श्री घनश्याम अग्रवाल

☆ लघुकथा – पितृ दिवस विशेष – “कि, मैं जिन्दा हूंँ अभी” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

(पिता  हर साल बूढ़े होते हैं,  पुराने नहीं ।  आज “फादर्स डे ” पर सभी के पिताओं को प्रणाम किया तो मेरी ये पुरानी लघुकथा नई हो गई और जवान भी। नहीं पढ़ी हो तो पढ़िए। पढ़ी भी हो तो पिता को प्रणाम समझ, पुनः पढ़िए।)

” एक री-टेक और “

” देखिए हीरो साब,  पहले आप इस बूढ़े एक्स्ट्रा को खींचकर एक चाँटा मारेंगे। चार सेकेण्ड तक चाँटे की गूँज सुनाई देगी। फिर आप अपना डायलॉग कहेंगे। यह चाँटेवाला सीन पूरी फिल्म की जान है। ” हीरो को शाॅट समझाते हुए डायरेक्टर ने कहा।

” ऐसी बात है,  तो हीरो आज खुद स्टंट करेगा।

सिर्फ चाँटा मारने की एक्टिंग नहीं, बल्कि सच में चाँटा मरूँगा। तभी सीन में रियलिटी आएगी।”

हीरो के इस सहयोग पर पूरी युनिट खुशी से उछल पड़ी। वह बूढ़ा एक्स्ट्रा चाँटा खाने के पहले ही अपना गाल सहलाने लगा। निर्माता ने हँसते हुए उससे कहा-” अबे, डरता क्या है ? हीरो का चाँटा खाकर तेरा भी कल्याण हो जायेगा। घबरा मत। चाँटे के हर शाॅट पर तुझे सौ रुपए एक्स्ट्रा मिलेंगे।”

शाॅट की तैयारी होने लगी। कैमरा, लाइट, साइलेंस, यस; एक्शन। होरो ने खींचकर बूढ़े के गाल पर चाँटा मारा और अपना डायलॉग बोला।

” कट ” , डायरेक्टर ने कहा-” देखिए हीरो साब, आपको चार सेकेण्ड रुककर डायलॉग बोलना है। ये सीन फिर से लेते हैं।”  इतने-से शाॅट के लिए री-टेक करवाना हीरो को अपमानजनक लगा। मगर वह मान गया। फिर से वही तैयारी और वैसा ही “कट “। ” देखिए हीरो साब, इस बार आप ज्यादा रुक गए। प्लीज, एक बार और।” डायरेक्टर ने हीरो को पुनः समझाया।

“नहीं-नहीं। बस अब पैक-अप। मेरे हाथ थक गए हैं। अब मूड नहीं है।” हीरो के इस जबाब से सारी युनिट उदास हो गई।

सभी ने हीरो को समझाना शुरू किया-” मान जाइए ना, आज यह शाॅट लेना बहुत जरूरी है। आपने शाॅट बहुत ही अच्छा दिया। बस थोड़ा टाइमिंग हो जाए तो यह एक सीन पूरी फिल्म पर छा जाएगा। बस, सिर्फ एक री-टेक और प्लीज,”

कहते हुए निर्माता हाथ-पैर जोड़ने लगा। एक असिस्टेंट हीरो के हाथ पर आयोडेक्स मलने लगा। ना-नुकुर कर आखिर हीरो मान ही गया।एक नए जोश के साथ शाॅट की तैयारी शुरू हो गई।

” देखिए, अब कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए।”

ओके,  यस रेडी…एक्शन. ..और “कट” ! इस बार बूढ़े एक्स्ट्रा ने शाॅट बिगाड़ दिया था। सारी युनिट उस पर टूट पड़ी ” कौन है ये एक्स्ट्रा ? कौन लाया इसे ? इतना–सा सीन ठीक से नहीं कर सका।

निकाल दो इसे। कल से दूसरा एक्स्ट्रा आयेगा।

“बड़ी मुश्किल से तो हीरोजी राजी हुए थे। अब कौन मनायेगा उन्हें।”

आखिर रोता हुआ बूढ़ा, हीरो के पैरों पर गिर पड़ा। ” साब, प्लीज एक शाॅट और दे दीजिए।मेरी नौकरी का सवाल है। अब गलती नहीं होगी।” आँखों के आँसू चाँटे खाए लाल-लाल  गाल पर लुढ़कने लगे। हीरो को दया आ गई। आखिर वे मान ही गए। हीरो के मानते ही युनिट का गुस्सा बूढ़े के प्रति जाता रहा।और इस बार शाॅट ओके हो गया। हीरो को अच्छा शाॅट देने पर सभी बधाइयाँ  देने लगे।चाँटा मारनेवाले हाथ को सहलाने लगे।पूरी युनिट खुश थी कि चलो आज का काम निपट गया।

एक्स्ट्राओं का पेमेण्ट होने लगा।बूढ़े को चार बार चाँटा खाने के चार सौ अतिरिक्त मिले।एक कोने में खड़े बूढ़े से लाइनमैन ने पूछा-” तुम्हें तो तीस साल हो गए एक्स्ट्रा का रोल करते हुए,  फिर आज तुमसे गलती कैसे हुई ? “

” दरअसल मैं लालच में आ गया था। प्रोड्यूसर ने हर री–टेक पर सौ रुपए ज्यादा देने को कहा था। जब दो बार हीरो की गलती से री-टेक हुआ तो मैंने सोचा एक री-टेक मैं भी जान-बूझकर कर दूँ तो चौथा शाॅट तो लेना ही पड़ेगा मुझे आज लड़की की परीक्षा-फीस  चार सौ जो भरनी थी।”

यह कहकर वह खुशी-खुशी अपने लाल हुए गालों को थपथपाने लगा। इस री-टेक में उसने अपनी जिन्दगी का बेहतरीन शाॅट जो दिया था।

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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