श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय आलेख–चिंतन – “महत्व श्रम”।)
☆ आलेख # 165 ☆ चिंतन – “महत्व श्रम” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
स्त्री -पुरुषों के पास समय बिताने के लिए कोई काम न हो तो वे पतित हो जाते हैं। हमे काम मतलब श्रम से जी नहीं चुराना चाहिए, अन्यथा हम ऐसी वस्तु बन जायेंगे जिसका प्रकृति के लिए कोई उपयोग नहीं होगा। ”फल हीन अंजीर” की कथा याद करो जिसमे कहा गया था कि- बिना काम स्त्री-पुरुष झगड़ालू , असंतुष्ट, अधीर और चिड़चिड़े हो जाते हैं, चाहे ऊपर से वे कितने ही मीठे और मिलनसार ही क्यों न दिखाई दें। जो यह शिकायत करे कि ”मेरे पास कोई काम नहीं है” या ”मुझसे काम नहीं बनता” उसे झगड़ालू और शिकायत से भरा हुआ समझना चाहिए, उसके चेहरे पर थकावट सी छाई हुई होगी, … उसका चेहरा देखने में भला न प्रतीत हो रहा होगा।
कई लोग ऐसा सोचते हैं कि उनके पास काम नहीं है तो वे भाग्यवान हाँ या उनसे काम नहीं बनता तो वे खुशहाल है यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि काम का न होना सौभाग्य या मनचाही वस्तु है । काम न करना एक तरह से प्रक्रति के विरुद्ध -विद्रोह है, मनुष्यता या पौरुष का अपमान है। यह पुर्णतः अप्राकृतिक और लोकिक नियमो के विपरीत है … अपनी रोजी-रोटी के लिए थोड़ी कमाई कर के अपने अन्दर अहं पाल लेना … बाल-बच्चे पैदा कर के घर चला लेना क्या इतना ही पर्याप्त है इस जीवन के लिए … सोचो तो जरा … अरे भाई कुछ काम करो। कुछ काम करो … जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ कुछ व्यर्थ न हो …। तो कुछ तो ऐसा ‘काम’ कर लो जिससे पूरे विश्व के उत्थान का रास्ता प्रशस्त हो… जिस दिन इस धरती पर श्रम और काम की कीमत गिर जायेगी उस दिन यहाँ की सारी चहल-पहल और खुशहाली मिटटी में मिल जायेगी … अतः हमें अपने काम और श्रम के द्वारा इस संसार को बहुत सुन्दर बनाना है काम।
काम और श्रम ही वास्तव में असली देवता है ।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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