स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 192 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

मित्र,

नेत्रपटल पर उभरा

मित्र गरुड़ का चित्र ।

गरुड़ का स्मरणः

एकाएक

मुख पर

खिल गई मुस्कान् ।

मानो मिल गया –

समाधान ।

गरुड़ बोले-

चलो

चलकर मिलते हैं

महाराज ययाति से

जो कर चुके हैं

सहस्त्रों यज्ञों का

अनुष्ठान ।

निश्चय ही

वे

पूर्ण करेंगे

मनो कामना ।

मित्र गरुड़

और

ऋषि गालव को

राजसभा में

उपस्थित पाकर,

आदर से

उठ खड़े हुए

ययाति महाराज ।

बोले

शुभ दिन है आज।

मैं

कृतार्थ हुआ

आप दोनों के दर्शन पाकर।

क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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