सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।  आज प्रस्तुत है सुश्री अनुभा जी का आत्मकथ्य।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

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☆ सकारात्मक सपने  #-2 ☆

☆ सकारात्मक सपने ☆

सपने देखना मानवीय स्वभाव है , यह मानवीय विशेषता ही नही सामर्थ्य भी है, जो अन्य प्राणियों में दुर्लभ है |सामर्थ्य इसलिये कि हम स्वयं भी सपनों को आमंत्रित कर सकते हैं, किसी व्यक्ति, घटना, मौसम, व्यवहार विशेष

के सपने देखना चुन सकते हैं। आप कहेंगे कि सपने तो स्वयं आते हैं उन पर हमारा नियंत्रण कहाँ जो हम तय कर सकें कि हमें किस तरह का सपना देखना है। आप की बात भी सही है, लेकिन यकीन कीजिये आप सपने कहीं भी, कभी भी देख सकते हैं आवश्यक है कि आप सपने देखना जानते हों और इस काम मे आनंद प्राप्त करते हों।

सामान्यत: सपने नींद मे आते हैं और इस प्रकार के सपनों पर हमारा कोई नियंत्रण नही होता। ऐसे सपने पूर्व अनुभवों, भविष्य की चिंता या अन्य किसी भी कारण से आ सकते हैं, चुंकि सपने मस्तिष्क द्वारा देखे जाते हैं इसलिये हमारा निंद्रा मे होना इन सपनों को देखने में बाधक नही, बल्कि सहायक हो जाता है। नींद मे आने वाले सपने हमारी तात्कालिक मानसिक दशा के अनुरुप होते हैं और सामान्यत: अनियंत्रित होते हैं जब हम निंद्रा मे होते हैं तब भी हमारा मस्तिष्क सोचता रहता है, विभिन्न चित्र बनाता रहता है जो चलचित्र के समान बदलते रहते हैं, जिसमे अक्सर अस्पष्ट, और विचित्र घटनाऐ, संवाद और रंगीन अथवा रंगहीन आकृतियाँ हो सकती हैं। ये स्वप्न मनोविज्ञान का विषय हैं.मनोवैज्ञानिक इन स्वप्नों पर व्यापक अनुसंधान कर रहे हैं पर अब तक किसी तार्किक तथ्य तक नहीं पहुंच पाये हैं।

दूसरी ओर ऐसे सपने होते हैं जो हम जाग्रत अवस्था मे देखते हैं जिन्हें हम कभी भी, कहीं भी देख सकते हैं, वास्तव मे ऐसे सपने पूर्णत: सपने न होकर विचार-मग्न होने की उच्चतम अवस्था होते है जिसमे हम भविष्य की कार्य योजना बनाते हैं, ऐसा हम अपना काम करने के दौरान भी बिना किसी बाधा के कर सकते हैं। सपने देखने और सपने आने मे यही बुनियादी अंतर है जो सपने देखने कि प्रक्रिया को महत्वपूर्ण बनाता है।

आखिर यह सपने देखना होता क्या है? सपने देखने का मतलब उन दिवास्वप्नों से नहीं है जो मानसिक जुगाली से ज्यादा कुछ भी नहीं, आशय है उन वैचारिक सपनों से, जो गहन मंथन और किसी संभावित कार्य व उद्देश्य के प्रभावों का पूर्व आकलन करते हैं जिसे अंग्रेजी भाषा मे “विज्युलाइज” करना कहा जाता है। अर्थात सपने सृजन करने से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमे किसी कार्य को करने का संकल्प हो तथा उस कार्य को होते हुए “विज्युलाईज” किया गया हो। हम यह भी कह सकते हैं कि ऐसे सपने देखना एक रचनात्मक कार्य है और ये सपने देखने के लिये दूरदृष्टि, उमंग, उत्साह और साहस की आवश्यकता होती है। ये सपने आपकी कार्य क्षमता को बहुगुणित कर देते हैं, आसन्न कठिनाईयों के प्रति सचेत कर आपकी कार्य योजना को परिष्कृत कर देते हैं. ये ही वे सपने हैं जिन्हें सकारात्मक, सृजन शील, कल्पना कहा जाता है. प्रत्येक महान कार्य होने से पहले मन में विचार रूप में अंकुरित होता है, फिर सपने के रूप में पल्लवित होता है, तब संसाधन जुटाये जाते हैं और फिर उसे मूर्त रूप दिया जाता है. इसका सीधा सा अर्थ है कि हम कितनी और कैसी सफलता प्राप्त करेंगे यह इस पर आधारित है कि हम कैसे सपने बुनते हैं? कितनी गहराई तक उनसे जुड़ते हैं और कितनी तन्मयता से अपने सपनों को सच करने में जुट जाते हैं. तो जीवन में सफलता पाने के लिये आप भी देखिये कुछ ऐसे सकारात्मक सपने, और जुट जाइये उन्हें सच करने में. सपने वे नहीं होते जो हम सोते समय देखते हैं, सपने वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते.

© अनुभा श्रीवास्तव

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Dr. Prem Krishna Srivastav

सुसुप्त एवं जाग्रत अवस्था के सपनों का यथार्थ विश्लेषण

Vijay Tiwari Kislay

पढ़कर अच्छा लगा।
बधाई।
-किसलय