श्री रामस्वरूप दीक्षित
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामस्वरूप दीक्षित जी गद्य, व्यंग्य , कविताओं और लघुकथाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। धर्मयुग,सारिका, हंस ,कथादेश नवनीत, कादंबिनी, साहित्य अमृत, वसुधा, व्यंग्ययात्रा, अट्टाहास एवं जनसत्ता ,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नईदुनिया,पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका,सहित देश की सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कुछ रचनाओं का पंजाबी, बुन्देली, गुजराती और कन्नड़ में अनुवाद। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की टीकमगढ़ इकाई के अध्यक्ष। हम भविष्य में आपकी सार्थक रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास करेंगे।
☆ कविता – अच्छे कवि ☆
अच्छे कवि
अच्छी कविता नहीं लिखते
जैसी कि खराब कवि लिखते हैं
सीना तानकर खराब कविताएँ
वे तो बस कविता लिखते हैं
बेहद विनम्र भाव से
इस तरह
जैसे कर रहे हों
ईश्वर आराधना
उनमें नहीं होता
तनिक भी गुमान
अपने अच्छे तो दूर की बात है
अपने कवि होने का भी
जैसे कि होता है
खराब कवियों को
खराब कवि
जब पहन रहे होते हैं
काले हाथों से उजली दिखने वाली मालाएं
हो रहे होते हैं नतशिर
सत्ताधीशों के समक्ष
तब अच्छे कवि
किसी झाड़ी में पड़े
अवांछित शिशु की गुमनाम आवाज को
दर्ज कर रहा होता है
अपनी कविता में
बलात्कृत स्त्री को
कर रहा होता है
अपनी लड़ाई
खुद लड़ने के लिए तैयार
खराब कवि के लिखे गए
अभिनंदन पत्रों पर
मिलने वाले कविता पुरस्कार से बेखबर
अच्छे कवि लोहे को गलाने
पैदा करने लगते जरूरी ताप
ताकि ढाले जा सकें
जरूरी हथियार
शोषितों और पीड़ितों के हाथों में सौंपने
अच्छे कवि
जानते हैं
गुलाब की सुंदरता के बारे में
स्याह अंधेरे के सीने में दफन
रोशनी के बारे में
जिन दिनों खराब कवि
खँजड़ी बजाते नाच रहे होते हैं
राजा के दरबार में
उन दिनों अच्छे कवि
बच्चों को सिखा रहे होते हैं
फूलों की खेती करना
युद्ध के दिनों में
खराब कवि वीर रस के कुंड में
कर रहे होते नग्न स्नान
और अच्छे कवि
युद्ध के बीच बजा रहे होते बांसुरी
अच्छे कवि
खराब कवियों की
बेतहासा भीड़ में भी
पहचान लिए जाते अलग से
अपने शब्दों के कारण नहीं
उनमें छिपे लोहे के कारण
© रामस्वरूप दीक्षित
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