श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “अब तो दादुर बोलिहैं, हमै पूछिहै कौन?…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 160 ☆

अब तो दादुर बोलिहैं, हमै पूछिहै कौन?

भीड़ का हिस्सा बनने की कला सबको नहीं आती, भेड़चाल में शामिल होने के लिए बिना दिमाग़ का होना बहुत जरूरी होता है। इसे पहली शर्त माने तो भी सही होगा। इस समय प्रकृति सावनी रंग से सराबोर है।

हरियाली और सावन दोनों ही पूरक हैं। सावन हो और झूला न झूला जाय ऐसा कभी हो सकता है भला ? …. पर झूला तो तभी डल सकता है जब हरा- भरा मजबूत वृक्ष हो, जैसे ही ऐसा सुंदर पेड़ दिखता है उसी डाल में बैठ हम उसे काट देते हैं हमेशा से ही हमारे आस- पास ऐसे बहुत से लोग हैं जो हरियाली देख ही नहीं सकते, पर प्रश्न ये उठता है कि इस कहावत का क्या होगा ? …. कि सावन के अंधे को हरियाली ही दिखती है।

एक बहुत पुरानी कहानी है – एक राजा बीमार हो गए बहुत इलाज़ हुआ पर वे ठीक ही नहीं हो रहे थे तो हिमालय से महात्मा जी को बुलाया गया उन्होंने राजा को देखते ही कहा आपके राज्य में हरियाली की कमी है, आप अपने चारों ओर वृक्ष लगवाइए और जब वे हरे – भरे होगें तो उससे वायु शुद्ध मिलेगी जिससे आप ठीक हो जायेंगे। मंत्री बहुत बुद्धिमान था उसने कहा बाबा इसमें तो बहुत दिन लगेंगे तब तक के लिए कोई और उपाय बता दें जिससे महाराज जल्दी ठीक हो जाएँ।

वैसे तो जल्दी का काम शैतान का होता है किंतु यहाँ गुरु जी अनुभवी थे सो उन्होंने कहा एक उपाय है, महाराज जो कुछ भी देखें वो हरा होना चाहिए। अब पूरे शहर में घोषणा कर दी गयी कि सभी लोग हरे वस्त्र ही पहनें, पूरा महल व राज्य हरे रंग से रंगवा दिया गया।

कुछ दिनों बाद राजा से मिलने एक संत आये उन्होंने भगवा वस्त्र पहने हुए थे, उनसे मंत्री ने कहा आपको हरा वस्त्र पहनना होगा तभी महाराज से मिल सकेंगे, पूरा कारण भी समझाया । संत ने मंत्री से कहा मुझे महाराज से मिलवाओ तो सही, उनको कक्ष में ले जाया गया तो उन्होंने पहला ही प्रश्न राजा से किया कि आप ने पूरे राज्य को हरा कर दिया आप को अपने चारों ओर जैसा देखना है वैसा अपनी दृष्टि को करना होगा, संत ने मंत्री से हरे रंग का चश्मा मँगवाया और महाराज को दिया महाराज को अब चारो ओर हरा ही हरा दिखने लगा ।

तब सबको समझ में आ गया कि आस -पास का परिवेश बदलने से अच्छा है अपनी दृष्टि को बदलो जिससे सब कुछ बदल जाता है।

अब तो सब खुश सबको फिर से आजादी मिल गयी मनमानी रगों के प्रयोग की।ये तो हुई रंगों की बात, पर हम तो हरियाली के ही गुण ढूंढ रहे हैं हरियाली हो तो वर्षा हो, पर्यावरण में संतुलन रहे,भूमि का क्षरण न हो, शाकाहारी जीवों को भरपूर भोजन मिले पर यही तो विवाद खड़ा हो जाता है कि यदि सब कुछ व्यवस्थित हो गया तो ये वैज्ञानिक क्या करेंगे ?कैसे ग्रीन हाउस प्रभाव पर बड़ी- बड़ी संगोष्ठियाँ होगी, कैसे वृक्षारोपण का कार्यक्रम होगा और तो और करोड़ों का बजट कैसे पास होगा? हरियाली अगर फैल गयी तो पर्यावरण का क्या होगा, 5 जून को हम कौन सा दिवस मनायेंगे? हरियाली के आते ही समस्त समस्त समस्याएँ निपट जाएँगी, महाराज का काम तो हरे चश्मे से चल गया परन्तु हमें तो बिना हरियाली न झूले का आनन्द आएगा न ही वर्षा का न ही नदियों में उफान आएगा न ही सागर भरेगा।

हमारे त्योहारों ने सदा ही प्रकृति से हमें जोड़ा है, हरियाली अमावस्या, हरियाली तीज इत्यादि। अब तो हरियाली फैलाएँगे यही प्रण लेते हैं तभी इन सारे दिवस और पूजन की सार्थकता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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