सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 30 ☆

☆ भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर

हाल ही वर्ष २०११ के लिये क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रेंकिंग की घोषणा की गई है.क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रेंकिंग शैक्षणिक शोध,नवाचार,  छात्र अध्यापक अनुपात, क्वालिटी एजूकेशन, शैक्षिक सुविधायें आदि विभिन्न मापदण्डो के आधार पर प्रतिवर्ष दुनिया की श्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थाओ की वरीयता सूची जारी करता है. देश के ख्याति लब्ध संस्थान आई आई एम या आई आई टी का भी  इस सूची में चयन न हो पाना हमारी शैक्षिक गुणवत्ता पर सवालिया निशान बनाता है, शायद यही कारण है कि इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति सहित अनेक विद्वानो ने  भारत के शैक्षिक वातावरण, छात्रो के चयन की गुणवत्ता  आदि पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं . दरअसल पिछले दशको में शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति से अधिक धन प्राप्ति के लिये बड़े पैकेज पर कैंपस सेलेक्शन हो चला है, इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हुई है. ऐसे समय में देश की एक मात्र विज्ञान को समर्पित संस्था भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलूर (आईआईएससी) का विश्वस्तरीय भारतीय विज्ञान शिक्षण संस्थानो में नाम होना देश के लिये गौरव का विषय है.

भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना २७ मई सन् १९०९ मे स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से महान उद्योगपति जमशेदजी नुसरवानजी टाटा के दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप हुई। सन १८९८ मे संस्थान की रूपरेखा व निर्माण के लिये एक तात्कालिक समिति बनायी गयी थी। नोबेल पुरस्कार  विजेता सर विलियम राम्से ने इस संस्थान की स्थापना हेतु बंगलोर का नाम सुझाया और मॉरीस ट्रॅवर्स इसके पहले निदेशक बने।1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना के साथ, संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय के रूप में अपने वर्तमान स्वरूप में सक्रिय है.

विज्ञान शिक्षा में दक्ष संस्थान के अब तक के  निदेशकों की सूची में ये महान नाम हैं मॉरीस ट्रेवर्स, FRS, वर्ष 1909-1914 , सर ए जी बॉर्न, FRS, सन् 1915-1921, सर एम ओ फोरस्टर, FRS, 1922-1933,  सर सी.वी. रमन, FRS, वर्ष 1933-1937, सर जे.सी. घोष, [6] 1939-1948, एम एस ठेकर, 1949-1955 , एस भगवन्तम्, 1957-1962,  सतीश धवन, 1962-1981,  डी के बनर्जी, 1971-1972,  एस रामशेषन , [7] 1981-1984,    सी एन आर  राव, FRS, 1984-1994, जी पद्मनाभन, 1994-1998, जी मेहता, 1998-2005,      वर्तमान में वर्ष २००५ से पी. बलराम संस्थान के निदेशक हैं.

होमी भाभा, सतीश धवन, जी. एन. रामचंद्रन,सर सी. वी. रमण,राजा रामन्ना,सी. एन. आर. राव,विक्रम साराभाई, जमशेदजी टाटा, मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जेसे महान विज्ञान से जुड़े व्यक्तित्व इस संस्थान के विद्यार्थी रह चुके हैं या किसी न किसी रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान से जुड़े रहे हैं. आज भी जब नये छात्र यहां अध्ययन के लिये आते हैं तो होस्टल के जिन कमरो में कभी ये महान वैज्ञानिक रहे थे उन कमरो में रहने के लिये छात्रो में एक अलग ही उत्साह होता है.

संस्थान के वेब पते इस तरह हैं. http://www.iisc.ernet.in , http://www.iisc.ernet.in/ug , http://www.iisc.ernet.in/scouncil , http://admissions.iisc.ernet.in/

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साईंस बेंगलोर का विकिपीडिया के अनुसार विश्व स्तर पर रैंकिग आफ वर्ल्ड यूनिवर्सिटिज में प्रथम १०० में स्थान है,विज्ञान शिक्षा प्राप्त करने हेतु यह देश का एक मात्र इंडियन इंस्टीट्यूट है, जिसे डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त है.अब तक संस्थान से स्नातक या शोध के एम.एससी.  (Engg), एम.टेक., एम.बी.ए. व पीएच.डी.  पाठ्यक्रम ही संचालित थे पर इसी वर्ष २०११ जुलाई से अपने पहले बैच के प्रवेश के १००वें वर्ष से संस्थान ने विश्व स्तरीय ४ वर्षीय बी.एस. पाठ्यक्रम प्रारंभ भी किया है, जिसमें अधिकतम कुल ११० सीटें  हैं. प्रवेश के लिये किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना को प्रमुख मापदण्ड बनाया गया है, कुछ सीटें आई आई टी जे ई ई, तथा ए आई ई ई ई तथा ए आई पी एम टी के उच्च स्थान प्राप्त बच्चो को भी दी जाती हैं .हायर सेकेण्डरी की शिक्षा के बाद कालेज एजूकेशन में  जो छात्र केवल  नम्बर मात्र लाने के उद्देश्य से पढ़ाई नही करना चाहते  , और न ही फार्मूले रटते हैं वरन्  जो पढ़ने को इंजाय करते हैं अर्थात जिनमें विज्ञान के प्रति नैसर्गिक अनुराग है, जो जीवन यापन के लिये केवल धनार्जन के लिये नौकरी ही नही करना चाहते बल्कि कुछ नया सीखकर कुछ नया  करना चाहते हैं, समाज को कुछ देना चाहते हैं, उनके लिये ज्ञानार्जन का यह भारत में सर्वश्रेष्ठ विज्ञान शिक्षण संस्थान है.

संस्थान का  कैम्पस 400 एकड़ हरे भरे १०० से अधिक प्रजातियो के सघन वृक्षो से सजी जमीन पर फैला हुआ है,मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वोडयार चतुर्थ के समय में इस संस्थान का निर्माण किया गया था.  आईआईएससी परिसर उत्तर बंगलौर में स्थित है जो शहर के मुख्य रेलवे स्टेशन से ६ कि मी,  बस स्टैंड से 4 किलोमीटर की दूरी पर है. यशवंतपुर निकटतम रेल्वे हेड है जो लगभग २.५ कि मी पर है. संस्थान बहुत पुराना है और टाटा इंस्टीट्यूट के नाम से आटो रिक्शा चालक सहज ही इसे पहचानते हैं.परिसर में 40 से अधिक विज्ञान शिक्षण के विभागो के भवन हैं, छह कैंटीन (कैफेटेरिया), एक जिमखाना (व्यायामशाला और खेल परिसर),  फुटबॉल और  क्रिकेट मैदान, नौ पुरुषों के और पाँच महिलाओं के हॉस्टल हैं, एक हवाई पट्टी, “जेआरडी टाटा मेमोरियल लाइब्रेरी,एक भव्य कंप्यूटर केंद्र भी है जो  भारत के सबसे तेज सुपर कंप्यूटर्स में  है. नेनो टैक्नालाजी की नई प्रयोगशाला विश्वस्तरीय आकर्षण है. खरीदारी केन्द्रों,  मसाज पार्लर, ब्यूटी पार्लर और  स्टाफ के सदस्यों के लिए निवास भी परिसर में है. यह पूर्णतः आवासीय शिक्षण संस्थान है. मुख्य भवन के बाहर  संस्थापक जे.एन. टाटा की स्मृति में उनकी आदमकद मूर्ति स्थापित की गई है.

डीआरडीओ, इसरो, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, वैमानिकी विकास एजेंसी, नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज, सीएसआईआर, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (भारत सरकार) इत्यादि वैज्ञानिक संगठनो से  आईआईएससी अनेक परियोजनाओ में निरंतर सहयोग कर रहा है.कार्पोरेट जगत के साथ तादात्म्य बनाने के लिये भी संस्थान सक्रिय है और अनेक निजी क्षेत्र की कंपनियां कैम्पस सेलेक्शन तथा प्रोडक्ट रिसर्च में सहयोग हेतु यहां पहुंचती हैं.  विदेशी शिक्षण संस्थानो से भी आईआईएससी अनेक एम ओ यू हस्ताक्षरित कर रहा है.

संस्थान के एक शतक की उपलब्धियो की कहानी बहुत लंबी है, देश विदेश में विज्ञान शिक्षण व शोध से जुड़े अनेकानेक महान वैज्ञानिक भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलूर की ही देन हैं. आने वाले समय में जब नई पीढ़ी के युवा वैज्ञानिक इस वर्ष प्रारंभ किये गये ४ वर्षीय बी एस पाठ्यक्रम को पूरा कर इस संस्थान से निकलेंगे तो निश्चित है कि उनके माध्यम से यह संस्थान देश में अनुसंधान और नवाचार की बढ़ती जरूरतो को पूरा करने में एक नई इबारत लिखेगा.

 

© अनुभा श्रीवास्तव्

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