श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  “हम साथ साथ (लाए गए) हैं” । इस स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ शेष कुशल # 25 ☆

☆ व्यंग्य – ‘हम साथ साथ (लाए गए) हैं’ ☆ 

हाँ तो श्रीमान, आपने कभी तराजू में मेंढक तौल कर देखे हैं ?

नहीं ना, तो ऐसा कीजिए घर में ही शादी के रिसेप्शन के अंतिम दौर में एक फेमेली फोटो खिंचवाने की ज़िम्मेदारी ले लीजिए. पहले ऐसा करें कि महोबावाली मौसी को ढूंढ लें. किते को गई हैं, मिल नई रई इत्ते बड़े गार्डन में. मोबाइल लगा लीजिए. उठा नई रई – रूम में धरो होगो. वे बैठी हैं उते अलाव के कने. लो अब वे मिलीं तो मौसाजी गायब.यार जल्दी करो हम तुमे स्टेज के पास इकट्ठा होने को कह रहे हैं तुम इधर उधर हो जाते हो. अरे कोई दद्दा को लेके आओ यार. तुमई चले जाओ उधर जमीं है महफिल बुढ़ऊओं की – वहीदा रहमान के दीवाने हैं दद्दा. ‘चौदहवीं का चाँद’ इकत्तीस बार देखी उनने. उसी की स्टोरी सुना रहे होंगे. सुनाते रहें यार हमें क्या, हम तो एक बार फोटो खिंचवा दें तो हमारी ज़िम्मेदारी खतम. कोसिस करते हैं मगर बे हमारे केने से आएंगे नई.

लो अब पप्पू कहाँ चला गया. जहीं तो खड़ा हूँ जब से फेविकोल लगा के. खड़ा मत रह पिंकी बुआ को बुला, जल्दी, केना कि खाना बाद में खा लियो. खाना नई खा रईं बे पाँचवें दौर की पानी पतासी खा रई हैं. जब तक पेट ना पिराने लगेगा तब तक इनिंग्स चलती रहेगी बुआ की. आर्गुमेंट मतकर यार, तेनगुरिया फेमेली की जेई वीकनेस है – काम कम बहस ज्यादा. बड़ी मुस्किल से पूरी फेमेली इकट्ठी हुई है, तुम बतकही में टेम खराब कर दे रहे हो.

चलिये, जो जो आ सकते थे स्टेज के पास आ चुके, मगर दो जन हो कर भी नहीं हैं. कक्का ने फोटो खिंचवाने से मना कर दिया. कहने लगे तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया, अब हमने टाई खोल दी है और बिना उसके हम फोटो खिंचवाएंगे नहीं. आप चिंता न करो कक्का ट्रिक-फोटोग्राफी आती है हमें, टाई बाद में अलग से जोड़ देंगे. कक्का यूं भी मन भाए मुंडी हिलाए के मूड में थे सो आसानी मान गए, मगर गुनेवाली नई बहू मंच के सामनेवाली कुर्सियों पर अब तक जमीं हुई थी. इसरार किए जाने पर बोलीं – हमें पसंद नई फोटो खिंचाना, हमारे फोटो अच्छे नई आते. ‘नखरे देखो इसके अब्बी से’ – मौसी ने बड़ी माँ के कान में फुसफुसा के इस तरह कहा कि सबको सुनाई भी दे जाए और लगे कि वे सिर्फ बड़ी माँ को कहना चाहती हैं. बिट्टू भैया ने समझाया – कौन तुमे मॉडलिंग के ट्रायल में भेजनी है जे फोटो. फेमेली साथ में है तो खिंचा लेव.

सबको इकट्ठा करने की कवायद पूरी हुई तो अब सेट जमा लीजिए. चलो लेडीज़ सब उस तरफ, जेन्ट्स सब इस तरफ. पिंटू यार तुम पीछे खड़े रहो – बिजली के खंबे से लंबे हो और आगे घुसे चले आ रए. बच्चे सब नीचे बैठेंगे. पप्पू तुम सामने आओ ना. नई हम पीछे ही खड़े रहेंगे – मुंडी दिख जाये फेमेली में इतनी ही हैसियत है हमारी. पप्पू के पापा ने उसे घूर कर देखा और मौके की नज़ाकत को भाँपते हुवे मन मसोस कर रह गए वरना अब तक बापवाली दिखा दिए होते. सेंटर में सरवैया परिवार की कैटरीना कैफ और तेनगुरिया परिवार के विक्की कौशल, तीन घंटे से खड़े खड़े आशीर्वाद के लिफाफों से अभिसिंचित हो रहे थे मगर थकान तो छू तक नहीं गई थी. शांत, स्थितप्रज्ञ, धैर्यवान कोई था तो बस कैमेरामेन – दोनों छोर से सिकुड़ने की चिरौरी और कैमरे के लेंस की ओर देखने का सतत आग्रह करता हुआ. बहरहाल, पोज खिंचा ही चाहता था कि अचानक, रुको रुको – दद्दा आप सोफ़े पे बीच में बैठो और विक्की और कैटरीना ऊकड़ूँ, पैर छूते हुवे, कैमरे की ओर देखो. दद्दा हाथ रखो दोऊ के सिर पे.

ओके, रेडी, क्लिक, डन, बाय.

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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