श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “कहन कहन कहने लगे…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 185 ☆ कहन कहन कहने लगे

अच्छी शुरुआत अर्थात आधा कार्य पूर्ण,  पर देखने में आता है कि अधिकांश लोग देखा देखी प्रारंभ तो जोर – शोर से करते हैं किंतु बाद में उन्हें समझ आता है कि अमुक कार्य  उनकी रुचि का  नहीं है, और यहीं से गति धीमी हो जाती है। विचारों की उदासीनता से व्यक्ति बड़बोलेपन का शिकार हो जाता है। नया करने में  डर लगने लगता है। जैसे जोरशोर से कार्य आरंभ करते हैं उससे कहीं अधिक हमें उसे पूर्ण करने की ओर ध्यान देना चाहिए। सही प्रक्रिया अपनाते हुई  गुणवत्ता पूर्ण कार्यों की ओर अग्रसर होना सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है।

जब हम पूरे मन से कार्य को करेंगे तो अवश्य ही सकारात्मक विचारों के साथ उसे पूर्णता तक पहुँचायेंगे। योग्य मार्गदर्शक के निर्देशन में  शुभ परिणाम मिलते हैं। इस संदर्भ में एक बात और विचारणीय है कि यात्रा के बहाने लोगों से जुड़ने का अच्छा माध्यम मिलता है किंतु विचारहीन व्यक्ति सही संप्रेषण नहीं कर पाता। भाषा पर पकड़ यदि मजबूत नहीं होगी तो लोगों के बीच अपने मनोभावों को व्यक्त करना कठिन होगा। शब्दों को अटक – अटक कर बोलने से चेहरे की भाव – भंगिमा भंग होती है जिससे जो कहना है उसे बीच में रोक कर कुछ अनचाहा बोलना पड़ता है।

जो भी हो होते रहना चाहिए ताकि लोगों को  ये तो पता लगे कि आप मैदान में हैं। धूप – छाया, दिन – रात, धरती – आकाश, जल- थल, मीठा-कड़वा सभी जरूरी हैं। सो स्वयं को उपयोगी बनाने की दिशा में जुटे रहें। जनमानस के साथ संवाद हो विवाद नहीं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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