श्री अखिलेश श्रीवास्तव 

(ई-अभिव्यक्ति में श्री अखिलेश श्रीवास्तव जी का स्वागत। विज्ञान, विधि एवं पत्रकारिता में स्नातक। 1978 से वकालत, स्थानीय समाचार पत्रों में सम्पादन कार्य। स्वांतः सुखाय समसामयिक विषयों पर लेख एवं कविताओं की रचित / प्रकाशित। प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “ज़िन्दगी की मंजिल”।)

☆ कविता  – ज़िन्दगी की मंजिल ☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

        इस ज़िन्दगी में मंजिल,

        पाना बहुत कठिन है।

        कभी रास्ते कठिन है,

       कहीं रास्ते नहीं है ।

 

       हम खोज में इसी की,

       देखो भटक रहे हैं।

       मंजिल मिलेगी कब,

       हमको पता नहीं है ।

 

       एक बड़ा सा मकान है,

      पर उसमें घर नहीं है ।

      ऐशो आराम बहुत है,

      पर मन में शुकूं नहीं है ।

 

       बिस्तर पर लेटते हैं,

       पर आंखों में नींद नहीं हैं।

       कैसे कटेगी ज़िन्दगी,

       हमको पता नहीं है ।

 

      मिले दोस्त तो बहुत,

       पर दोस्ती नहीं है ।

      धोका है हर क़दम पर ।

      नेकी कहीं नहीं है ।

 

     अपने तो बनते हैं पर,

    अपनापन अब नहीं है ।

     जी रहे हैं यहां हम,

     पर जिन्दगी नहीं है ।

 

     ज़िन्दगी के इस सफर में,

     साथी कोई नहीं है ।

     सांसो के रूकते ही

     फिर तेरा कोई नहीं है ।

 

     लम्बी उम्र जिए हम,

     नहीं जिए ज़िन्दगी हम ।

     इस तरह  हमारा जीना,

     कोई ज़िन्दगी नहीं है ।

 

     मिल पायेगी हमें मंजिल,

     ये मुमकिन अब नहीं है ।

     मज़े से जियो ये जिंदगी ,

     फिर जिंदगी नहीं है ।

 

     अरमान कर लो पूरे,

     सही ज़िन्दगी यही है ।

     खुशहाल हो ये जीवन,

     यही जिन्दगी की खुशी है।

 

© श्री अखिलेश श्रीवास्तव

जबलपुर, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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