श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “लेखा जोखा… ”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 87 ☆ लेखा जोखा… 

मोबाइल पर ही जीवन सिमटता जा रहा। एक बार जो रील देखना शुरू कर दो तो कैसे एक से दो धण्टे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता। इतने मजे से उसकी सेटिंग रहती है कि जिसको जो पसंद हो वही वीडियो लगातार मिलते जाते हैं। बीच- बीच में ज्ञानवर्द्धक बातें, किचन टिप्स, ज्योतिषी, वास्तु शास्त्र, खाने की रेसिपी, नेटवर्क मार्केटिंग से सम्बंधित ज्ञानार्जन भी होता जाता है। मन भी बड़ा चंचल ठहरा, बदल-बदल कर देखने की आदत ने इस लत को जुनून तक पहुँचा दिया है।

जब ऐसा लगता कि बहुत समय व्यर्थ कर दिया तो झट से एफ एम पर गाना लगाकर काम काज में जुट जाना और स्वयं को सुव्यवस्थित करते हुए आधे घण्टे में सारे कार्य निपटाकर पुनः तकनीकी से जुड़ जाना। अब तो पड़ोसियों की कोई जरूरत रही नहीं है, उनका सारा व्योरा स्टेटस से मिल जाता। खुद को अपडेट रखने हेतु ऐसा करना पड़ता। देश विदेश की सारी जानकारी इन्हीं रीलों के द्वारा छोटे- छोटे रूपों मिलती है। अब देश के बजट को भी समझने हेतु ऐसी ही रीलों का इंतजार है। दरसल कम में ज्यादा समझने की आदत दिनों दिन अखबार से दूर करती जा रही है। मोबाइल पर पेपर, पत्रिका सभी कुछ है। अलादीन का चिराग जैसा कार्य तो ये करता ही है। सेवा में गूगल महाराज चौबीसों घण्टे हाजिर रहते हैं।

यूट्यूब पर सचित्र बोलते हुए लोगों को देखना, सुनना, समझना कितना आसान हो चुका है। पहले टी वी पर न्यूज सुनने हेतु समय निर्धारित रहता था, अब तो जब चाहो पूरी न्यूज देख सकते हैं।सभी हाइलाइट्स जोर शोर से आकर्षण का केंद्र बनाकर बार- बार सामने आते हैं। चौराहे पर खड़े होकर बहस बाजी करने की लत दूर होकर अब सभी अपनी निगाहें मोबाइल पर टिकाए रहते हैं और पास खड़े व्यक्ति को स्क्रीन दिखाते हुए कॉपी लिंक भेज देते हैं ताकि वो भी वही देख सके जो वे देखते हैं। एक घर में चार लोग रहते हैं और चारों के फेसबुक पर अलग- अलग वीडियो व पोस्ट दिखाई देती हैं। जिसको जो पसंद होता है वो  तकनीकी एक्सपर्ट समझ जाते हैं  और उसी से मिलती हुई पोस्ट भेजना शुरू कर देते हैं।

कल्पना से परे ये तकनीकी युग दिनों दिन तरक्की कर रहा है।हर चीजें चुटकी में हासिल करने की ये आदत न जाने किस ओर ले जा रही है। बदलते वक्त के साथ सब सीखना होगा। अब तो यही लेखा- जोखा बचा था सो वो भी पूरा करना होगा।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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