श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल शहादत तय होती है परवाना की…” ।)

? ग़ज़ल # 111 – “शहादत तय होती है परवाना की…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मुहब्बत में अक्सर रोना पड़ता है,

आसुओं से दामन धोना पड़ता है।

शहादत तय होती है परवाना की,

रोशन शम्मा  को होना पड़ता है।

इश्क़ कितना  भी सच्चा हो जाये,

इल्ज़ामे जफ़ा  तो ढोना पड़ता है।

वस्ल के हालत कितने भी बनते हों,

यूँ कभी तन्हा  भी सोना  पड़ता है।

बन गए अगर शौहर बीबी तो भी तो,

बीज  झूठे  सच्चे  बोना  पड़ता  है। 

आख़िरी मंज़िल फ़िराक़ की होती है,

यदाकदा लिहाफ़ भिगोना पड़ता है।

इश्क़ की फ़ितरत इस तरहा ही होती,

महबूब को  आतिश खोना पड़ता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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