श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है व्यंग्य  संग्रह   “बता दूं क्या…” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – बता दूं क्या… # 47 ☆ 
पुस्तक चर्चा

पुस्तक – व्यंग्य संग्रह – बता दूं क्या…

संपादन – डा प्रमोद पाण्डेय

सह संपादन – श्री राम कुमार 

प्रकाशक – आर के पब्लिकेशन, मुम्बई

पृष्ठ – १४४

मूल्य – २९९ रु हार्ड कापी

ISBN 9788194815273

वर्ष २०२०

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य संग्रह – बता दूं क्या… – संपादन – डा प्रमोद पाण्डेय ☆ सह संपादन – श्री राम कुमार ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆

महाराष्ट्र के राजभवन में, राज्यपाल कोशियारी जी ने विगत दिनो आर के पब्लिकेशन, मुम्बई से सद्यः प्रकाशित व्यंग्य संग्रह बता दूं क्या… का विमोचन किया. संग्रह में देश के चोटी के पंद्रह व्यंग्यकारो के महत्वपूर्ण पचास सदाबहार व्यंग्य लेख संकलित हैं. एक मराठी भाषी प्रदेश से प्रकाशन और फिर बड़े गरिमामय तरीके से राज्यपाल जी द्वारा विमोचन यह रेखांकित करने को पर्याप्त है कि हिन्दी साहित्य में व्यंग्य की स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है. लगभग सभी समाचार माध्यमो से इस किताब के विमोचन की व्यापक चर्चा देश भर में हो रही है.

पाठक व्यंग्य पढ़ना पसंद कर रहे हैं. लगभग प्रत्येक समकालीन घटना पर व्यंग्य लेखन, त्वरित प्रतिक्रिया व आक्रोश की अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम के रूप में पहचान स्थापित कर चुका है. यह समय सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक विसंगतियो का समय है. जहां कहीं विडम्बना परिलक्षित होती है, वहां व्यंग्य का प्रस्फुटन स्वाभाविक है. हर अखबार संपादकीय पन्नो पर प्रमुखता से रोज ही स्तंभ के रूप में व्यंग्य प्रकाशन करते हैं. ये और बात है कि तब व्यंग्य बड़ा असमर्थ नजर आता है जब उस विसंगति के संपोषक जिस पर व्यंग्यकार प्रहार करता है, व्यंग्य से परिष्कार करने की अपेक्षा, उसकी उपेक्षा करते हुये, व्यंग्य को परिहास में उड़ा देते हैं. ऐसी स्थितियों में सतही व्यंग्यकार भी व्यंग्य को छपास का एक माध्यम मात्र समझकर रचना करते दिखते हैं. पर इन सारी परिस्थितियो के बीच चिरकालिक विषयो पर भी क्लासिक व्यंग्य लेखन हो रहा है. यह तथ्य बता दूं क्या… में संकलन हेतु चुने गये व्यंग्य लेख स्वयमेव उद्घोषित करते हैं. जिसके लिये युवा संपादक द्वय बधाई के सुपात्र है.

बता दूं क्या… पर टीप लिखते हुये प्रख्यात रचनाकार सूर्यबाला जी आश्वस्ति व्यक्त करती है कि अपनी कलम की नोंक तराशते वरिष्ठ व युवा व्यंग्यकारो का यह संग्रह व्यंग्य की उर्वरा भूमि बनाती है. निश्चित ही इस कृति में पाठको को व्यंग्य के कटाक्ष का आनंद मिलेगा, विडम्बनाओ पर शब्दो का अकाट्य प्रहार मिलेगा, व्यंग्य के प्रति रुचि जागृत करने और व्यंग्य के शिल्प सौष्ठव को समझने में भी यह कृति सहायक होगी. हय संग्रह किसी भी महाविद्यालयीन पाठ्य क्रम का हिस्सा बनने की क्षमता रखती है क्योंकि इसमें में पद्मश्री डा ज्ञान चतुर्वेदी, डा हरीश नवल, डा सुधीर पचौरी, श्री संजीव निगम, श्री सुभाष काबरा, श्री सुधीर ओखदे, श्री शशांक दुबे, श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव, डा वागीश सारस्वत, सुश्री मीना अरोड़ा, डा पूजा कौशिक, श्री धर्मपाल महेंद्र जैन, श्री देवेंद्रकुमार भारद्वाज, डा प्रमोद पाण्डेय व श्री रामकुमार जैसे मूर्धन्य, बहु प्रकाशित व्यंग्य के महारथियो सहित युवा व्यंग्य शिल्पियो के स्थाई महत्व के दीर्घ कालिक व्यंग्य प्रकाशित किये गये हैं. व्यंग्यकारो में व्यवसाय से चिकित्सक, इंजीनियर, बैंककर्मी, शिक्षाविद, राजनेता, लेखक, संपादक, महिलायें, मीडीयाकर्मी, विदेश में हिन्दी व्यंग्य की ध्वजा लहराते व्यंग्यकार सभी हैं, स्वाभाविक रूप से इसके चलते रचनाओ में शैलीगत भाषाई विविधता है, जो पाठक को एकरसता से विमुक्त करती है.

किताब का शीर्षक व्यंग्य युवा समीक्षक डा प्रमोद पाण्डेय व कृति के संपादक का है, जिसमें उन्होने एक प्रश्न वाचक भाव बता दूं क्या.. को लेकर मजेदार व्यंग्य रचा है.आज जब सूचना के अधिकार से सरकार पारदर्शिता का स्वांग रच रही है,एक क्लिक पर सब कुछ स्वयं अनावृत होने को उद्यत है, तब भी  सस्पेंस, ब्लैकमेल से भरा हुआ यह वाक्य बता दूं क्या किसी की भी धड़कने बढ़ाने को पर्याप्त है, क्योकि विसंगति यह है कि हम भीतर बाहर वैसे हैं नही जैसा स्वयं को दिखाते हैं. डा प्रमोद पाण्डेय के ही अन्य व्यंग्य भावना मर गई तथा गाली भी किताब का हिस्सा हैं. केनेडा के धर्मपाल महेंद्र जैन की तीन रचनायें साहब के दस्तखत, कलमकार नारे रचो व महालक्षमी जी की दिल्ली यात्रा प्रस्तुत की गई हैं. श्री देवेनद्र कुमार भारद्वाज की रचनायें काला धन, कलम किताब और स्त्री नरक में परसू, इश्तिहारी शव यात्रा व किट का कमाल, और रिटेलर चीफ गेस्ट का जमाना हैं.विवेक रंजन श्रीवास्तव देश के एक सशक्त व्यंग्यकार के रूप में स्थापित हैं  उनकी कई किताबें छप चुकी हैं कुछ व्यंग्य संकलनो का संपादन भी किया है उनकी पकड़ व संबंध वैश्विक हैं,दृष्टि गंभीर है ” आत्मनिर्भरता की उद्घोषणा करती सेल्फी”, “आभार की प्रतीक्षा”, और “श्रेष्ठ रचनाकारो वाली किताब के लिये व्यंग्य ” उनकी प्रस्तुत रचनायें हैं. जिन अति वरिष्ठ व्यंग्य कारो से संग्रह स्थाई महत्व का बन गया है उनमें सबसे बड़ी उपलब्धि पद्मश्री डा ज्ञान चतुर्वेदी जी के व्यंग्य ” मार दिये जाओगे भाई साब ” एवं “सुअर के बच्चे और आदमी के” हैं ये व्यंग्य इंटरनेट या अन्य स्थानो पर पूर्व सुलभ स्थाई महत्व की उल्लेखनीय रचनायें हैं . डा हरीश नवल जी की छोटी हाफ लाइनर,बड़े प्रभाव वाली रचनायें हैं ” गांधी जी का चश्मा”, लाल किला और खाई, चलती ट्रेन से बरसती शुचिता, वर्तमान समय और हम, अमेरिकी प्याले में भारतीय चाय. ये रचनायें वैचारिक द्वंद छेड़ते हुये गुदगुदाती भी हैं. डा सुधीश पचौरी साहित्यकार बनने के नुस्खे बताते हैं, हवा बांधने की कला सिखाते और हिन्दी हेटर को प्रणाम करते दिखते हें.  गहरे कटाक्ष करते हुये संजीव निगम ने “ताजा फोटो ताजी खबर” लिखा है, उनकी “अन्न भगवान हैं हम पक्के पुजारी” तथा तारीफ की तलवार, स्पीड लेखन की पैंतरेबाजी, एवं तकनीकी युग के श्रवण कुमार पढ़कर समझ आता है कि वे बदलते समय के सूक्ष्म साक्षी ही नही बने हुये हैं अभिव्यक्ति की उनकी क्षमतायें भी उन्हें लिख्खाड़ सिद्ध करती हैं. सुभाष काबरा जी वरिष्ठ बहु प्रकाशित व्यंग्यकार हैं, उनके तीन व्यंग्य संकलन में शामिल हैं, बोरियत के बहाने, अपना अपना बसंत एवं विक्रम बेताल का फाइनल किस्सा. सुधीर ओखदे जी बेहद परिपक्व व्यंग्यकार हैं, उनकी रचना सिगरेट और मध्यमवर्गीय, ईनामी प्रतियोगिता, व आगमन नये साहब का  पठनीय रचनायें हैं. शशांक दुबे व्यंग्य के क्षेत्र में जाना पहचाना स्थापित नाम हैं. दाल रोटी खाओ, आपरेशन कवर, रद्दी तो रद्दी है उनकी महत्वपूर्ण रचनाये ली गई हैं. डा वागीश सारस्वत परिपक्व संपादक संयोजक व स्वतंत्र रचनाकार हैं, उन्होंने अपने व्यंग्य दीपक जलाना होगा, होली उर्फ इंडियन्स लवर्स डे, चमचई की जय हो, बेचारे हम के माध्यम से स्थितियों का रोचक वर्णन कर पठनीय व्यंग्य प्रस्तुत किये हैं.

महिला रचनाकारो की भागीदारी भी उल्लेखनीय है. मीना अरोड़ा के व्यंग्य जिन चाटा तिन पाईयां, भविष्य की योजना, योजना में भविष्य अलबेला सजन आयो रे, हेकर्स, टैगर्स, हैंगर्स उल्लेखनीय है. डा पूजा कौशिक बेचारे चिंटुकेश्वर दत्त, बुरे फंसे महाराज, पर्स की आत्मकथा लिखकर सहभागी हैं.

पुस्तक में व्यंग्य लेखों के एवं लेखको के चयन हेतु संपादक डा प्रमोद पाणडेय  व प्रकाशक तथा सह संपादक श्री रामकुमार बधाई के पात्र हैं.  सार्थक, दीर्घकालिक चुनिंदा व्यंग्य पाठको को सुलभ करवाने की दृष्टि से सामूहिक  संग्रह का अपना अलग महत्व होता है, जिसे दशको पहले तारसप्तक ने हिन्दी जगत में स्थापित कर दिखाया था, उम्मीद जागती है कि यह व्यंग्य संग्रह, व्यंग्य जगत में चौदहवी का चांद साबित होगा और ऐसे और भी संग्रह संपादक मण्डल के माध्यम से हिन्दी पाठको को मिलेंगे . शुभेस्तु.

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments