श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण बाल गीत  – “पानी चला सैर को।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 114 ☆

☆ बालगीत – पानी चला सैर को ☆ 

पानी चला सैर को 

संगी-साथी से मिल आऊ.

 

बादल से बरसा झमझम 

धरती पर आया था.

पेड़ मिले न पौधे 

देख, मगर यह चकराया था.

कहाँ गए सब संगी-साथी 

उन को गले लगाऊं.

 

नाला देखा उथलाउथला 

नाली बन कर बहता.

गाद भरी थी उस में 

बदबू भी वह सहता .

उसे देख कर रोया 

कैसे उस को समझाऊ.

 

नदियाँ सब रीत गई 

जंगल में न था मंगल.

पत्थर में बह कर वह 

पत्थर से करती दंगल.

वही पुराणी हरियाली की चादर 

उस को कैसे ओढाऊ.

 

पहले सब से मिलता था 

सभी मुझे गले लगते थे.

अपने दुःख-दर्द कहते थे 

अपना मुझे सुनते थे.

वे पेड़ गए कहाँ पर 

कैस- किस को समझाऊ. 

 

जल ही तो जीवन है 

इस से जीव, जंतु, वन है.

इन्हें बचा लो मिल कर 

ये अनमोल हमारे धन है.

ये बात बता कर मैं भी 

जा कर सागर से मिल जाऊ. 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

20/05/2021

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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