प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “राष्ट्रहित में सोचिये। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘स्वयं प्रभा’ से – “राष्ट्रहित में सोचिये” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

राष्ट्रहित में सोचिये, कर्त्तव्य पथ पर आइये

 झूठ-लालच स्वार्थ तज, सच नीति-नय अपनाइये

 राष्ट्रहित में सोचिये, कर्तव्य पथ पर आइये।

 

कर रही है स्वार्थवश हो राजनीति अपार क्षति

 कैसे इस दुर्भावना से भला संभव कोई प्रगति ?

 

बढ़ती जाती आये दिन, नई-नई समस्यायें कई

 हरेक निर्णय से उभरती हैं जटिलतायें नई।

 

क्यों हुआ है मन यों मैला, क्यों नजर दुर्बुद्धि की ?

 जरूरत है आत्मचिन्तन की औं जीवन शुद्धि की।

 

नामसझ लोगों से दिखते अधिकतर व्यवहार हैं।

 जनता की मुश्किलें बढ़ गईं, बढ़ें भ्रष्टाचार हैं।

 

कठिन होती जा रही है जिन्दगी तकरार से। 

समस्या तो हल हुआ करती है मिलकर प्यार से।

 

सभी का दायित्व है कि हों सुरक्षित सही हल

 देश की उन्नति हो जिससे और सुखदायी हो कल ।

 

तेजगति से हमारे भारत का उचित विकास हो ।

भावनायें हों न कुण्ठित, सबकी पूरी आश हो।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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