डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 74 –  दोहे ✍

कुर्सी कुर्सी विराजे, नेता बंदर छाप।

खाना-पीना, उछलना इनके क्रिया कलाप।।

 

आएगा, वह आएगा, राह देखते नित्य ।

कहां न्याय का सिंहासन कहां विक्रमादित्य।।

 

अंधे गूंगे बधिर जो, थामें हाथ कमान ।

फर्क नहीं उनके लिए, मरे राम- रहमान।।

 

मेहनतकश भूखा मरे, अवमूल्यित विद्वान।

हर लठैत ने खोल ली, भैंसों की दुकान।।

 

प्रजातंत्र के पहरुए, पचा गए चौपाल ।

अटकी हो तो दौड़िये, दिल्ली या भोपाल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Kamna

शानदार

डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन अभिव्यक्ति