श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना  “लाइम लाइट की हाइट …”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 98 ☆

लाइम लाइट की हाइट … ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’  

लाइम और लाइट दोनों की ही शॉर्टेज चल रही है। इसके फेर में पड़ा हुआ व्यक्ति हमेशा कुछ न कुछ अलग करने के चक्कर में घनचक्कर बना हुआ दिखाई देता है। अपनी अलग पहचान बनाना कौन नहीं चाहता, बस यहीं से असली खेल शुरू हो जाता है। समाज के बने हुए नियमों को ताक पर रखकर,एक दूसरे पर दोषारोपण करते हुए व्यक्ति आगे के रास्ते पर चल देता है।

दो सफल सहेलियाँ एक अवसर पर एक दूसरे से मिलने के लिए आतुर दिखीं लेकिन दोनों के भावों में अंतर था। पहली सहेली नेह भाव को लेकर मिल रही थी तो दूसरी अपने सफल होने की चादर को लपेटे हुए मंद- मंद मुस्कुराते हुए केवल औपचारिक भेंट हेतु आयी थी। दरसल दोनों ही इस प्रतिक्रिया से निराश हुईं। पहली को लगा कि उसने व्यर्थ ही यहाँ आकर समय नष्ट किया क्योंकि यहाँ तो एक संस्था की पदाधिकारी आयी है तो वहीं दूसरी ने सोचा ये तो अभी तक उन्हीं यादों को सीने से लगाकर आयी है। मैं तो इसके पद से जुड़कर अपना गौरव और बढ़ाना चाह रही थी किन्तु ये बेचारी बहनजी टाइप ही रह गयी। ऐसी सफलता की क्या कदर करूँ जो लाइमलाइट से दूर भाग रही हो।

जो हम सोचते हैं; वही बनते जाते हैं क्योंकि कल्पना से ही विचार बनते हैं और वही अनायास  हमारे कार्यों द्वारा प्रदर्शित होते हैं। इसीलिए अच्छे लोगों का सानिध्य, अच्छे संस्कार, अच्छी पुस्तकें सदैव पढ़ें।

एक बहुत पुरानी कहानी जो लगभग सभी ने पढ़ी या सुनी होगी। दो तोते एक साथ जन्म लेते हैं किंतु उनकी परवरिश अलग- अलग माहौल में  होती है। एक महात्मा जी के आश्रम में लगे पेड़ पर पलता है तो दूसरा एक ऐसे पेड़ पर रहता है जिसके आश्रय तले चोर बैठ कर आपस में योजना बनाते व चोरी के सामान का हिस्सा बाँट करते हैं।

जाहिर है वातावरण के अनरूप उनके स्वभाव भी निर्मित  हुए जहाँ आश्रम का तोता मन्त्र जाप करता व राहगीरों को राह बताता वहीं  दूसरा तोता राहगीरों को अपशब्द कहता व उनको गलत मार्ग बताता जिससे वे रास्ता भटक जाते।

ये सब घटनाक्रम दर्शाते हैं कि यदि अंतरात्मा को शुद्ध रखना है तो सत्संगत के महत्व को पहचाने। अब पुनः लाइम लाइट की ओर  आते हैं, और एक प्रश्न सभी के लिए है कि क्या रिश्तों और संबंधों में इसकी उपस्थित इतनी जरूरी हो जाती है कि हम सब कुछ खोकर भी बस सफलता की नयी परिभाषा गढ़ने में ही पूरा जीवन जाया करते जा रहे हैं?

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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