सुश्री सुषमा भंडारी

 

(सुश्री सुषमा भंडारी  जी  साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य मंथन की महासचिव एवं प्रणेता साहित्य संस्थान की अध्यक्षा हैं ।  प्रस्तुत है आपकी भावपूर्ण कविता आगे-आगे क्यूं तू  भागे? आपकी विभिन्न विधाओं की रचनाओं का सदैव स्वागत है। )

 

? आगे-आगे क्यूं तू  भागे ? ?

 

आगे-आगे क्यूं तू  भागे

होड़ मची है जीवन में

ठहर जरा ओ मूर्ख प्राणी

देख जरा तू दर्पण में

 

वर्षा कितना बोझ उठाती

बादल बनकर रह्ती है

तेरी प्यास बुझाने को वो

बूंद- बूंद बन बहती है

तू केवल अपनी ही सोचे

रहता फिर भी उलझन में

आगे-आगे क्यूँ तू—-

 

वीरों से कुछ सीख ले बन्दे

वतन की खातिर जीता है

वतन की मिट्टी वतन के सपने

जग की उधडन सीता है

सर्दी -गर्मी सब सीमा पर

सीमा पर ही सावन में

आगे-आगे क्यूँ तू—–

 

जीवन मूल्य टूट रहे सब

आओ इन्हें बचाएँ हम

संस्कार के गहने पहनें

सुर- संगीत सजायें हम

मात-पिता ही सच्चे तीर्थ

सुख है इनके दामन में

आगे-आगे क्यूँ तू—-

 

चलना है तो सीख नदी से

चलती शीतल जल देती

लेकिन मानव तेरी प्रवृति

बस केवल बस छल देती

सूरज किरणें फैला देता

सब प्राची के प्रांगण में

आगे-आगे क्यूँ तू—

 

© सुषमा भंडारी

फ्लैट नम्बर-317, प्लैटिनम हाईटस, सेक्टर-18 बी द्वारका, नई दिल्ली-110078

मोबाइल-9810152263

 

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सुरेश कुशवाहा तन्मय

सार्थक भावों से परिपूर्ण सुंदर रचना, बधाई

डॉ भावना शुक्ल

शानदार अभिव्यक्ति