श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक विचारणीय आलेख  “पानीपत…“ श्रृंखला की अंतिम कड़ी।

☆ आलेख # 82 – पानीपत… पटाक्षेप भाग – 12 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

ये कहानी राजा विक्रमादित्य को सुनाने के बाद उनकी पीठ पर लदे बैताल ने हमेशा की तरह इस बार भी एक सवाल पूछा. जानते हुए इस सवाल का जवाब देना अनिवार्य था वरना राजा विक्रमादित्य का सर टुकड़े टुकड़े हो जाता.

सवाल : राजन, त्यागपत्र देनें के बाद भी ये मुख्य प्रबंधक सेवानिवृत्त नहीं हुये बल्कि कुछ समय बाद ही उनकी पोस्टिंग नियंत्रक कार्यालयों में होती रही. एक और बड़ी शाखा में फिर से मुखियागिरी की और बाद में सहायक महाप्रबंधक की पदोन्नति भी पायी. फिर प्रशिक्षण केंद्र में कुशल शाखा संचालन के फ़ार्मुले सिखाते सिखाते सामान्य सेवानिवृत्ति पाई. इसका क्या कारण हो सकता है?

राजा विक्रमादित्य का सर वैसे ही बैताल के बोझ से भारी था, उनके पास इस सवाल का जवाब देने की शक्ति नहीं थी तो उन्होंने चुपचाप सवाल को “रैफर टू ड्राअर” किया और चलते गये.

शायद इस सवाल का जवाब पाठकों के पास हो???

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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