श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़…..। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 16 – बुंदेली गीत – सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़…..  ☆ 

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

धज्जी खें तो साँप बता रये,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

जी खों देखो हाँक रहो है,

ज्ञान बघारें साँचन में ।

इनखों तो भूगोल रटो है,

झूठी-मूठी बातन में ।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

धरम के पंडा सबई बने हैं,

मंदिर, मस्जिद, गिरजा में।

जी खों देखो राह बता रये,

छोटी-ओटी बातन में।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

बऊ-दद्दा ने पढ़वे भेजो,

बडे़-बडे़ कॉलेजन में ।

बे तो ढपली ले कें गा रये,

उल्टी-टेढ़ी रागन में।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

आजादी बे कैसी चाहत,

कौनऊँ उनसे पूछो भाई।

पढ़वो-लिखवो छोड़कें भैया ,

धूल झोंक रहे आँखन में।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

पढ़वे खें कालेज मिलो है,

रहवे खों कोठा भी दे दये।

पढ़वे में मन लगत है नईयाँ,

जोड़-तोड़ की बातन में ।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

नेता सबरे कहत फिरत हैं,

हम तो जनता के सेवक हैं।

जीत गए तो पाँच बरस तक,

घुमा देत हैं बातन में।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

राजनीति में झूठ-मूठ की ,

खबर छपीं अखबारन में ।

नूरा-कुश्ती रोजइ हो रही,

गली-मुहल्लै आँगन में।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

कोनउ नें कओ सुनरै भैया

तोरो कान है कऊआ ले गओ।

अपनों कान तो देखत नैयाँ,

दौर गये बस बातन में।

सच्चई-मुच्चई लड़वे ठाँढे़,

जरा-जरा सी बातन में ।

धज्जी खें तो साँप बता रये,

जरा-जरा सी बातन में ।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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