श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना “मंथन करते रहे उम्र भर…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 118 – मंथन करते रहे उम्र भर… ☆

मंथन करते रहे उम्र भर,

निष्कर्षों से है पाया।

धुन के रहे सदा ही पक्के,

जो ठाना कर दिखलाया।

पले अभावों के आँगन में,

पैरों पर जब खड़े हुए।

मिला सहारा गैरों से भी,

सीढ़ी चढ़ने अपनाया।

गिरे हुओं की पढ़ी इबारत,

मंजिल पर बढ़ना सीखा।

रिद्धि-सिद्धि की रही चाहना,

धीरज धर कर सुलझाया।

चले निरंतर पथ में अपने,

मात-पिता का साथ मिला।

जीवन में सहयोग रहा पर,

बिछुड़ा हमसे हर साया।।

दृढ़ संकल्प अगर हो मन में,

मिले सफलता कदम कदम।

निश्छल भाव रहे जीवन में,

सदा मिले प्रभु की छाया।

देख रहा अब विश्व हमारा,

अंतरिक्ष में सूर्योदय।

विश्व गुरु की अवधारणा पर,

सबने फिर शीश झुकाया।

हिन्दी को जो भी कहते थे,

यह अनपढ़ की भाषा है।

आज वही भाषा ने देखो,

अपना परचम फहराया।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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