श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “किन्नर”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 210 ☆
☆ लघुकथा – किन्नर ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
” माँ ! आप तो बचपन से मुझे जानती हो, मैं किसी लड़की से शादी नहीं कर सकता हूँ. फिर ये जिद क्यों ?”
” बेटा ! तू शादी कर ले. बाकि तेरे भैया सम्हाल लेंगे. कम से कम समाज में हमारी इज्जत तो रह जाएगी . फिर कोई यह तो नहीं जान पाएगा की तू, …” कहते हुए माँ गमले में लगे बोन्साई आम के वृक्ष को निहारने लगी.
© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
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