गूढ़ अर्थ में प्रयुक्त होती रही है. इन पहेलियों में किसी वस्तु के गुण, रूप या उपयोगिता का वर्णन संकेत में किया जाता है. इसी के आधार पर इस का उत्तर बताना होता है. 

ये पहेलियों सदा से मानव को चुनौतियां प्रस्तुत करती रही है. इस रूप में और आधुनिक समय में भी इस का महत्व बना हुआ है. पुराने समय में यह राजामहाराज के लिए मनोरंजन और आनंद उठाने के लिए उपयोग में आती थी. वर्तमान में इस का उपयोग मानव मस्तष्कि के विकास और उस की क्षमता बढ़ाने और उस की क्षमता जानने के लिए उपयोग हो रहा है.

इसी परिपेक्ष्य में ‘महादेव प्रेमी’ ने अपनी पुस्तक- बूझोवल, में पहेलियां प्रस्तुत कर के इस प्रयास में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है. प्रस्तुत पुस्तक में आप की पहेलियां सरल और गूढ़ दोनों रूपों में लिख कर प्रस्तुत की है. इस में पहेलियां कई रूपों में प्रयुक्त हुई है.

पहेली के वाक्य में छूपे उत्तर की पहेलियां अपने विशिष्ट रूप के कारण ज्यादा सहज व सरल होती है. इस में उत्तर रूपी शब्द पहेलियों में ही व्यक्त होता है. उसे ढूंढ कर या बूझ कर पहेली का उत्तर बताना होता है. बस इस के लिए थोड़ा सा दिमाग लगाना होता है. उत्तर सामने होता है. जिस से ज्यादा आनंद की प्राप्ति होती है. 

उल्टा किया तो हो गया राजी

डाल दिया तो बन गई भाजी.

करते हैं सब ही उपयोग मेेरा

क्या मूल्ला है क्या काजी.

यह इसी प्रकार की पहेली है. इस का उत्तर इसी पहेली में छूपा हुआ है. ये पहेलियां सरल व सहज होती है. जिन्हें पढ़ने में आनंद की अनुभूति होती है. इस अनुभूति के कारण व्यक्ति पहेलियों को पढ़ते चले जाता है.

छज्जे जैसे कान है मेरे

सब से लंबी नाक .

खंबे जैसे पैर है मेरे

बच्चों जैसी आंख. 

इस पहेली में सहजता से उत्तर का पता चल जाता हैं. उत्तर का पता चलते ही मन प्रसन्न हो जाता है. हम भी कुछ जानते हैं यह भाव अच्छा लगता है. इस से पहेलियां पढ़ने की उत्सुकता बढ़ जाती है. 

तीन अक्षर का मेरा नाम

उल्टा-सीध एक समान.

मेरे साथ ही आप सभी के 

बनते रहते हैं पकवान.

इसे पहेली को बूझ कर देखिए. यदि उत्तर पता चल जाए तो मन प्रसन्न हो जाएगा. नहीं चले तो कोई बात नहीं, आप का मन-मस्तिष्क इस का उत्तर खोजने के लिए प्रेरित हो जाएगा. जब तक उसे इस का उत्तर नहीं मिलेगा तब तक वह उत्तर खोजने के प्रयास में लगा रहेगा.

पहेलियां मस्तिष्क को सक्रिय और क्रियाशील रखने में मुख्य भूमिका निभाती है. संकेताक्षर में लिखी पहेलियां मन को बहुत लुभाती है. इस से पढ़ने वाले का आत्मविश्वास बढ़ता है. इसी संदर्भ में यह पहेली देखिए-

धोली धरती काला बीज

बौने वाला गाए गीत.

इस पहेली को पढ़ कर आप मन ही मन मुस्करा रहे होंगे. इस बात का पता है मुझे. हम सब यही चाहते हैं कि आप कि यह मुस्कान सदा बनी रही. क्यों कि इस पुस्तक के रचनाकार ने अपनी पुस्तक का श्रीगणेश कुछ इसी तरह की पहेली के साथ किया है.

नर शरीर धारण किया

मुख किया पशु समान.

प्रथम पूज्य देवता भये

पहेली है आसान.

कुछ इसी तरह की आसान और आनंददायक पहेलियों इस पुस्तक में प्रस्तुत की गई है. पहेलियों की भाषा सरल और सहज है. इन पहेलियां में रूप, गुण और उस के स्वरूप के वर्णन कर के संकेत रूप में इन का लिखा गया है. 

इस अर्थ में प्रस्तुत पुस्तक के रचनाकार ने अच्छी पहेलियां प्रस्तुत की है. सभी पहेलियां बच्चों के साथ बड़ों के लिए उपयोगी है. कहींकहीं भाषा का प्रवाह बाधित हुआ है. जिसे संपादक ने अपनी कुशलता से दूर कर दिया गया हे.

इस पुस्तक का प्रकाशन किताबगंज द्वारा किया गया है. इस रूप में इस की साजसज्जा और प्रस्तुतिकरण बहुत बढ़िया है. 116 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य ₹195 है. उपयोगिता की दृष्टि से वाजिब है. कुल मिला कर पुस्तक बहुउपयोगी बनी है. इस का साहित्य के क्षेत्र में तनमनधन से स्वागत किया जाएगा. ऐसा विश्वास है. 

समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

04/05/2019

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226 

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 78 ☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – सप्तदशोऽध्यायः ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज से हम प्रत्येक गुरवार को साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत डॉ राकेश चक्र जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें । आज प्रस्तुत है सप्तदशोऽध्यायः

पुस्तक इस फ्लिपकार्ट लिंक पर उपलब्ध है =>> श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 77 ☆

☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – सप्तदशोऽध्यायः ☆ 

स्नेही मित्रो सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद मेरे द्वारा श्रीकृष्ण कृपा से दोहों में किया गया है। पुस्तक भी प्रकाशित हो गई है। आज आप पढ़िए  सत्रहवाँ अध्याय। आनन्द उठाइए। ??

– डॉ राकेश चक्र।।

☆ सत्रहवाँ अध्याय – श्रद्धा के विभाग क्या हैं?

अर्जुन ने श्रीकृष्ण भगवान से पूछा-

नियम-शास्त्र ना मानते, करते पूजा मौन।

स्थिति मुझे बताइए, सत, रज, तम में कौन।। 1

 

श्रीकृष्ण भगवान ने सात्विक, राजसिक, तामसिक पूजा और भोजन आदि के बारे में अर्जुन को ज्ञान दिया–

सत, रज, तम गुण तीन ही, अर्जित करती देह।

जो जैसी श्रद्धा करें, बता रहा प्रिय ध्येय।। 2

 

श्रद्धा जो विकसित करें, सत, रज, तम अनुरूप।

अर्जित गुण वैसे बनें, जैसे छाया- धूप।। 3

 

सतोगुणी पूजा करें, सब देवों की मित्र।

रजोगुणी पूजा करें, यक्ष-राक्षस पित्र।।4

 

तमोगुणी हैं पूजते, भूत-प्रेत की छाँव।

जो जैसी पूजा करें, वैसी मिलती ठाँव।। 4

 

दम्भ, अहम, अभिभूत हो, तप-व्रत सिद्ध अनर्थ।

शास्त्र रुद्ध आसक्ति से, पूजा होती व्यर्थ।। 5

 

ऐसे मानव मूर्ख हैं, करें तपस्या घोर।

दुखी रखें जो आत्मा, वही असुर की पोर।। 6

 

जो जैसा भोजन करें, उसके तीन प्रकार।

यही बात तप, दान की, यज्ञ वेद सुन सार।। 7

 

सात्विक भोजन क्या है

सात्विक भोजन प्रिय उन्हें, सतोगुणी जो लोग।

वृद्धि करे सुख-स्वास्थ्य की, आयु बढ़ाता भोज।। 8

 

गरम, राजसी चटपटा, तिक्त नमक का भोज।

रजोगुणी को प्रिय लगे, देता जो दुख रोग।। 9

 

तामसिक भोजन क्या है

पका भोज यदि हो रखा,एक पहर से जान

बासा, जूठा खाय जो, वही तामसी मान। 10

बने वस्तु अस्पृश्य से, वियोजिती जो भोज।

स्वादहीन वह तामसी, करे शोक और रोग।। 10

 

सात्विक यज्ञ क्या है

सात्विक होता यज्ञ वह, जो कि शास्त्र अनुसार।

समझें खुद कर्तव्य को, फल की चाह बिसार। 11

 

राजसिक यज्ञ क्या है

होता राजस यज्ञ वह, जो हो भौतिक लाभ।

गर्व, अहम से जो करें, मन में लिए प्रलाभ।। 12

 

तामसिक यज्ञ क्या है

तामस होता यज्ञ वह, जो हो शास्त्र विरुद्ध।

वैदिक मंत्रों के बिना, होता यज्ञ अशुद्ध।। 13

 

शारिरिक तपस्या क्या है

ईश, गुरू, माता-पिता, ब्राह्मण पूजें लोग।

ब्रह्मचर्य पावन सरल, यही तपस्या योग।। 14

 

वाणी की तपस्या क्या है

सच्चे हितकर बोलिए, मुख से मीठे शब्द।

वेद साहित्य स्वाध्याय ही, तप वाणी यह लब्ध।। 15

 

मन की तपस्या

आत्म संयमी मन बने, रहे सरल संतोष।

शुद्ध बुद्धि जीवन रहे, धैर्य तपी मन घोष।। 16

 

सात्विक तपस्या

लाभ लालसा से रहित, करें ईश की भक्ति।

दिव्य रखें श्रद्धा सदा, यही सात्विक वृत्ति।। 17

 

राजसी तपस्या

दम्भ और सम्मान हित, पूजा हो सत्कार।

यही राजसी तपस्या,नहीं शाश्वत सार।। 18

 

तामसी तपस्या

आत्म-उत्पीड़न के लिए, करें हानि के कार्य।

यही तामसी मूर्ख तप, करें विनिष्ट अकार्य।। 19

 

सात्विक दान

करें दान कर्तव्य हित, आश न प्रत्युपकार।

काल देख व पात्रता, ये सात्विक उपकार।। 20

 

राजसी दान

पाने की हो भावना, हो अनिच्छु प्रतिदान।

फल की इच्छा जो रखे, यही राजसी दान।। 21

 

तामसी दान

अपवित्र जगह में दान हो, अनुचित हो असम्मान।

अयोग्य व्यक्ति को दान दें, यही तामसी दान।। 22

 

ईश्वर का आदि काल से चला आ रहा सर्वश्रेष्ठ नाम क्या है

हरिः ॐ, तत, सत यही,मूल सृष्टि का मंत्र।

श्रेष्ठ जाप यह ब्रह्म का,यही वेद का मन्त्र।। 23

 

ब्रह्म प्राप्ति शास्त्रज्ञ विधि, से हो जप तप, दान।

ओमकार शुभ नाम से, सबका हो कल्यान।। 24

 

दान, यज्ञ, तप जो करें, ‘तत’ से हो सम्पन्न।

फल की इच्छा मत करें, तब हों प्रभू प्रसन्न।। 25

 

यज्ञ लक्ष्य हो भक्तिमय, परम् सत्य, ‘सत’ शब्द।

यज्ञ करें सम्पन्न जो, सर्वश्रेष्ठ सत् लब्ध ।। 26

 

यज्ञ,दान तप साधना, सभी कर्म प्रभु नाम।

हों प्रसन्न परमा पुरुष, ‘सत’ को करें प्रणाम।। 27

 

यज्ञ, दान, तप जो करें, बिन श्रद्धा के कोय।

असत् कर्म नश्वर सभी, व्यर्थ सभी कुछ होय।। 28

 

इति श्रीमद्भगवतगीतारूपी उपनिषद एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन संवाद में ” श्रद्धा के विभाग ब्रह्मयोग ” सत्रहवाँ अध्याय समाप्त।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 4 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (61-65) ॥ ☆

 

यवनीयों के मुख कमल हुये न रघु को सह्य

असमय मेघों का रहा रवि ज्यों सदा असह्य ॥ 61॥

 

अध्वारोही सेन से सज्जित पश्चिम देश

लड़े धनुष्टंकार से गुंज्जित था परिवेश ॥ 62॥

 

मधुमक्खी से घिरे से मधुछत्ते की भांति

रघु – भालों से कट गिरी श्मश्रु मुण्डों की पाँत ॥ 63॥

 

बचे शत्रु शिर कवच रख आये शरण रघु पास

विनय रूप प्रतिकार में था जिनका विश्वास ॥ 64॥

 

द्राक्षामण्डप के तले बैठे सुभर महान

सुरापान करने लगे करने दूर थकान ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचना /Information – ☆ हिंदी आंदोलन परिवार  – 27वें स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ☆

?हिंदी आंदोलन परिवार  – 27वें स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ?

 

अंधेरा अभी गया नहीं है पर वातावरण में गूँज रही पंछियों के एक जोड़े की चहचहाट, भोर के आलोक की सुगबुगाहट बन रही है।

समय कितनी तीव्र गति से उड़ता है! स्मरण आता है कि ऐसी ही चहचहाट 27 वर्ष पूर्व भी हुई थी। आनंदमयी एवं संभावनाओं से परिपूर्ण चहचहाट। 30 सितम्बर 1995 को जन्मा हिन्दी आंदोलन परिवार, आज 27 वर्ष का गठीला युवा हो चुका।

हिंआंप को शिशु से युवा करने के इस यज्ञ में अपने समय एवं ऊर्जा की आहुति देनेवाले सभी निष्ठावान एवं समर्पित पदाधिकारियों, सहकर्मियों, कार्यकर्ताओं एवं हितैषियों के प्रति हम नतमस्तक हैं। आप हैं, सो हिंआंप है।

हिन्दी आंदोलन परिवार चिरंजीव हो।27वें स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

उबूंटू!

? सुधा एवं संजय भारद्वाज?
संस्थापक, हिन्दी आंदोलन परिवार

27.9.2021, प्रात: 5:50 बजे।

? ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से  हिंदी आंदोलन परिवार को 27वें स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ?

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ 30 सप्टेंबर – संपादकीय  -जागतिक अनुवाद दिन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

 ☆ 30 सप्टेंबर- संपादकीय ☆  

?संपादकीय  -जागतिक अनुवाद दिन?

आजचा दिवस “ जागतिक अनुवाद दिन “ म्हणून गौरवला जातो. “ अनुवाद “ हा एक “साहित्यप्रकार“ म्हणून रुजवून, त्याला जागतिक साहित्यविश्वात मानाचे असे अढळपद मिळवून देणाऱ्या आणि त्या स्थानाला सातत्याने गौरव प्राप्त करून देणाऱ्या सर्व अनुवादकांना ई – अभिव्यक्ती साहित्यमंचातर्फे आदरपूर्वक प्रणाम आणि हार्दिक शुभेच्छा

 

उज्ज्वला केळकर

संपादक मंडळ ( मराठी विभाग )

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

 

Please share your Post !

Shares