श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 100 – मनोज के दोहे… ☆

1 सुमुख

करूँ सुमुख की अर्चना, हरें सभी के कष्ट।

गौरी-शिव प्रभु नंदना, रोग शोक हों नष्ट।।

2 एकदंत

एकदंत रक्षा करें, हरते कष्ट अनेक।

दयावंत हैं गजवदन,जाग्रत करें विवेक।।

3 गणाध्यक्ष

गणाध्यक्ष गजमुख प्रभु, हर लो सारे कष्ट।

बुद्धि ज्ञान भंडार भर, कभी न हों पथभ्रष्ट।।

4 भालचंद्र

भालचंद्र गणराज जी, महिमा बड़ी अपार।

वेदव्यास के ग्रंथ को, लेखन-लिपि आकार।।

5 विनायक

बुद्धि विनायक गजवदन, ज्ञानवान गुणखान ।

प्रथम पूज्य हो देव तुम, करें सभी नित ध्यान ।।

6 धूम्रकेतु

धूम्रकेतु गणराज जी, इनका रूप अनूप।

अग्र पूज्य हैं देवता, चतुर बुद्धि के भूप।।

7 गजकर्णक

गजकर्णक लम्बोदरा, विघ्नविनाशक देव।

रिद्धि सिद्धि के देवता, हरें कष्ट स्वयमेव।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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