श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष”  की अगली कड़ी में प्रस्तुत है उनकी एक सामायिक कविता  “चलो मिलकर सरकार बनाएं ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकेंगे . ) 

 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 14 ☆

☆ चलो मिलकर सरकार बनाएं   ☆

चलो मिलकर सरकार बनाएं

भानुमति का आकार बनाएं  ।।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।

 

झूठ,कपट,धोखा,मक्कारी ।

घात,आघात की तैयारी ।।

स्वयं की जय जयकार लगाएं ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

जनता को दे झूठ दिलासा ।

आगे रख खुद की अभिलाषा ।।

जोड़ तोड़ कर दरबार सजाएं ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

राजनीति की अलग चाल है ।

यहां बस झूठ का धमाल है ।।

सत्ता अब मक्कार चलाएं ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

यहां न कोई सगा संबंधी ।

राजनीति की रीति है गन्दी ।।

सत्ता से सरोकार बनाएं ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

कोर्ट कचहरी आम बात है ।

यहां न कोई जाति पांति है ।।

कुर्सी के ब्यवहार बनाएँ ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

यहां सभी हैं धुन के पक्के ।

एक दूजे को देते गच्चे  ।।

इन्हें कौन संस्कार पढ़ाए ।।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

जागो जागो हे मतदाता ।

तुम्ही सब के भाग्य विधाता ।।

यह अवसर ना हर बार लाएं ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

राजनीति में “संतोष” कहाँ ।

इक दूजे को दें दोष यहाँ ।।

पर खुद को खुद्दार बतायें ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

सपने सभी साकार बनाएं ।

चलो मिलकर सरकार बनाएं ।।

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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