श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  व्यंग्य – शी शी और मेहमानवाजी। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 48

☆ व्यंग्य –  शी शी और मेहमानवाजी ☆ 

 

गजबेगजब करते हो यार…. दोस्ती का नाम लेकर दगाबाजी करते हो। जब दो साल पहले हम वुहान आये रहे तो तुमने झील के किनारे खूब झूला झुलाय कर खूब दोस्ती का नाटक करे रहे। हालांकि कि सयाने लोग बताइन रहन कि सन्  बासठ में भाई भाई कहके खूब पिटाई कर दिए रहे और हमार जमीन भी हथिया लिए थे। तुमको थोड़ी शरम नहीं आई कि जब हम दो साल पहले वुहान में रुके रहे तब तुमने हमखों वुहान लैब नहीं घुमाया रहा जब तुमने तीन चार साल पहले से जे वालो वायरस अपने फ्रिज में छुपाये रहे, तो हमखों भी वो लैब घुमा देते। सबै लोग बतात रहे कि दो तीन दिनन तक टीवी वालों ने तुमको और हमको खूब दिखाया रहा, टीवी  देख देख के कई लोग कहत रहे कि ऐसन लगत रहो जैसे दो विश्वसनीय दोस्त विचारों का बढ़िया आदान-प्रदान कर रहे हों। पर तुम तो एक नंबर के बदमाश और दगाबाज़ निकले, घर लौटत ही डोकलाम में अपने आदमी दंड पेलने भेज दिये रहे, बेशर्मी की हद होती है भाई…… वुहान में तुमने हमार शानदार स्वागत काहे को किया रहा, मुंह में राम और बगल में छुरी……..

हमारे गांव के लोग तुम्हें इसीलिए याद करते हैं कि तुम लोग खूब संतान पैदा करते हैं हालांकि हम लोग भी ऐसा करते हैं पर तुम लोग बाजी मार ले जाते हो। वुहान के रात्रि भोज में तो तुमने कहा रहा कि अपन आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर काम करेंगे पर रातोंरात तुम आतंकवादी की मदद करते रहे …….. , यार तुम्हीं बताओ कि तुम पर कैसे विश्वास करें। हम चमगादड़ से नफरत करते हैं और तुम हो तो उसको पूजते हो, उसका सूप पीते हो।

दोस्ती  का नाटक करके हमारी दिलेरी का फायदा इत्ते जल्दी उठा लेते हो कि सब त्यौहारों में तुम्हीं तुम छाये रहते हो। बीमारी असली वाली देते हो और बीमारी ठीक करने के उपकरण नकली देते हो। हमारे कुटीर उद्योग बर्बाद करके बेरोजगारों की फौज खड़ी कर देते हो।

यार तुम्हारी दगाबाजी और बेशर्मी से तो हमखों शर्म आती है। वुहान में तुमने तो कहा रहा कि अपन समान दृष्टिकोण, बेहतर संवाद, मजबूत रिश्ता, साझा विचार और साझा समाधान पर गले मिलते रहेंगे। क्या यार कहते कुछ हो करते कुछ हो। सच कहा गया है कि कुत्ता की पूंछ पुंगरिया में डालो जब भी निकालो तो टेड़ी ही निकलेगी। किस टाइप के आदमी हो यार, गले मिलने का बहाना करके जेब में वायरस डाल देते हो।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments