श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। श्री ओमप्रकाश  जी  के साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  शिक्षाप्रद लघुकथा “सबक ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #2 ☆

 

☆ सबक ☆

 

मैडम ने सोच लिया था कि आज पान मसाला खाने वाले छात्र को रंगे हाथ पकड़ कर सबक सिखा कर रहूंगी. इसलिए जैसे ही छात्र ने खिड़की की ओर मुँह कर के ‘पिच’ किया वैसे ही मैडम ने उसे पकड़ लिया.

“क्यों रे ! पान मसाला खाता है शर्म नहीं आती” कहते हुए मैडम ने उस के कान पकड़ लिए.

छात्र कुछ नहीं बोला.

“बोलता क्यों नहीं है ? कहाँ से सीखा, ये गंदी आदत?” मैडम गुस्से से चीखी.

छात्र डर कर काँप गया. उस के मुंह से निकला “गोपाल सर से !” और उस के हाथ सर की कुर्सी के पास वाली खिड़की की ओर चले गए. जिस पर पान मसाले के निशान पड़े हुए थे.

उन निशानों को देख कर मैडम चौंक उठी. वो छात्र को सबक सिखाने गई थी, खुद ही सबक ले कर चुपचाप चली आ गई.

वे छात्र को क्या जवाब देती ? समझ न सकीं.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments