डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘योगासन और स्वास्थ्य’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 201 ☆

☆ व्यंग्य ☆ ‘योगासन और स्वास्थ्य’

भाइयो, आज आपसे योगासनों से स्वास्थ्य को होने वाले लाभों पर चर्चा करूँगा। कुछ लोग मुझसे पूछेंगे कि मैं स्वास्थ्य पर किस अधिकार से बोलता हूँ और मैं हमेशा की तरह दोहराता हूँ कि मैं स्वास्थ्य-चर्चा का अधिकारी इसलिए हूँ क्योंकि मैं बचपन से ही अनेक रोगों से ग्रस्त हूँ। ‘पुराना रोगी आधा डॉक्टर’ की उक्ति पर चलते हुए मैं आपको स्वास्थ्य संबंधी उपदेश दूँगा और आप पूरे मनोयोग से मेरी बात सुनेंगे, ऐसी आशा करता हूँ।

रीढ़ की लचक का महत्व- योगासनों में रीढ़ की लचक को बहुत महत्व दिया जाता है। जिसकी रीढ़ जितनी अधिक लचकदार होती है उसका स्वास्थ्य उतना ही बढ़िया होता है और उसकी आयु उतनी ही अधिक लंबी होती है। इसीलिए समझदार लोग अपनी रीढ़ को इतना लचकदार बना लेते हैं कि मौके के हिसाब से जिधर झुकना होता है, झुक जाते हैं। कई लोगों के लिए कहा जाता है कि उनके रीढ़ नहीं होती। यह सही नहीं है। वस्तुतः उनके रीढ़ होती तो है, लेकिन वे अभ्यास से उसे इतनी लचकदार बना लेते हैं कि वह न होने का भ्रम पैदा करने लगती है।

रीढ़ को लचकदार रखने वाला आदमी हमेशा सुखी, स्वस्थ और संपन्न रहता है। संसार की कोई बाधा उसके आड़े नहीं आती क्योंकि वह अपनी रीढ़ लचका कर हर बाधा में से निकल जाता है। ज़िन्दगी में दिक्कत उन्हीं को आती है जो अपनी रीढ़ को लचकदार नहीं बना पाते।

रीढ़ की लचक के महत्व को बताने के बाद अब आपसे स्वास्थ्य को बढ़ाने वाले कुछ खास खास आसनों की बात करूँगा।

शीर्षासन- शीर्षासन में आदमी का सिर नीचे और पैर ऊपर होते हैं। आज अधिकांश लोग अपने आप यह आसन कर रहे हैं। यह आसन ज़्यादा करने से दिमाग में खून इकट्ठा हो जाता है और चक्कर आने लगते हैं। लेकिन इस आसन से बचने का आपके पास कोई उपाय नहीं है।

कुक्कुटासन- इस आसन में आदमी को मुर्गा बनना पड़ता है। यह आसन भी आज आदमी को शीर्षासन की तरह चाहे-अनचाहे करना ही पड़ता है। हर सीनियर अपने जूनियर को यह आसन करने के लिए विवश करता है।

जो साधक इस आसन को कर सकता है उसका सीनियर उससे हमेशा खुश रहता है। जो नहीं कर पाते उनका स्वास्थ्य सदैव खतरे में रहता है।

मकरासन- मकर का अर्थ होता है मगरमच्छ। यह आसन समझदार लोग करते हैं। इस आसन में समय-समय पर झूठे आँसू बहाने पड़ते हैं, इसीलिए इस आसन को सब लोग साध नहीं पाते। लेकिन जो साध लेते हैं वे जीवन में सुख और स्वास्थ्य को प्राप्त करते हैं।

नौकासन- इस आसन में साधक नौका के समान अपनी स्थिति बना लेता है। नौका का स्वभाव होता है कि जिधर पानी का वेग होता है उसी दिशा में वह बहती है। समझदार साधक अपने को नौका के समान बनाकर छोड़ देता है जिस तरफ भी समय उसे ढकेले वह उसी तरफ चला जाता है, प्रतिरोध नहीं करता।

कुक्कुटासन के समान नौकासन भी सभी विपदाओं को हरने वाला और सुख-स्वास्थ्य में वृद्धि करने वाला है। रोग उन्हीं को सताते हैं जो समय के प्रवाह को काटते हैं, नौकावत रहने वालों को कोई रोग नहीं सताते।

वृश्चिकासन- वृश्चिक का अर्थ बिच्छू होता है। यह आसन बड़े और शक्ति-संपन्न लोगों के द्वारा साधा जाता है। वे हमेशा अपने से छोटे लोगों को डंक मारते रहते हैं। यह आसन दफ्तर में अफसर लोग खूब साधते हैं। कई बार बराबरी के लोग भी एक दूसरे को डंक मारने के लिए इस आसन को सिद्ध करते हैं।

वकासन- वक का अर्थ बगुला होता है। आप जानते हैं कि बगुला एक पैर उठाकर पानी में ध्यान की मुद्रा बना कर खड़ा हो जाता है और फिर मछलियों को पकड़ता है। यह आसन भी चतुर लोगों के द्वारा लगाया जाता है। वे साधु की मुद्रा बनाकर रहते हैं और शिकार को धोखे में डालकर हड़पते रहते हैं। शिकार को उदरस्थ करने के बाद वे पुनः साधु की मुद्रा धारण कर लेते हैं।

शवासन- यह आसन अत्यंत महत्वपूर्ण और स्वास्थ्यदायक है। शवासन का अर्थ है मुर्दे की मानिंद पड़े रहना। सब चीज़ों से तटस्थ रहो, जो होता है होने दो। जैसे शव की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती वैसे ही सब तरफ से अपने को समेटकर कछुए की भाँति रहो। अपने को पूरी तरह संवेदनहीन बनाने का अभ्यास करो।

जो लोग शवासन को सिद्ध कर लेते हैं वे सब कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। जब अपने को शववत बना लिया तब फिर कष्ट किस बात का? यह आसन सुख और स्वास्थ्य की कुंजी है। समझदार लोग इसी आसन को सिद्ध करते हैं।

सूर्य नमस्कार- यह आसन आज के युग में बहुत महत्वपूर्ण है। इस आसन में चढ़ते सूरज को नमस्कार किया जाता है। योगासनों की पुस्तक में स्वयं परमहंस सत्यानन्द सरस्वती कहते हैं, ‘प्रत्येक साधक को प्रतिदिन उगते हुए सूर्य को नमस्कार करना चाहिए।’ वे यह भी कहते हैं कि इन अभ्यासों को करते समय आँखों को खुला या बन्द रख सकते हैं।

इस आसन में चढ़ते सूरज को पहले खड़े होकर नमस्कार किया जाता है, फिर दंडवत लेट कर और उसके बाद पुनः खड़े होकर।

यह आसन सुख और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेजोड़ है। समझदार साधक इस आसन से बहुत लाभ उठाते हैं। कुछ नासमझ साधक ढलते सूरज को नमस्कार करने लगते हैं।

इस आसन के साथ कुछ मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है। साधक चढ़ते सूर्य को नमस्कार करने के साथ उसकी प्रशस्ति में मंत्रों का उच्चार भी करता रहता है।

अन्त में – तो भाइयो, मैंने आज आपसे योगासनों के लाभों पर चर्चा की। यदि आप इन्हें सिद्ध कर सकें तो आप निश्चय ही सुख और समृद्धि को प्राप्त होंगे।

इन आसनों के संबंध में एक सावधानी ज़रूर रखें, इन्हें धीरे-धीरे ही सिद्ध करें, हड़बड़ी न करें। जो लोग इनके लाभों को प्राप्त करने के लिए जल्दबाजी करते हैं वे लाभ के स्थान पर हानि उठाते हैं। इसीलिए धीरज से काम लें, आप ज़रूर कामयाबी प्राप्त करेंगे।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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