मराठी साहित्य – विविधा ☆ न फुटणारा आरसा… ☆ श्री अरविंद लिमये

श्री अरविंद लिमये

☆ विविधा ☆ न फुटणारा आरसा… ☆ श्री अरविंद लिमये ☆

वाचणे’ हे दोन अर्थ असणारे क्रियापद.एक एखाद्या संकटापासून,अरिष्टापासून सुटका होणे आणि दुसरा लिखित वाङमय,पुस्तके,संहिता यांचे वाचन करणे.वाचनाचे महत्त्व अधोरेखित करणारी ‘वाचाल तर वाचाल ‘ ही टॅग लाईन ‘वाचणे’या क्रियापदाचे दोन्ही अर्थ सामावून घेत वाचन संस्कृती लयाला जात असताना तिला वाचवू पहातेय. वाचनाचे महत्त्व पटवून देण्यापेक्षाही न वाचाल,तर तुम्ही निर्माण होणाऱ्या संकटांपासून वाचूच शकणार नाही याचा पोटतिकडीने इशारा देते.

वाचनाची आवड जाणिवपूर्वक जोपासणारे त्याचं महत्त्व तर जाणतातच,आणि वाचनातून आनंदही मिळवतात. किंबहुना वाचनाची आवड असणारे आहेत म्हणूनच लिहणारे लिहिते राहू शकतात.

वाचनाचे महत्त्व समजून घेण्यासाठी वाचनाकडे पहायचा दृष्टीकोन मात्र निकोप हवा.वाचन हे वेळ घालवायचे साथन नसावे. त्यापासून मिळणारे ज्ञान आत्मसात  करण्याची दृष्टी महत्त्वाची.वाचन फक्त ज्ञानच देत नाही तर जगावे कसे हेही शिकवते.वाचनाची आवड नसणार्ऱ्यांचं जगणं या संस्कारांअभावी झापडबंद होत जातं.माणसांची मनं वाचण्याची कला वाचनाने समृध्द केलेल्या मनाला नकळतच अवगत होत असते.त्यामुळे माणसांना समजून घेणे,स्विकारणे सहजसुलभ घडत जाते.जगाकडे आणि जगण्याकडे पहाण्याचा निकोप दृष्टीकोन सकस वाचनानेच प्राप्त होत असतो.लेखनप्रतिभेची देन लाभलेल्या भाग्यवंतांनीही आपल्या लेखनाचा कस टिकवून ठेवण्यासाठी विविध विषयांवरील इतरांचे लेखन आवर्जून वाचायला हवे.तरच त्यांच्या लेखनातले वैविध्य न् ताजेपण टिकून राहील.

लेखकाला त्याचं अनुभव विश्व लिहिण्यास प्रेरणा देत असतं,तसंच मनाला स्पर्शून  जाणारे लेखन वाचकालाही अनुभवसंपन्न करीत असते. लेखकाचं लेखन एक ‘न फुटणारा आरसा’च असतं. वाचणारा त्यात प्रतिबिंबित होणारं, एरवी दिसू न शकणारं स्वत:चं,स्वत:च्या जगण्याचं प्रतिबिंब अंतर्दृष्टीने  पाहू शकतो.अर्थात त्यासाठी सजग दृष्टीने वाचनाची आवड लावून घेणे न् ती जोपासने हे  महत्त्वाचे असते !

 

© श्री अरविंद लिमये

सांगली

मो ९८२३७३८२८८

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (73) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता 

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18

( श्रीगीताजी का माहात्म्य )

अर्जुन उवाच

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वप्रसादान्मयाच्युत ।

स्थितोऽस्मि गतसंदेहः करिष्ये वचनं तव ॥

 

अर्जुन ने कहा-

अच्युत आप की कृपा से, नष्ट मोह जंजाल

कर्म ज्ञान मिला, भ्रम मिटा, धर्म सकूँगा पाल ।।73।।

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे अच्युत! आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया और मैंने स्मृति प्राप्त कर ली है, अब मैं संशयरहित होकर स्थिर हूँ, अतः आपकी आज्ञा का पालन करूँगा॥73॥

Destroyed is my delusion as I have gained my memory (knowledge) through Thy Grace, O Krishna! I am firm; my doubts are gone. I will act according to Thy word.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’  

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

vivek1959@yahoo.co.in मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

आंसू सूखे आंख के, सूख रही है देह।

इन यादों का क्या करूं, होती नहीं सदेह।।

 

याद तुम्हारी कुसुम -सी, खिली बिछी तत्काल ।

या समुद्र के गर्भ में, बिखरी मुक्ता माल।।

 

घन विद्युत सी याद है, देती कौंध उजास।

कभी-कभी ऐसा लगे, करती है परिहास।

 

सूना सूना घर मगर, दिखे नहीं अवसाद।

इसमें क्या अचरज भला, महक रही है याद।।

 

मास दिवस या वर्ष सब, होते गई व्यतीत।

किंतु याद की कोख में, है जीवन अतीत।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 27 – मैं ही था … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “मैं ही था … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 27– ।। अभिनव गीत ।।

☆ मैं ही था … ☆

कितने संघर्षों का मारा

मैं ही था

कुछ न कुछ रह गया

कुँआरा में ही था

 

छूट गया था कुछ

पड़ौस में कुछ घर में

कुछ कुछ छूटा था

कुर्सी पर दफ्तर में

 

कुछ हाटों में

बाजारों में छूटा था

जो कुछ भी बच

सका सहारा मैं ही था

 

आधा रहा बैंक में

आधा जेबों में

आधा रहा पाँयचों-

में पाजेबों में

 

कितनी गाँठों में

मुझ को बाँधा तुमने

कितनी गड़बडियों

का मारा मैं ही था

 

कुछ किताब में कुछ

कविता के पन्नों में

गाया गया खूब

शादी के बन्नों में

 

जैसे छूट गया

अपनों सँग बँधने से

जूड़े का वह बाल

तुम्हारा मैं ही था

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26-11-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सापेक्षता ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ सापेक्षता ☆

घोर नीरव के बीच

कोलाहल मचाता मन,

भारी कोलाहल में

मन का क्वारंटीन,

परिभाषाएँ सापेक्ष होती हैं,

क्या कहते हो आइंस्टीन..?

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 72 ☆ व्यंग्य – चुनाव में भाग्य रेखा ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर व्यंग्य – “चुनाव में भाग्य रेखा“। ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 72

☆ व्यंग्य – चुनाव में भाग्य रेखा ☆

गंगू की टीवी देखने की बुरी आदत है, टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में टीवी वाले छोटी सी बात को धजी का सांप बना देते हैं, और गंगू है कि टीवी की हर बात को सच मान लेता है। इन दिनों गंगू को अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की ज्यादा चिंता है। बिहार और म.प्र.के चुनाव में नेताओं की चालबाजियों और ऊंटपटांग बयानबाजी से उसका मन ऊब गया है, इसलिए अमेरिका के चुनाव में उसका खूब मन लग रहा है।

जब हम पेपर पढ़ने बैठते हैं तो गंगू बीच-बीच में बहुत डिस्टर्ब करता है।पूरा पेपर पढ़ नहीं पाते और बीच में पूछने लगता है–बाबू जी आज के पेपर में अमेरिका के चुनाव के बारे में कुछ नया आया है क्या ?  फिर थोड़ी देर बाद कहने लगता है -बाबू जी लाक डाउन के पहले अमेरिका से जो टमटम आये थे उनकी हालत इस बार कुछ पतली लग रही है ? हमने कहा- गंगू चीजों को सही नाम से पुकारना चाहिए,वो जो आये थे वे दुनिया के सबसे अमीर शक्तिशाली राष्ट्रपति माने जाते हैं, उनका असली नाम डोनाल्ड ट्रंप है।

गंगू भड़क गया बोला- देखो बाबू… हम पढ़े लिखे तो नहीं हैं, हमारे मुंह से टमटम ही निकल रहा है तो हम क्या करें….हमारा क्या दोष ……….

और सीधी सी बात है कि हम गरीबी रेखा के नीचे के आदमी हैं, वे अमीर हैं तो अमीर होंगे अपने घर के….. उनके अमीर होने से हमारी गरीबी थोड़े न दूर होगी। बाबू यदि हम उनको टमटम बोल रहे हैं तो वो भी तो हमारे यहां के लोगों को कुछ भी बोल रहे थे।जब वो आये रहे तो मोदी जी के सामने भरी सभा में चाय वाला कहने की जगह ‘चिवाला’ बोल रहे थे, अभी तक तो शिवाला, दिवाला तो सबने सुना था पर ये ‘चिवाला’ तो कभी नहीं सुना था। टमटम भैया हम गरीबों के बीच बड़े होशियार बनना चाहते थे, वो हम सबको दिखाना चाहते थे कि वे भारत के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। कल्लू महराज ने उनका पूरा भाषण सुना रहा, कल्लू महराज ने बता रहे थे कि वे अपने भाषण में स्वामी विवेकानंद को ‘विवेकामनन’, चंद्रयान को ‘चन्डराजान’

और हमारे क्रिकेट हीरो सचिन तेंदुलकर को “सूचिन” कह रहे थे। अरे सही नाम लेते नहीं बन रहा था तो न लेते….

अपनी ज्यादा होशियारी बताने के लिए ‘शोले ‘फिल्म को “सूजे” कह रहे थे। ये भी क्या बात हुई कि सबकी प्यारी फिल्म ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ को उनने “डीडीएलजे” कह कर फिल्म का मजाक उड़ा दिया। हद कर दी टमटम ने… और बाबू जी आप कहते हैं कि टमटम कहने से वो नाराज़ हो जायेंगे। हम गरीब लोग भी तो नाम बिगाड़ने से नाराज़ हैं, काहे चाय वाले को ‘चिवाला’ कह दिया भाई, और अपने मोदी जी सिर झुकाए सब सुनते रहे, मुस्कराते रहे…ये बात तो ठीक नहीं है न….।

–अच्छा बाबू जे बताओ कि ये टमटम कुछ स्वार्थ लेकर आये रहे थे … काहे से कि एक बार कल्लू महराज कह रहे थे कि जे आदमी कभी किसी को भाव नहीं देता, सबको डराये रहता है, हथियार बेचने में विश्वास करता है।

—  हां …गंगू सही सुना है, ट्रंप राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं, नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव हैं न…. तो उनको लगता है कि हिन्दूओं के वोट मोदी के मार्फत मिल जाएंगे, इसलिए इस बार उनने मोदी जी को पटाकर ‘नमस्ते ट्रंप ‘कार्यक्रम करवा लिया। उनको मालूम था कि अमेरिका में अधिकांश गुजराती पटैल रहते हैं। यहां आने के पहले उनने मोदी जी को पहले से कह दिया था कि तीन घंटे में सात बार गले मिलना और नौ बार हाथ मिलाना, कोरोना-अरोना से नहीं डरना, भले बाद में लाक डाउन लगाना और थाली कटोरा बजवाना, पर अमेरिका वालों को दिखा देना कि दोस्ती बहुत तकड़ी है, अमेरिका के सारे हिन्दुओं के वोट लूटना है इस बार।

— तो जे बात है बाबू…इधर भी वोट की राजनीति में अपने अस्सी नब्बे करोड़ लुट गये। कल्लू महराज तो कह रहे थे कि टमटम गांधी जी के साबरमती आश्रम भी गए थे तो वहां भी मोदी जी का गुणगान करते रहे… महात्मा गांधी की तरफ देखा भी नहीं….

— बिलकुल सही सुना है गंगू…. साबरमती आश्रम में चरखा देखकर चक्कर खा गए, पत्नी से कान में बोले- इसीलिए इंडिया गरीब है, अभी भी चरखा के पीछे पड़े हैं। मोदी जी बताते रहे उनके समझ में कुछ नहीं आया तो साबरमती आश्रम की विजिटर्स बुक में मोदी की तारीफ के कसीदे काढ़ दिए और गांधी जी को भूल गए। असली क्या है गंगू… कि ट्रंप बुद्धिजीवी या किताबी ज्ञान रखने वाले विचारक किस्म के राजनेता नहीं माने जाते, उन्हें महात्मा गांधी के आदर्श सिद्धांतो से क्या लेना-देना। अहिंसा, सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, अपरिग्रह के सिद्धांत जैसी बातों में ट्रंप को क्यों रुचि होगी। सीधा मतलब ट्रंप को चुनाव जीतने से है, और उनको लगा कि भारतीय पटैलों के वोट मोदी दिला सकते हैं, इसीलिए ट्रंप को तगड़ी दोस्ती का नाटक दिखाना जरूरी था।

जिस दिन ये साबरमती आश्रम से लौटे थे उसी रात को ट्रंप की पत्नी मेलानिया ने पूछा भी था कि गांधी को क्यों जलाया दरकिनार करके आपने मोदी के गुणगान में सब कुछ लिख दिया, तो ट्रंप का सीधा जवाब था कि काम मोदी से है तो गांधी की तरफ क्यूं देखूं… नवंबर के चुनाव यह बात साफ है कि वोट दिलवाने का काम महात्मा गांधी नहीं कर पायेंगे, बल्कि मोदी मोदी कहने से काफी काम बन जाएगा। तुम तो जानती हो युद्ध और राजनीति में सब जायज है, इसलिए हमने चुनाव प्रचार के सारे आइटम इस बार चीन से बुलवाये हैं।

और अंदर की बात सुनो डियर मेलानिया, तुम तो जानती हो कि अमेरिका का राष्ट्रपति ग्लोबल दृष्टिकोण रखते हुए अपने देश के हितों को सर्वाधिक प्राथमिकता देता है, कुछ देश के मुखिया अपना हित और पार्टी के हितों को प्राथमिकता देते हैं। हमारी यात्रा का एक उद्देश्य तो ये है कि नवंबर के चुनाव के लिए वोट का जुगाड़ करना और दूसरा उद्देश्य भारत-अमेरिका मैत्री का नाटक कर भारत को घातक अस्त्र, विमान, लड़ाई का सामान बेचकर लाभ कमाना है। कंगाल पाकिस्तान की बजाय सम्पन्न होता भारत काफी बेहतर और मित्रता के लायक लगता है, इसी कारण से हमने पहले से अमेरिका में “हाउडी मोदी” प्रोग्राम करवा कर गेयर में लेलिया था। वैसे भी भारत के लोग संकोची होते हैं अपना नुकसान करके भी लिहाज करते हैं, इसीलिए माय डियर मेलानिया महात्मा गांधी की चिंता नहीं करो।

–बाबू जी टीवी वाले बता रहे थे कि जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है टमटम की हालत पतली होती जा रही है, सर्वे वाले भी कह रहे हैं कि इस बार इनका आना मुश्किल लग रहा है। सुना है कि हाथ की भाग्य रेखा बदलने के लिए मोदी जी को फोन करके सलाह मांगी है ?

— हां गंगू, तुम बहुत ऊंची खबर रखते हो। क्या है कि ट्रंप बहुत व्यवहारिक दृष्टिकोण रखने वाले नेता हैं, शुरू से धंधा पानी में ध्यान देने वाले, कभी वे अपने को सुपरमेन बताने लगते हैं, कभी मास्क लगाकर सामने वाले को पिद्दी नेता कहने लगते हैं। हालांकि तुमने सही सुना है मोदी जी के पास फोन आया रहा, तो यहां वालों ने भाग्य रेखा बदलने की दुकान का पता बतला दिया है, मीडिया वालों ने बताया कि थाईलैंड में एक दुकान खुली है जिसमें हाथों की लकीरों को बदलकर भाग्य बेहतर बनाने के लिए टेटू का सहारा लिया जाता है, याने भाग्य अवरुद्ध करने वाली लकीरें मिटा दी जाती हैं और हथेलियों पर नयी भाग्य रेखा बना दी जाती है, चुनाव जीतने में भाग्य रेखा का असली रोल होता है, तो अपनी पतली हालत को देखते हुए और चीन की चालबाजियों को समझते हुए ट्रंप जी ने रातों-रात नयी भाग्य रेखा बनवा ली है और कल कुछ भी हो सकता है…….

गंगू और बाबूजी की इस चर्चा को हुए एक अरसा गुजर गया ….. गंगू के टमटम की हालत वास्तव में पतली हो गई। टेटू वालों की नयी भाग्य रेखा किसी काम नहीं आई। गंगू के टमटम आज भी हार मानने को तैयार नहीं है। भला ऊपरवाले की लिखी भाग्यरेखा कभी कोई बदल सका है भला ….. और अपना गंगू है कि टीवी की हर बात को अब भी सच मान लेता है ….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #20 ☆ प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण, विचारणीय  एवं भावप्रवण  कविता “यह कैसा छल है”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 20 ☆ 

☆ प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ ☆ 

शहर के चौराहे पर

रक्तरंजित एक लाश पड़ी थी

भीड़ उसे घेरे खड़ी थी

दो नकाबपोश बाईक सवारों नें

यह घटना घड़ी थी

दिन दहाड़े हत्या

प्रशासन के लिए समस्या बड़ी थी

पता चला-

वो एक निर्भिक पत्रकार था

खोजी पत्रकारिता का आधार था

हद दर्जे का शरीफ

और ईमानदार था

उसकी स्टोरी के कारण

बिकता अखबार था

उसने रसूखदारों के खिलाफ

स्टोरी लिखने की

घोषणा की थी

सही तथ्य सामने रखने की

शपथ ली थी

सरमायेंदारोंमें हड़कंप

मचा था

उन्होंने शायद इसीलिए

ये षड़यंत्र रचा था

उस पर पहले भी

हमले हुए थे कई बार

फिर भी वह डरा नहीं

उसूलों से डिगा नहीं हर बार

वो जान हथेली पर लेकर

हर खबर को

शब्दों से गढ़ता था

वो इतना पापुलर था कि

हर व्यक्ति चाहे

वो बूढ़ा, जवान

महिला या बच्चा हो

उसका अखबार

जरूर पढ़ता था

पत्राचार के कोर्स में

उसने जो सबक

याद किया था

उसके वजह से

उसने सत्ता मे

भ्रष्टाचार के खिलाफ

शंखनाद किया था

आज वह चौराहे पर

मृत पड़ा था

क्योंकि उसने

सामंतवादी ताकतों के

खिलाफ युद्ध लड़ा था

क्या कोई पत्रकार

उसकी स्टोरी पूरी करेगा?

सच्ची पत्रकारिता की

मशाल हाथों में धरेगा ?

या प्रजातंत्र का यह

चौथा स्तंभ

सत्ता के गोदी में बैठ

बन जायेगा भाट ?

भूल जायेगा

जनता को

देश को

समस्याओं को

उपभोग करेगा

भीख  में मिलें हुए

ठाट-बाट ?

 

© श्याम खापर्डे 

भिलाई  05/12/20

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 27 ☆ शाळा सुटली… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 27 ☆ 

☆ शाळा सुटली… ☆

शाळा फुटली पाटी फुटली

गाणे पुन्हा पुन्हा आठवते

शाळेचा तो वर्ग भरतो

त्यातील माझी जागा भेटते

 

अलगद तिथे जाऊन बसतो

पाटी डोक्यावर ती पुसतो

ओरडतात मास्तर मजला

त्यांच्याकडे कानाडोळा होतो

 

हसायला येते मज्जा वाटते

शाळेत मग जाऊ वाटते

शाळेच्या ह्या आशा आठवणी

अंग अंग पुलकित होते

 

© कवी म. मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ अंदाज ☆ मेहबूब जमादार

☆ कवितेचा उत्सव ☆ अंदाज ☆ मेहबूब जमादार

मला माझं म्हणून क‌ा जगता येईना

मनातल्या प्रश्नांच उत्तर काही मिळेनां….

 

कोणी म्हणेल मग कशाला केलं लग्न

स्वप्नात मी बायकोला हा विचारला प्रश्न

मी म्हणून टिकले तिचा हेका काही सुटेना…१

 

बसताय कुठे निवांत, पहिलं घ्या पोरानां

पेपर द्या फेकून डोळं जातील वाचतानां

पोराबाळांच घर आपलं एवढं पण कळेनां?..२

 

मी कुठे जायचं तर खर्चाचा पडतो भार

माहेरा जायचं की ती सदैव असतें  तयार

मला सारं कळतं पण तिला का समजेना…३

 

कोणाशी बोलावे तर कोण ती तुमची

शंकाकुशंका ने हालत बिघडते माझी

होतो तळतळाट परी सांगावे कोणा?….४

 

थोडे कांहीं बोलले तर धरी अबोला

विनवले किती?सोडत नाही हट्टाला

म्हणे सोडतेे हट्ट पण घ्या मला  दागिना….५

 

मी आजारी पडता घायाळ ती होते

रात्रभर बिछान्यावर बसून ती रहाते

अशा तिच्या वागण्याचा अंदाजच येईनां….६

 

वय वाढलं तसं प्रेम ही वाढू लागलं

आपणाला कोण? हे दोघानां पटू लागलं

आतां माझ्या शिवाय तिचं पान ही हलेनां….७

 

© मेहबूब जमादार

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – जीवन रंग ☆ कथा- निरागस भाग-१ ☆ सौ. सुनिता गद्रे

 ☆ जीवन रंग ☆ कथा- निरागस भाग-१ ☆ सौ. सुनिता गद्रे ☆ 

हो, नाही करता-करता शेवटी शरयू ताईंचं ऑस्ट्रेलियात सिडनीकडं प्रस्थान झालं.  ज्योतीच्या लग्नाला सहा वर्षं होऊन गेली होती. ती आणि प्रकाश त्यांच्या कित्ती मागं लागायचे…. आमच्या संसार बघायला या म्हणून. पण दरवेळी काही ना काही कारणं निघायची आणि त्यांच्या पाय उंबरठ्यातच  अडखळायचा.

एकदा चार वर्षांची चिमुकली नात हर्षदा फोनवर बोलता- बोलता म्हणाली “बघ हं आजी, आता तुझी टर्न आहे तू आली नाहीस तर आम्हीपण येणार नाही इंडियात.”

त्या चिमुकलीचं रुसून गाल फुगवलेलं लोभस रुप त्यांच्या डोळ्यासमोर उभं राहिलं. “नाही… नाही, आता कुठलंही कारण नाही. या डिसेंबरमध्ये मी तुमच्याकडे येणार म्हणजे येणारच” त्यांनी आश्वासन देऊन टाकलं.

शेवटी दुधापेक्षा दुधावरची साय जास्त प्रिय असते ,म्हणतात ना तसंच झालं. त्या मायेच्या ओढीनच त्या सिडनीला जाऊन पोहोचल्या. तिघेही एअरपोर्टवर रिसिव्ह करायला आले होते. हर्षुनं आजीला पाहताक्षणी तिचा ताबा घेतला.

“मी आजीजवळ बसणार बुस्टर सीटवर नाही” तिचा हट्ट चालू झाला. तिला समजवता-समजवता दोघांच्या नाकी नऊ आले.

“काय करणार? इथं लहान मुलांना एखादी चापटी मारणं तर दूरच सार्वजनिक ठिकाणी जोरात रागावूनही चालत नाही. न जाणो कुणी पाहून कंप्लेंट करायचं आणि आम्हाला फाईनचा भूरदंड पडायचा.” ज्योती म्हणाली.

शेवटी आजीचा हात घट्ट पकडून ठेवून बूस्टर सीटवर बसायला ती तयार झाली आणि मुलीच्या घरी माहेर पण अनुभवायला  शरयूताई तिच्या घरात दाखल झाल्या. दोन-तीन दिवस आराम झाला. नंतर ज्योतीने विकेंडला जोडून दोन दिवसांची रजाच टाकली.

“ए, तुझी गाडी बाहेर काढूच नकोस बाई आता. आपण बसनं नाही तर मेट्रोनंच हिंडू या. शहर, रस्ते कसे छान लक्षात राहतात” त्या ज्योतीला म्हणाल्या.

मग आजी, मुलगी, नात बस स्टॉप वर उभ्या राहिल्या. एक भली मोठी वोल्वो समोर येऊन थांबली. मोजून सात-आठ माणसं होती. सवयीप्रमाणे दार उघडल्या-उघडल्या शरयूतार्ई बसमध्ये चढायला पुढे सरकत होत्या.

“वेट् आजी !” हर्षदा त्यांचा हात घट्ट धरून म्हणाली.

“अगं बघ ना त्या दोन ओल्ड लेडीज खाली उतरताहेत. त्यांच्या हातात कित्ती सामान आहे . मी थोडी हेल्प करते त्यांना.” थोडी सारवासारव करत त्या ज्योतीकडे पाहून म्हणाल्या.

“आई अगं, उतरणारे सगळे लोक उतरल्याशिवाय पुढे जायचंच नाही आणि हेल्प-बिल्प म्हणत असशील ना, तर अशी चूक चुकूनही करायची नाही. तो त्यांना अपमान वाटतो”. ज्योतीनं समजावलं.

“सगळं वेगळंच बाई इथलं. मला जर कुणी सामान उतरवायला मदत केली असती ना तर धन्य धन्य वाटलं असतं मला. तोंडभर आशीर्वाद दिले असते मी त्या व्यक्तीला “शरयू ताई पुटपुटल्या.

“अगं इथं एकटी राहणारी माणसं … बायका, पुरुष आपण आपलं लाइफ मॅनेज करू शकतो असं वाटतं तोपर्यंत एकटे राहतात. कार चालवायचा कॉन्फिडन्स संपला तर बसनं  फिरतात आणि अगदीच होईनासं  झालं तर वृद्धाश्रमात राहायला जातात.”

शरयू ताईंच्या ज्ञानात हळूहळू भर पडत होती त्या टी शर्ट-शॉर्टस् घालणाऱ्या, बॉब केलेले केस हेअर फिक्सरनं व्यवस्थित सेट केलेल्या, आत्मविश्वासाने आपलं ओझं आपण उचलणाऱ्या स्त्रियाअन् आपल्या देशातील सीनियर सिटिझन्स बायका… आणि पुरुषही… या मधला नेमका फरक त्यांना जाणवला.

सकाळी हर्षुला प्री-स्कूल मध्ये सोडायला अन् दुपारी परत आणायला शरयू ताई जाऊ लागल्या .शाळा जवळ होती. सकाळी साडेसात ते संध्याकाळी साडेपाच हे टाइमिंग. त्या मुदतीत केव्हाही सोडा आणि केव्हाही घेऊन जा. टाइमिंगच्या पाच मिनिटं आधी नाही की पाच मिनिटं नंतर नाही… त्या वेळेचा वेगळा चार्ज आकारला जायचा फी भरपूर आणि सगळं प्रोफेशनल.

शरयू ताईंना हिंडण्या- फिरण्यात गंमत वाटू लागली. आणि हर्षु ला आपल्या आजीला नाचवण्यात! संध्याकाळी आजी-नात फिरायला बाहेर पडायच्या. फिरणं म्हणजे रमणं-गमणंच असायच. हर्षु प्रत्येक बंगल्यासमोर लेटर बॉक्स वरील घर नंबर थांबून-थांबून वाचत चालायची.

क्रमशः…..

© सौ. सुनिता गद्रे,

माधव नगर, सांगली मो – 960 47 25 805

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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