श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे – कनाडा यात्रा वृतांत। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 38 – मनोज के दोहे  – कनाडा यात्रा वृतांत

देश कनाडा में सभी, सभ्य सुसंस्कृत लोग ।

सद्गुण से परिपूर्ण हैं, करें सभी सहयोग।।

 

हाय हलो करते सभी, जो भी मिलता राह।

अधरों में मुस्कान ले, मन में दिखती चाह।।

 

कर्मनिष्ठ व्यवहार से, अनुशासित सब लोग।

नियम और कानून सँग, परिपालन का योग।।

 

झाँकी पर्यावरण की, मिलकर समझा देख।

संरक्षित कैसे करें, समझी श्रम की रेख।।

 

फूलों की बिखरी छटा, गुलदस्तों में फूल।

घर बाहर पौधे लगे, पहने खड़े  दुकूल।।

 

हरियाली बिखरी पड़ी, कहीं न उड़ती धूल।

दिखी प्रकृति उपहार में, मौसम के अनुकूल।।

 

मखमल सी दूबा बिछी, हरित क्रांति चहुँ ओर।

शीतल गंध बिखेरती, नित होती शुभ भोर।।

 

प्राण वायु बहती सदा, बड़ा अनोखा देश।

जल वृक्षों की संपदा, आच्छादित परिवेश।।

 

प्रबंधन में सब निपुण, जनता सँग सरकार।

आपस में सहयोग से, आया बड़ा निखार।।

 

साफ स्वच्छ सड़कें यहाँ, दिखते दिल के साफ।

भूल-चूक यदि हो गई, कर देते सब माफ।।

 

तोड़ा यदि कानून जब, जाना होगा जेल।

कहीं नहीं फरियाद तब, कहीं न मिलती बेल।।

 

शासन के अनुकूल घर, रखते हैं सब लोग।

फूलों की क्यारी लगा, फल सब्जी उपभोग।।

 

रखें प्रकृति से निकटता,जागरूक सब लोग।

बाग-बगीचे पार्क का, करें सभी उपयोग।।

 

सड़कें अरु फुटपाथ में, नियम कायदा जोर।

दुर्घटना से सब बचें, शासन का यह शोर।।

 

भव्य-दुकानों में यहाँ, मिलता सभी समान।

ग्राहक अपनी चाह का,रखता है बस ध्यान।।

 

दिखे शराफत है यहाँ, हर दिल में ईमान ।

ग्राहक खुद बिल को बना, कर देते भुगतान।।

 

वाहन में पैट्रोल सब, भरते अपने हाथ।

नहीं कर्मचारी दिखें, चुक जाता बिल साथ।।

 

बाहर पड़ा समान पर, नजर न आए चोर।

लूट-पाट, हिंसा नहीं, राम राज्य की भोर ।।

 

फूलों सा सुंदर लगा, बर्फीला परिवेश।

न्याग्रा वाटर फाल से, बहुचर्चित यह देश।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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