श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है  एक विचारणीय लघुकथा मजबूरी…!’ )  

☆ संस्मरण # 120 ☆ मजबूरी ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

गाँव में मास्साब ट्रांसफर होकर आए हैं, शहर से। गाँव में ट्रांसफर होने से आदमी चिड़चिड़ा हो जाता है। मास्साब कक्षा में आकर मेज में छड़ी पटकते हैं। छकौड़ी प्रतिदिन देर से आता है, इसलिए दो छड़ी पिछवाड़े और दो छड़ी हथेली पर खाने की उसकी आदत हो गई है। सख्त अध्यापक किसी विद्यार्थी का देरी से आना बर्दाश्त नहीं कर सकता, ऐसे नालायक विद्यार्थियों से उसे चिढ़ होती है। मजबूरी में छकौड़ी छड़ी की चोट से तड़पता रहा, सहता रहा और ईमानदारी से पढ़ता रहा।

एक दिन मास्साब छकौड़ी के घर का पता पूछते पूछते उसके घर पहुंचे और यह जानकर स्तब्ध रह गए कि छकौड़ी के माता-पिता का कोरोना से निधन हो गया था और छकौड़ी अपनी बहन को रोज समय पर स्कूल छोड़ने जाता है और इसी कारण से वह अपने स्कूल पहुँचने में लेट हो जाता है।

अचानक मास्साब की आंखें नम हो गईं, उन्होंने छकौड़ी को गले लगाते हुए कहा- तुम जैसा लायक और होनहार विद्यार्थी पाकर मुझे गर्व है……

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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