॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (26 – 30) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

दर्पण में छबि अतिथि की यों तब शोभा पायी।

ज्यों सुमेरू पर कल्पतरु की प्रातः परछाँई।।26।।

 

छत्र-चँवर धारी जनों से सुनते जयकार।

राजसभा में अतिथि तब पहुंचे हो तैयार।।27।।

 

बैठे सिंहासन पै वे जहां था तना वितान।

पाद-पीठ जिसका था घिस मुकुटमणि से म्लान।।28।।

 

ज्यों वक्षस्थल विष्णु का कौस्तुभमणि से व्याप्त।

त्यों उससे शोभित हुआ राज-भवन पर्याप्त।।29।।

 

महाराज बन अतिथि तब चमके उसी प्रकार।

जैसे आभा चंद्रले, पूरा चंद्र-आकार।।30।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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