श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# बेबंदशाही… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 148 ☆

☆ # बेबंदशाही#

गरीबी निर्धन को कितना रूलाती है

जीवन ओर मृत्यु के बीच झुलाती है

झूठे वादों, खोखले आश्वासनों के झूले में

भूखे को खाली पेट सुलाती है

 

यह हमने कैसी व्यवस्था बनाई है

अमीर-गरीब के बीच खाई है

भूखे रोटी के लिए लड़ रहे हैं

अमीरों ने विश्व स्तर पर छलांग लगाई है

 

कुछ सूरमा नफरत का अस्त्र घोंप रहे हैं 

अपनी विचारधारा दूसरे पर थोप रहे हैं 

रक्तरंजित हो गई सामाजिक व्यवस्था

बुद्धिजीवी हतप्रभ बस सोच रहे हैं

 

गली गली में हो रही जंग है

दिवालों पर पुता लाल रंग है

भाईचारा, प्रेम, सद्भाव भस्म हो गया

आम आदमी देखकर दंग है

 

उद्दंडता सारी सीमाएं तोड़ रही हैं 

न्याय को अपने पक्ष में मोड़ रही हैं 

जो कह दे, वहीं सत्य है

कायदे, कानून पीछे छोड़ रही है

 

यह एक जुर्म है, जीवन मूल्यों की तबाही है

कैसा समय है, झूठ की वाहवाही है

हम सब है जिम्मेदार इसके लिए

क्योंकि,

यह तो एक बेबंदशाही है /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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