(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता लंदन से 7 – उस तरह का धन। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 271 ☆

? कविता – उस तरह का धन ?

मेरे पास उस तरह का धन

शून्य है

पर मेरे

बड़ी मेहनत से कमाए ,इस तरह के धन को

तो मेरे पास रहने दो सरकार

कितना प्रगट, परोक्ष, टैक्स लगाओगी सरकार

टैक्स लोगों को मजबूर करता है

इस तरह के धन को उस तरह के धन में बदलने के लिए

अग्रिम टैक्स ले लेती हो

कभी अग्रिम वेतन भी दे सकती हो?

अपना ही इस तरह का धन

बेटी को विदेश भेजना हो तो

ढेर सा अग्रिम टैक्स कट जाता है

बिना किसी देयता के

तभी तो हवाला बंद नहीं होता

और

इस तरह का धन उस तरह के धन में

बदलता रहता है।

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

इन दिनों, क्रिसेंट, रिक्समेनवर्थ, लंदन

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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