श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “तन्हा बार ”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 227 ☆
🌻लघु कथा🌻 🍻तन्हा बार 🍻
सिटी/बड़े शहर की जीवन शैली। सब कुछ आधुनिक और दिखावे से परिपूर्ण। भव्यता शानो-शौकत बेशुमार, परन्तु आत्मीयता अपनापन कहीं किसी में भी नहीं।
जगह- जगह शादी, डीजे, रौशनी और कुछ खास थीम जो आजकल का चलन बना हुआ है। परन्तु सबमें एक खास बात मोबाइल का अटेंशन। सब के हाथों में मोबाइल।
धूमधाम से एक बारात निकली जा रही थी। भीड़ रास्ता जाम, अपनी गाड़ी से उतरते महिमा ने धीरे से जहाँ गाड़ी पार्क की, वहाँ पर बड़े – बड़े अक्षरों पर लिखा था – – – तन्हा बार।
थोड़ी देर को उसे लगा कि वह गलत जगह पर खड़ी हो गई। पर यह क्या? जिनको देख कर वहाँ उसके रौगटे खड़े हो गए, वे उस घर परिवार के मुखिया थे, जहाँ शादी की बारात निकल रही थी। परिचित थे, पारिवारिक आना जाना था। कभी जिन्होंने पान न चबाया, आज उस दुकान से मुँह पोछते निकल रहे।
भाई साहब आज आप यहाँ — हाथ जोड़ उन्होंने कहा – – जो साथ वाले है सभी अपने में मस्त है। मैं सबके साथ कहाँ??? पर मैं अकेले कहाँ भाभी जी, यह केवल नाम का तन्हा लिखा है। यहाँ आने पर पता चला मेरा अपना कौन है? गमगीन आवाज में वे बोले – – असल में बरसो बाद आज पता चला- -असल में साथ देने और दुख दर्द बाँटने वाले यही मिलते हैं।
महिमा आवाक खड़ी रह गई। हाय री दुनिया – – किसी को तन्हा में भी अपनों की महफिल मिली।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈