श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक  समसामयिक भावप्रवण कविता “# पितृपक्ष #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 47 ☆

☆ # पितृपक्ष # ☆ 

दसवीं कक्षा की एक छात्रा ने

घर आकर कीटनाशक पिया

उसकी तड़प देख मां ने

तत्काल अस्पताल का

रूख किया

डाक्टरों ने अथक परिश्रम से

बच्ची को बचाया

परिवार वालों को

सब कुछ ठीक है

कहकर ढाढस बंधाया

अस्पताल वालों ने

पुलिस को प्रकरण बताया

पुलिस वालों ने

अटैम्प्ट आफ सुसाइड

का चार्ज लगाया

 

लड़की ने होश आने पर

जो स्टेटमेंट दिया

उसका कथन सुन

पुलिस और अस्पताल के

कर्मियों का दिल हर लिया

वो बोली-

इसके जिम्मेदार मेरे

मां-बाप है

इनकी बेटी होना

मेरे लिए अभिशाप है

आज स्कूल की तरफ से

हम सब लड़कियां

वृद्धाश्रम गई थी

फल, मिठाई

कपड़े, भोजन के पॅकट

बांट रही थी

वहां वृद्ध पुरुष-महिलाये

हाथ बढाये खड़ी थी

कतार काफी बड़ी थी

उस कतार में मैंने

अपनी दादी को देखा

लगा जैसे किसी अपने ने

सीने पर खंजर हों फेंका

दादी मुझसे लिपट कर

रो पड़ी

उसकी हालत दिल में

एक घाव कर गयी

सहेलियों के सामने

मै जीते जी मर गई

रोते-रोते घर आई हूँ

पर सुकून नहीं पायी हूँ

बड़ी मुश्किल से जीया है

इसी आत्मग्लानि से

कीटनाशक पिया है

मम्मी-पापा कहते हैं

दादी रिश्तेदार के

घर गई है

दोनों ने मुझसे

यह बात छुपाई है

आप इन पर कार्यवाही कीजिये

इनको कठोर दंड दीजिये  

अब मैं इनके

साथ नहीं रहूंगी

अनाथालय में रहकर

दादी सा कष्ट सहूंगी

 

सर-

बच्चें होकर भी

अनाथ मां-बाप

जब भूखे मरते हैं

तब मरणोपरांत

पितृपक्ष में

हम किस बात का

तर्पण करते हैं ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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