श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। आज प्रस्तुत है महात्मा गाँधी जी की जयंती पर एक संस्मरण “कुली लोकेशन की होली

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – संस्मरण – कुली लोकेशन की होली  ☆

हिंदुस्तान में बड़ी से बड़ी सेवा करने वाले को भंगी की उपमा दिया जाता था और उन्हें गाँव के बाहर रखा जाता था। जिन्हें “देढवाडा” भी कहते थे। उन्हें बहुत नफरत की दृष्टि से देखा जाता था।

बात उन दिनों की है जब दक्षिण अफ्रीका के शहर में हिंदुस्तानियों को ‘देढ’ कहते थे। बाद में यही शब्द जोहानेसबर्ग में कुली के नाम से मशहूर हो गया।

1914 से 1917 के बीच महात्मा गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में वकालत का काम शुरू किए और उनका आना जाना होता था। भारतीयों को शहर से बाहर तिरस्कार कर उनको मालिकाना हक नहीं दिया जाता था और उसी कुली लोकेशन पर जहाँ साफ-सफाई बिल्कुल नहीं थी वहीँ  पर रहने दिया जाता था।

उस समय हिंदुस्तान से बहुयाता की संख्या में धन और धंधे के लिए लोग बाहर जाने लगे। और कुली लोकेशन पर भीड़ एकत्रित होने की वजह से महामारी फैल गई। गांधी जी ने स्वयं सभी लोगों को मिलकर, वहां की साफ-सफाई और व्यवस्था अपने हाथों में लेकर, उस जगह को स्वच्छ किया। गरीब हिंदुस्तानी चांदी और तांबे के सिक्के जमीन पर गढ़ा कर रखे थे। उस जगह को वह छोड़ना नहीं चाहते थे। गांधीजी ने उन्हें समझाया कि यह जगह अब दूषित हो चुकी है। मुझ पर विश्वास करो और इस जगह को खाली कर मैं आपको सुरक्षित जगह पर ले चलता हूं।

इधर अंग्रेज बैंक के कर्मचारी गांधी जी से मिलकर कहने लगे कि वह सिर्फ आपके ही हाथ से पैसे बैंक में जमा करेंगे। आँख मूंदकर गांधी जी पर अटूट विश्वास लोगों का था। और सब चीजों को सुरक्षित निकालकर गांधी जी सभी को दूसरी जगह व्यवस्थित कर अपने एकता और शक्ति का परिचय दिखा दिया।

अंग्रेजों ने सोचा था कि इसको पूरी तरह नष्ट करने के लिए इनको ही जला दिया जाए। गांधीजी तक यह बात पहुंची और गांधीजी उस जगह पर पहुंच गए। वहां पर जाकर गांधीजी सभी कुली वर्ग के लिए वकील बने। अपने सूझबूझ से 70 केस जीतकर सिर्फ एक केस हारे। शेष बाकी सब जीतकर गांधीजी ने एकता और शक्ति की मिसाल कायम की। जबकि अंग्रेज इसे जड़ से मिटाना चाहते थे।

अपने सूझबूझ के कारण चाहे धन रहे या ना रहे। परिश्रम और सूझबूझ से मानवता की सेवा करते गांधीजी ने महामारी से अपने लोगों को सुरक्षित बचा लिया।

2 अक्टूबर गांधी जी को समर्पित एकता और शक्ति की मिसाल पर उनका संस्मरण  पुस्तक – मेरे अनुभव – मोहनदास करमचंद गाँधी से उद्धृत।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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