श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “दरिया ए इश्क़ में…”)

? ग़ज़ल # 79 – “दरिया ए इश्क़ में…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

चार दिन की ज़िंदगी में दो दिन प्यार के,

मुसलसल इम्तहान चल रहे जीत हार के।

नाव मेरी है भंवर में  ना कोई नाख़ुदा,

है भरोसा पार होगी ये बिन पतवार के।

एक झलक पर मर मिटा दिवाना आशिक़,

हैं कई परवाने उस महताब ए रूखसार के।

कड़कड़ाती ठंड में उनकी मुहब्बत का असर,

कंबल सी मुलायम गर्मी देते पहलू यार के।

दरिया ए इश्क़ में हम गहरे उतरते चले गए,

अब भँवर में है सफ़ीना जज़्बाती अदाकार के।

इक दिया देहरी पे अब भी जल रहा उम्मीद का,

दिन ज़रूर बदलेंगे बारिश में खस ओ खार के।

आतिश अब तुम पर ख़ुदा तक का साया नहीं,

ज़िंदगी जी नहीं जाती बिना किसी दिलदार के।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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