प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “’पसीने से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है’”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # काव्य धारा 63 ☆ गजल – ’पसीने से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

बिगड़ते है बहुत से काम सबके जल्दबाजी में

जो करते जल्दबाजी वे सदा जोखिम उठाते है।

हमेषा छल कपट से जिंदगी बरबाद होती है

जो होते मन के मैले, वे दुखी कल देखे जाते है।

बिना कठिनाइयों के जिंदगी नीरस मरूस्थल है

पसीनों से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है।

किसी को कहाँ मालुम कि कल क्या होने वाला है

मगर क्या आज हो सकता समझ के सब बताते है।

जहां बीहड़ पहाड़ी, घाट, जंगल खत्म हो जाते

वहीं से सम सरल सड़कों के सुन्दर दृश्य आते है।

कभी भी वास्तविकतायें सुखद उतनी नहीं होती

कि जितने कल्पना में दृश्य लोगों को लुभाते हैं।

निकलना जूझ लहरों से कला है जिंदगी जीना

जिन्हें इतना नहीं आता उन्हीं को दुख सताते हैं।

वही रोते है रोना, भाग्य का अपने अनेकों से

परिस्थितियों को जो अनुकूल खुद न ढाल पाते है।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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