हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उपमान  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – उपमान 

 

कल, आज और कल का

यों उपमान हो जाता हूँ,

अतीत में उतरकर

देखता हूँ भविष्य,

वर्तमान हो जाता हूँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 32 ☆ कविता-  ग्राम्य विकास ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनका एक बुंदेलखंडी कविता “ग्राम्य विकास”आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) \

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 32

☆ कविता-  ग्राम्य विकास  

 

सड़क बनी है

बीस बरस से

मोटर कबहुं

नहीं आई ।

 

गांव के गेवड़े

खुदी नहरिया

बिन पानी शरमाई।

 

टपकत रहो

मदरसा कबसें

धूल धूसरित

भई पढ़ाई ।

 

कोस कोस से

पियत को पानी

और ऊपर से

खड़ी चढ़ाई ।

 

बिजली लगत

रही बरसों से

पे अब लों

तक लग पाई ।

 

जे गरीब की

गीली कथरी

हो गई है

अब फटी रजाई।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सकारात्मक सपने – #36 – कैसे हो गाँव का विकास ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “कैसे हो गाँव का विकास”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 35 ☆

☆ कैसे हो गाँव का विकास

है अपना हिंदुस्तान कहाँ, वह बसा हमारे गाँवों में ! दुनिया में हमारे गांवो की विशिष्ट पहचान यहां की आत्मीयता,सचाई और प्रेम है.विकास का अर्थ आर्थिक उन्नति से ही लगाया जाता है, हमारे गाँवो का ऐसा विकास होना चाहिये कि आर्थिक उन्नति तो हो किन्तु हमारे ग्रामवासियों के ये जो चारित्रिक गुण हैं, वे बने रहें . गांवो के आर्थिक विकास के लिये कृषि तथा मानवीय श्रम दो प्रमुख साधन प्रचुरता में हैं. इन्हीं दोनो से उत्पादन में वृद्धि व विकास संभव है. उत्पादकता बढ़ाने के लिये बौद्धिक आधार आवश्यक है, जो अच्छी शिक्षा से ही संभव है. पुस्तकीय ज्ञान व तकनीक शिक्षा के दो महत्व पूर्ण पहलू हैं. ग्राम विकास के लिये तकनीकी शिक्षा के साथ साथ चरित्रवान व्यक्ति बनाने वाली शिक्षा दी जानी चाहिये. वर्तमान स्वरूप में शिक्षित व्यक्ति में शारीरिक श्रम से बचने की प्रवृत्ति भी स्वतः विकसित हो जाती है, यही कारण है कि शिक्षित युवा शहरो की ओर पलायन कर रहा है. आज ऐसी शिक्षा की जरूरत है जो सुशिक्षित बनाये पर  व्यक्ति शारीरिक श्रम करने से न हिचके.

स्थानीय परिस्थितियो के अनुरूप प्रत्येक ग्राम के विकास की अवधारणा भिन्न ही होगी, जिसे ग्राम सभा की मान्यता के द्वारा हर ग्रामवासी का अपना कार्यक्रम बनाना होगा. कुछ बिन्दु निम्नानुसार हो सकते हैं..

  1. जहाँ भूमि उपजाऊ है वहां खेती, फलों फूलो बागवानी नर्सरी को बढ़ावा, व कृषि से जुड़े पशुपालन का विकास
  2. वन्य क्षेत्रो में वनो से प्राप्त उत्पादो से संबंधित योजनायें व कुटिर उद्योगो को बढ़ावा
  3. शहरो से लगे हुये गांवो में शासकीय कार्यालयो में से कुछ गांव में प्रारंभ किया जाना,जिससे शहरो व गांवो का सामंजस्य बढ़े
  4. पर्यटन क्षेत्रो से लगे गाँवो में पर्यटको के लिये ग्रामीण आतिथ्य की सुविढ़ायें सुलभ करवाना
  5. विशेष अवधारणा के साथ समूचे गांव को एक रूपता देकर विशिष्ट बनाकर दुनिया के सामने रखना, उदाहरण स्वरूप जैसे जयपुर पिंक सिटी के रूप में मशहूर है, किसी गांव के सारे घर एक से बनाये जा सकते हैं, उन्हें एक रंग दिया जा सकता है और उसकी विशेष पहचान बनाई जा सकती है, वहां की सांस्कृतिक छटा के प्रति, ग्रामीण व्यंजनो के प्रति प्रचार के द्वारा लोगो का ध्यान खींचा जा सकता है.
  6. कार्पोरेट ग्रुपों द्वारा गांवों  में अपने कार्यालय खोलने पर उन्हें करों में छूट देकर कुछ गांवो की विकास योजनायें बनाई जा सकती है।

इत्यादि इत्यादि अनेक प्रयोग संभव हैं,पर हर स्थिति में ग्रामसंस्कृति का अपनापन, प्रेम व भाईचारे को अक्षुण्य बनाये रखते हुये, गांव से पलायन रोकते हुये,गाँवो में सड़क, बिजली,संचार,स्वच्छ पेय जल, स्वास्थ्य सुविधाओ की उपलब्धता की सुनिश्चितता व स्थानीय भागीदारी से ही गांवो का सच्चा विकास संभव है.

 

© अनुभा श्रीवास्तव्

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सूचनाएँ/Information ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के व्यंग्य संग्रह “डांस इण्डिया डांस” का विमोचन ☆

सूचनाएँ/Information

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के व्यंग्य संग्रह “डांस इण्डिया डांस” का  विमोचन ☆

पुस्तक – डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह) 

लेखक – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य – रु 300/-

इस अमेज़न लिंक पर ऑनलाइन उपलब्ध  >>  डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह) 

विगत दिनों विश्व की पुस्तकों की दुनिया के सबसे बड़े मेले  विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी  के व्यंग्य संग्रह “डांस इण्डिया डांस” का विमोचन सम्पन्न हुआ।

दिल्ली में आयोजित इस  विश्व पुस्तक मेले के लेखक मंच पर  व्यंग्य संग्रह “डांस इण्डिया डांस” का विमोचन  श्री प्रेम जनमेजय (व्यंग्य यात्रा के सम्पादक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार)डॉ सुरेश कांत (ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार आलोचक )श्री गिरीश पंकज (छत्तीसगढ़ के चर्चित व्यंग्यकार पत्रकार)श्री हरीश पाठक (वरिष्ठ कथाकर)श्री रमेश सैनी (व्यंग्यकार) , श्री पंकज सुबीर (व्यंग्य समालोचक ), श्री महेश दर्पण (सारिका के पूर्व उप संपादक ), डॉ संजीव कुमार (साहित्यकार) , श्रीमती समीक्षा तेलंग (व्यंग्यकार)  आदि द्वारा किया गया।

इसी अवसर पर देश भर से पधारे साहित्यकारों, पत्रकारों से खचाखच भरे सभागार में “इक्कीसवीं सदी में व्यंग्य की दशा और दिशा” विषय पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई ।

विमोचन के बाद डांस इण्डिया डांस की पहली  प्रति  प्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि आदरणीय सुरेंद्र शर्मा जी  (हिन्दी ग्रंथ अकादमी के मुखिया) और भोपाल के वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री हरि जोशी  जी को श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी  ने सादर भेंट की।

इस सन्दर्भ में डॉ कुंदन सिंह परिहार जी का यह कथन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं  “एक अच्छे व्यंगकार में अनेक गुण अपेक्षित हैं ।  पहले तो व्यंग्यकार संवेदनशील हो, ओढ़ी हुई करुणा से सार्थक व्यंग्य लेखन नहीं होगा।  दूसरे उसकी द्रष्टि सही हो ।  रूढ़ीवादी और अवैज्ञानिक सोच वाले लेखकों के लिए व्यंग्य को साधना कठिन है ।  लेखक की अभिव्यक्ति प्रभावशाली होनी चाहिए । लेखन शैली ऐसी हो जो पाठक को बांधे और साथ ही उसे सोचने को बाध्य करे ।  व्यंग्य का उद्देश पाठक का मनोरंजन करना नहीं हो सकता।”

आशीर्वचन स्वरुप पुस्तक की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ कुंदन सिंह परिहार जी द्वारा लिखी गई है,  जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं।

पुस्तक चर्चा ☆ डांस इंडिया डांस – श्री जय प्रकाश पांडेय ☆ “व्यंग्य-लेखन गंभीर कर्म है” – डॉ कुंदन सिंह परिहार

 

(ई- अभिव्यक्ति की ओर से श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए एवं सतत सफल लेखन के लिए  हार्दिक शुभकामनाएं)  

 

 

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ The Wheel of Happiness & Well-Being – Video #9 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ Laughter Yoga with Special Children: Rotary Paul Harris School ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #9

Laughter yoga is an integral part of our programme – ‘The Wheel of HAPPINESS & WELL-BEING’.

“The Wheel of Happiness and Well-Being” is an activity based, multi dimensional program for health, happiness, peace and well-being. The components of the program include Positive Psychology, Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.

The faculty of the Acropolis Institute of Technology and Research, Indore loved participating in ‘The Wheel of Happiness and Well-Being’ program conducted in their campus in February 2017.

The Director of the Institute and the Heads of Departments were also present in the program facilitated by Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht, Founders of LifeSkills.

 

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (9) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌।

कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ।।9।।

 

मुझको अर्पित प्राण मन आपस में विद्धान

करते हैं चर्चा मेरी करके कई अनुमान।।9।।

 

भावार्थ :  निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं।।9।।

 

With their minds and lives entirely absorbed in Me, enlightening each other and always speaking of Me, they are satisfied and delighted.।।9।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 35☆ व्यंग्य – मुहल्ले का डॉक्टर ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता  और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  का  व्यंग्य  ‘मुहल्ले का डॉक्टर’ वास्तव में हमें  इस सामाजिक सत्य से रूबरू कराता है। साथ ही यह भी कि मोहल्ले के डॉक्टर से मुफ्त समय, दवाइयां और फीस  की अपेक्षा कैसे की जाती है।  आखिर किसी  के व्यवसाय को  ससम्मान व्यावसायिक दृष्टिकोण से क्यों नहीं देखा जाता ?  ऐसी  सार्थक रचना के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को नमन। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 35 ☆

☆ व्यंग्य – मुहल्ले का डॉक्टर ☆

जनार्दन ने एम.बी.बी.एस. करने के बाद मुहल्ले में क्लिनिक खोलने का निर्णय लिया। मुहल्ला पढ़े-लिखे, खाते-पीते परिवारों का था, इसलिए प्रैक्टिस चल पड़ने की काफी गुंजाइश थी।

उन्होंने एक दिन मुहल्ले के परिवारों को क्लिनिक के उद्घाटन का आमंत्रण भेजा। क्लिनिक के सामने शामियाना लगवाया, कॉफी बिस्कुट का इंतज़ाम किया। शाम को मुहल्ले के लोग परिवारों के साथ इकट्ठे हो गये।

बुज़ुर्गों की तरफ से सुझाव आने लगे– ‘किसी को ब्लड-प्रेशर नापने के लिए बैठा देते’ या ‘ब्लड-शुगर की जाँच के लिए किसी को बैठा देते, तब सही मायने में क्लिनिक का उद्घाटन होता।’ डॉक्टर साहब सबके सुझाव सुन रहे थे। हर सुझाव का जवाब था—–‘कल से सब शुरू होगा। आज तो आप सब का आशीर्वाद चाहिए।’

मुहल्ले के बुज़ुर्ग लाल साहब डॉक्टर साहब के पीछे पीछे घूम रहे थे। बीच बीच में कह रहे थे, ‘एक बार मेरी जाँच कर लेते तो अच्छा होता। तबियत हमेशा घबराती रहती है। किसी काम में मन नहीं लगता। भूख भी आधी हो गयी है।’

डॉक्टर साहब ने ऐसे ही पूछ लिया, ‘यह परेशानी कब से है?’

लाल साहब बोले, ‘सर्विस में एक बार डिपार्टमेंटल इनक्वायरी बैठ गयी थी। उसमें तो छूट गया, लेकिन तब से डर बैठ गया। रात को कई बार पसीना आ जाता है और नींद खुल जाती है।’

डॉक्टर साहब ने पीछा छुड़ाया, बोले, ‘कल आइए, देख लेंगे।’

लाल साहब निराश होकर चुप हो गये।

डॉक्टर साहब का उद्घाटन कार्यक्रम हो गया। सब उन्हें शुभकामना और आशीर्वाद देकर चले गये।

दूसरे दिन लाल साहब सबेरे साढ़े सात बजे ही डॉक्टर साहब के दरवाज़े पर हाज़िर होकर आवाज़ देने लगे। डॉक्टर साहब भीतर से ब्रश करते हुए निकले तो लाल साहब बोले, ‘मैं पार्क में घूमने के लिए निकला था। सोचा, लगे हाथ आपको दिखाता चलूँ। दुबारा कौन आएगा।’

डॉक्टर साहब विनम्रता से बोले, ‘साढ़े दस बजे आयें अंकल। उससे पहले नहीं हो पाएगा।’

लाल साहब ने ‘अरे’ कह कर मुँह बनाया और विदा हुए। फिर दोपहर को हाज़िर हुए। डॉक्टर साहब ने जाँच-पड़ताल करके कहा, ‘कुछ खास तो दिखाई नहीं पड़ता। ब्लड-शुगर की जाँच कराके रिपोर्ट दिखा दीजिए।’

लाल साहब निकलते निकलते दरवाज़े पर मुड़ कर बोले, ‘मुहल्ले वालों से फीस लेंगे क्या?’

डॉक्टर साहब संकोच से बोले, ‘जैसा आप ठीक समझें।’

लाल साहब ‘अगली बार देखता हूँ’ कह कर निकल गये।

डॉक्टर साहब ने शाम की पारी में नौ बजे तक बैठने का नियम बनाया था। दो तीन दिन बाद मुहल्ले के एक और बुज़ुर्ग सक्सेना जी रात के दस बजे आवाज़ देने लगे। डॉक्टर साहब निकले तो बोले, ‘अरे, सत्संग में चला गया था। वहाँ टाइम का ध्यान ही नहीं रहा। घर में बच्चे को ‘लूज़ मोशन’ लग रहे हैं। कुछ दे देते। आपके पास तो सैंपल वगैरह होंगे।’

डॉक्टर साहब ने असमर्थता जतायी तो सक्सेना साहब नाराज़ हो गये। बोले, ‘जब मुहल्ले वालों का कुछ खयाल ही नहीं है तो मुहल्ले में क्लिनिक खुलने से क्या फायदा?’

वे भकुर कर चले गये।

फिर एक दिन एक बुज़ुर्ग खन्ना साहब आ गये। उन्होंने बताया कि उनके डॉक्टर साहब के मरहूम दादाजी से बड़े गहरे रसूख थे और उनकी उनसे अक्सर मुलाकात होती रहती थी। वे बार बार कहते रहे कि डॉक्टर साहब उनके लिए पोते जैसे हैं। आखिर में वे यह कह कर चले गये कि वे फीस की बात करके डॉक्टर साहब को धर्मसंकट में नहीं डालना चाहते। चलते चलते वे डॉक्टर साहब को ढेरों आशीर्वाद दे गये।

फिर दो चार दिन बाद रात को एक बजे डॉक्टर साहब का फोन बजा। उधर मुहल्ले के एक और बुज़ुर्ग चौधरी जी थे।बोले, ‘भैया, पेट में बड़ी गैस बन रही है। एसिडिटी बढ़ी है। नींद नहीं आ रही है। कुछ दे सको तो किसी को भेजूँ।’

डॉक्टर साहब ने फोन ‘स्विच ऑफ’ कर दिया।

अब कभी कभी डॉक्टर साहब सोचने लगते हैं कि मुहल्ले में दवाखाना खोलकर अक्लमंदी का काम किया या बेअक्ली का?

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #33 ☆ शारदीयता ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 33 ☆

☆ शारदीयता ☆

कुछ चिंतक भारतीय दर्शन को नमन का दर्शन कहते हैं जबकि यूरोपीय दर्शन को मनन का दर्शन निरूपित किया गया है।

वस्तुतः मनुष्य में विद्यमान शारदीयता उसे सृष्टि की अद्भुत संरचना और चर या अचर हर घटक की अनन्य भूमिका के प्रति मनन हेतु प्रेरित करती है। यह मनन ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता है, कृति और कर्ता के प्रति रोम-रोम में कृतज्ञता और अपूर्वता का भाव जगता है। इस भाव का उत्कर्ष है गदगद मनुष्य का नतमस्तक हो जाना, लघुता का प्रभुता को नमन करना।

मनन से आगे का चरण है नमन। नमन में समाविष्ट है मनन।

दर्शन चक्र में मनन और नमन अद्वैत हैं। दोनों में मूल शब्द है-मन। ‘न’ प्रत्यय के रूप में आता है तो मन ‘मनन’ करने लगता है। ‘न’ उपसर्ग बन कर जुड़ता है तो नमन का भाव जगता है।

मनन और नमन का एकाकार पतझड़ को वसंत की संभावना बनाता है। देखने को दृष्टि में बदल कर आनंदपथ का पथिक हो जाता है मनुष्य।

एक प्रसंग साझा करता हूँ। देश के विभाजन के समय लाहौर से एक सिख परिवार गिरता-पड़ता दिल्ली पहुँचा। बुजुर्ग महिला, एक शादीशुदा बेटा, बहू, नन्हीं पोती और शादी की उम्र का एक कुँआरा बेटा। दिल्ली की एक मुस्लिम बस्ती में मस्जिद के पास सिर छुपाने को जगह मिली। बुजुर्ग महिला जब तक लाहौर में थी, रोजाना पास के गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेककर आतीं, उसके बाद ही भोजन करती थीं। बेटों को माँ का यह नियम पता था पर हालात के आगे मज़बूर थे। अगली सुबह दोनों बेटे काम की तलाश में निकल गए। शाम को लौटे। बड़े बेटे ने कहा,” बीजी, मैंने पता कर लिया है। एक गुरुद्वारा है पर दूर है। थोड़े दिन यहीं से मत्था टेक लो, फिर गुरुद्वारे के पास कोई मकान ढूँढ़ लेंगे।” माँ ने कहा,”मैं तो मत्था टेक आई।”..”कहाँ?”..”यह क्या पास में ही तो है”, इशारे से दिखाकर माँ ने कहा।..”पर बीजी वह तो मस्जिद है।”..”मस्जिद होगी, उनके लिए। मेरे लिए तो गुरु का घर है”, माँ ने उत्तर दिया।

देखने को दृष्टि में बदलने वाली शारदीयता हम सबमें सदा जागृत रहे।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 20 – चक्र ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  जीवन दर्शन पर आधारित एक दार्शनिक / आध्यात्मिक  रचना ‘चक्र ‘।  आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 20  – विशाखा की नज़र से

☆ चक्र  ☆

 

भूख है तो , चूल्हा है

चूल्हा है तो, बर्तन है

बर्तन है तो , घर है

घर है तो , सुरक्षा है

सुरक्षा है तो , दीवारें हैं

दीवारें हैं तो ?

 

दीवारें हैं तो , झरोखा है

झरोखें से दिखता आसमाँ है

आसमाँ है , तो चाह है

चाह है तो भूख है

और

भूख है तो ……

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 26 ☆ तुम आना ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा कोहरे के आँचल में लिखी हुई एक  अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “तुम आना”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 26 ☆

☆ तुम आना

तुम आना,

वासंती किरणों को ओढ़कर,

सुगन्धित हवाओं में लपेटकर,

तुम आना ।

 

तुम आना ,

रिमझिम बूँदों में भीग कर,

कोहरे की श्वेत शाल पहनकर ,

तुम आना ।

 

तुम आना ,

नंगे पाँव, ओस पर चलकर ,

पायल को खनकाकर,

तुम आना ।

 

तुम आना,

केशों को खुला छोड़ कर ,

नदिया सी बल खाकर,

तुम आना ।

 

तुम आना

अंजुली में सपने संजोकर,

मेरी अंजुली में भर देने,

तुम आना ।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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