प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  क्रॉति की अमर कहानी।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 39 ☆ क्रॉति की अमर कहानी

(स्वयंप्रभा से साभार)

तुम्हें हम आज भारत की अमर गाथा सुनाते हैं।

वे सन ब्यालीस की बरसात के दिन याद आते हैं।

 महात्मा गाँधी का तो नाम तुमने भी सुना होगा।

किसी से पूंछकर उनके विषय में कुछ गुना होगा।

वे भारत के बड़े नेता थे उनका वह जमाना था।

 उनके गुण से उनको सबने दिल से नेता माना था।

वे अपने घुटने तक ऊँची सी बस धोती पहनते थे।

थी सीधी सच्ची आदत, गाँव में कुटिया में रहते थे।

लाठी ले के चलते थे वे बूढ़े दुबले पतले थे।

मगर अंग्रेजों से लड़ने विचारों में वे तगड़े थे।

हमारे देश में वर्षों से अंग्रेजों का शासन था।

दुखी था देश, जनता त्रस्त थी क्योंकि कुशासन था।

सभी ये चाहते थे देश में अपना ही शासन हो।

 सभी हिलमिल रहें खुश, नये विचारों का प्रकाशन हो ॥

 

इसी से देश में काँग्रेस ने झंडा उठाया था।

सभायें करके, भाषण दे के, लोगों को जगाया था।

 बड़ी ताकत है जनता में कि जब वह जाग जाती है।

तो उसके सामने सेना भी डरती, भाग जाती है।

यही नेताओं का सबका और गाँधी का इरादा था।

अहिंसक क्रांति से भारत की आजादी का वादा था।

सन ब्यालीस, महीना अगस्त था तारीख नौंवी थी। 

तभी बंबई से गाँधी ने दी एक आवाज कौमी थी।

 

 ‘करो या मरो’ नारा था यहाँ भारत की जनता को।

और अंग्रेजों को था अंग्रेजों भारत छोड़ो” और भागो ॥

बस इतनी बात ने सब में जगाई क्राँति की ज्वाला।

 कि जिसने सबको शहरों गाँवों में पागल बना डाला।।

किये गये बंद जेलों में थे गाँधी जी और सब नेता।

 नहीं था कोई भी बाहर जो जनता की खबर लेता।

की अंग्रेजों ने मनमानी सभी को डरवा धमकाकर।

उमड़ता जा रहा था देश में जन – क्रोध का सागर।।

किया लोगों ने जब प्रतिकार तो कई एक गये मारे।

 निठुर अंग्रेजों की गोली से हजारों गये थे संहारे।

 मगर फिर भी निहत्थे न डरे न मौत से हारे।

बहादुर थे वे लाने निकले थे आकाश के तारे।।

 

थे उनमें साथ सब हिन्दू मुसलमाँ, सिख, ईसाई।

ये आजादी हमारे प्रिय शहीदों की है कमाई 

उन्हीं का खून हमको इसकी रक्षा को बुलाता है।

जो भी भारत के वासी हैं, निकट का उनसे नाता है।

बिना नेताओं के भी लोगों ने जो कुछ किया खुद ही।

उसी ने सारे अंग्रेजों की हिम्मत तोड़कर रख दी।

इसी से डर के भारत छोड़कर वे लोग जब भागे।

तो भारत को मिली आजादी सेंतालीस में आगे ॥

 

यही जनक्रांति ब्यालिस की अमर जनक्रांति कहलाती।

हमारे एकता – बल – प्रेम की जो है बड़ी थाती।

हमारे राष्ट्र भारत प्रेम की अनुपम कहानी है।

 जो हमको आने वाली पीढ़ियों को भी सुनानी है।

 है हम सब एक भारत के, ये भारत प्रिय हमारा है।

 हो सारे विश्व में सुख शांति मैत्री अपना नारा है।

हमें इसको बचाना है हमें इसको बढ़ाना है।

ये पूंजी है कि जिसके बल हमें भारत को सजाना है।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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