श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – “तूफान और तूफान…”)

☆ व्यंग्य  — “तूफान और तूफान…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

मौसम विभाग ने चेतावनी दी, कि तेज हवाओं के साथ चक्रवती तूफान आने वाला है अतः सुरक्षित रहें और यथासंभव बाहर न निकलें। 

हम डर गए, हमने श्रीमती जी के कंधे में हाथ रखकर कहा – प्रिये ! निर्भय हो जाओ… 

श्रीमती ने हाथ में हाथ डालकर हमें समझाया – ‘प्लीज निर्भय हो जाओ ‘। डरने की कोई बात नहीं है तुम्हारी घरवाली तूफान की ऐसी – तैसी कर देगी वो अपने आप में बड़ा तूफान है। श्रीमती जी ने बताया कि इस संवत का राजा सूर्य है और मंत्री शनि… दोनों में पिता पुत्र का संबंध है लेकिन दोनों परस्पर विपरीत स्वाभाव के हैं दोनों में आपस में बनती नहीं है इसलिए बीच-बीच में मंत्री गण राजा को तूफान के बहाने तंग करते हैं दिल्ली तरफ एक प्रकार का तूफान खड़ा किया और कर्नाटक में दूसरे टाइप का तूफान खड़ा करवा दिया। 

तूफान आया, खूब तेज आया, दोनों जगह आया। हम बजरंगबली का चालीसा के साथ मन में ये गाना भी गाते रहे… 

‘तूफान को आना है, 

आकर चले जाना है, 

बादल है ये कुछ पल का, 

छाकर ढल जाना है “

तेज तूफान आया, पास के कई पेड़ गिर गए, टीन टप्पर उड़ गए, धूल भरी आंधी चली। श्रीमती को छूकर देखा वो सलामत थी.. उड़ी नहीं ।पिछले बार के तूफान में उड़ गईं थीं फिर पड़ोसी के यहां मिली थी, हालांकि इस बार के तूफान में कई महिलाएं तूफान में उड़ गईं थीं और पड़ोसियों के घर में आराम करती मिलीं। श्रीमती जी तूफान की तरह डटी रहीं और हमें ‘निर्भय हो जाओ “का पाठ पढ़ातीं रहीं। 

जब तूफान गुजर गया, शान्ति हो गई तो किचन और घर धूल धूसरित हो गया, सब जगह धूल ही धूल…

थोड़ी देर बाद रसोई में खटर पटर और बर्तनों की उठापटक से हम सतर्क हो गए…. श्रीमती की शुरू से काम करने की आदत रही नहीं। तूफान तो आकर चला गया पर घरवाली का भयंकर तूफान आने की चेतावनी बरतन पटकने से मिल रही है। स्थिति को भांपते हुए हम तुरंत किचन में गए…. मधुर स्वर में हमने पिक्चर और बाहर डिनर का प्रोग्राम बना लिया। थोड़ी देर में श्रीमती तैयार होने लगी, झुमके पहने, हीरे का हार पहना, दस बार साड़ी पहन पहनकर देखीं फिर दस बार बदलीं। तैयार होने में इतनी अदाएं फेंकीं कि हम और आईना शरमाने लगे फिर इधर पौरुष पिघल गया। तूफान शान्त हो गया। वह फिर रसोई की तरफ पैर पटकती चली गई। थोड़ी देर बाद आईने के सामने आकर फिर इतराने लगी, कहने लगी – तुम जैसे पिलपिले मर्दों के कारण तूफान आता है और यूं ही चला जाता है। मौसम विभाग भले डरावनी चेतावनी देता है कि भयानक तूफान आने वाला है पर आजकल का तूफान आता है तो फुस्स हो जाता है, जिंदगी साली तूफान बन गई है जिंदगी हमेशा खामोश सवालों से भरी पड़ी है जीवन जीना बड़ा नाजुक अहसास है। 

हमने आंधी स्टाइल में कहा – चलो भागवान ! देर हो रही है पिक्चर की टिकट नहीं मिलेगी। वहां से आवाज आई, बस जरा जोरदार सैंडिल पहन लूं। श्रीमती जी सजने के चक्कर में खामोंखां देर कर रही थी, घर के बाहर आटो आकर रुक गया, एक तूफान और आ गया, फूफा जी मय सामान के उतर रहे थे। हमें लगा हमारी तकदीर में तूफान ही तूफान लिखे हैं। आज दो तीन प्रकार के तूफान झेल चुके हैं थोड़ी देर बाद एक – दो तूफान और आने वाले हैं हमने अपने आप को समझाया “निर्भय हो जाओ”…. 

श्रीमती अपने फूफा की तो खूब बढ़ाई करती है पर हमारे फूफा की बहुत बुराई करती है कहती है तुम्हारा फूफा बदमाश, अनमना, चिड़चिड़ा, तुनकमिजाज है तीखी बयानबाजी करके तूफान खड़ा कर देता है, छोटी छोटी बात में मुंह फुलाके बहादुर शाह जफर बन जाता है। बिन बुलाए मेहमान बनके हमारे पिक्चर और डिनर के प्रोग्राम को तहस नहस कर दिया। 

तूफान का भय बढ़ता जा रहा है श्रीमती जी का पूरी तरह से बाहर के डिनर का मूड बन गया था और अचानक फूफा के आ जाने से प्रोग्राम की ऐसी-तैसी हो गई, ऐसे में श्रीमती जी के अंदर भीषण तूफान उठ चुका होगा, और किचन में अटेक करेगा, किचन के बर्तनों पर हमें दया आ रही है, नये कांच के डिनर सेट की चिंता ज्यादा खाये जा रही है। फूफा गुस्सेल स्वाभाव के हैं चेहरे के हावभाव से लग रहा है कि उनके अंदर भी भूख का तूफान उमड़ घुमड़ रहा है…

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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