॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (51 – 55) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

 

अर्जुन की पीली खिली मंजरी देख लगता है जैसे धनुष रज्जु कोई हो।

कर काम को भस्म, शिव ने हि जैसे, धनुष डोर धनु की कि ज्यों तोड़ दी हो।।51।।

 

दे सुगन्धित आम्र-पल्लव, सुरा इक्षु की और पाटल के पुष्पों की माया।

लगता है जैसे कि ऋतु ग्रीष्म ने अपने दोषों को कामी जनों से छुपाया।।52।।

 

उस ग्रीष्म ऋतु में लगे दो ही प्रिय सबको, जिनकी प्रभा का सुहाना था फंदा।

एक राजा कुश अपने दुखहारी गुण से, औं दूसरा नभ में अभ्युदित चंदा।।53।।

 

तब ग्रीष्म में सुखद सरयू के जल में, जहाँ राजहंस मत्त थे केलि करते।

लता पुष्प के पुंज थे जिन तटों पै, वहाँ कुश ने चाहा-कि विहार करते।।54।।

 

जहाँ नक्र इत्यादि से जल सुरक्षित कराया गया था औं था तट सुहाना।

वहाँ सरयू जल में महाविष्णु सम कुश ने हो, रानियों साथ चाहा नहाना।।55।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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