श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

?संजय दृष्टि  – मोर्चा ?

फिर एक घटना घटी थी। फिर वह उद्वेलित हुआ था।  घटना के विरोध में आयोजित होने वाले मोर्चों, चर्चाओं, प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए हमेशा की तरह वह तैयार था। उसके दिये नारे मोर्चों की जान थे।

आज की रात स्वप्न में भी मोर्चा ही था। एकाएक मानो दिव्य प्रकाश फूटा। अलौकिक दृष्टि मिली। मोर्चे के आयोजकों के पीछे खड़ी आकृतियाँ उभरने लगीं। लाइव चर्चाओं से साधी जाने वाली रणनीति समझ में आने लगी। प्रदर्शनों के पीछे की महत्वाकांक्षाएँ पढ़ी जा सकने लगी। घटना को बाजार बनाने वाली ताकतों और घटना के कंधे पर सवार होकर ऊँची छलांग लगाने की हसरतों के चेहरे साफ-साफ दिखने लगे। इन सबकी परिणति में मृत्यु, विकलांगता, जगह खाली कराना, पुरानी रंजिशों के निबटारे और अगली घटना को जन्म दे सकने का रॉ मटेरिअल, सब स्लाइड शो की तरह चलने लगा।

सुबह उसके घर पर ताला देखकर मोर्चे के आयोजक मायूस हुए।

उधर वह चुपचाप पहुँचा था पीड़ित के घर। वहाँ सन्नाटा पसरा था। नारे लगाती भीड़ की आवाज़ों में एक कंधे का सहारा पाकर परिवार का बुजुर्ग फफक-फफक कर रो पड़ा था।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

 

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

7 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
सुरेश कुशवाहा तन्मय

सार्थक सोच के सकारात्मक परिणाम
चिंतन पर आधारित सुंदर लघु कथा, बधाई

Sudha Bhardwaj

सच में साथ मनुष्य के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है..

अलका अग्रवाल

बहुत सही कहा-दिव्यदृष्टि ने सही दिशा दिखाई और वह गलत राह छोड़ सही राह पर चल पड़ा।

Pravin Raghuvanshi

अहिन्दी भाषियों के लिए एक प्रयास… मुझे हमेशा ही ये लगता है कि संजय जी का उच्च कोटि का चिंतन समस्त विश्व मे पहुँचना चाहिए… *Agitation* Again an incident took place. Again he was stirred up. He was always ready to participate in agitations, discussions, demonstrations to protest against the ghastly events. His slogans were the life of any such agitations. Tonight, there was an agitation in his dream as well. Suddenly, an effulgent divine light burst forth as he got a supernatural vision. The figures began to emerge behind the organizers of the agitation. Their strategy became clearer from… Read more »

लतिका

Truth is stranger than fiction.

वीनु जमुआर

परिस्थितियों के प्रति सही मनन चिंतन से निकले निष्कर्ष सत्य की दिशा दिखाते हैं। सही राह पर चलना सिखाते हैं,हमेशा साथ देते हैं। संवेदनशील अभिव्यक्ति।

ऋता सिंह

कई बार सर्वमंगल को ही पता नहीं होता कि हमें करता चाहिए! ग़लत फहमी के शिकार होते हैं कि दुनिया हमारे पीछे चलती है पर वास्तविकता और होती है।सत्योद्घाटन होने पर मंज़िल और सही राह दिखाने लगते हैं।सुंदर अभिव्यक्ति